शिवपुरी जिले के कोलारस थाना अंतर्गत ग्राम निवोदा में घटी हालिया घटना ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया है। कई दिनों से यहाँ अवैध मुरम खनन चल रहा था, जिसका परिणाम तीन मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत के रूप में सामने आया। ये बच्चे उस गड्ढे में भरे बारिश के पानी में डूबकर मरे, जिसे अवैध खनन के कारण खोदा गया था। यह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि हमारे प्रशासनिक तंत्र और समाज के कुछ लोगों की संवेदनहीनता का जीवंत उदाहरण है।
अवैध खनन और उसकी कीमत
अवैध खनन का खेल वर्षों से पूरे देश में चल रहा है, और शिवपुरी जैसे ग्रामीण इलाकों में यह और भी भयावह रूप ले चुका है। मुरम खनन, जो निर्माण और सड़क निर्माण में इस्तेमाल होता है, यहाँ बड़े पैमाने पर अवैध रूप से किया जा रहा है। यह खनन न केवल प्राकृतिक संसाधनों को हानि पहुंचाता है, बल्कि लोगों की जान पर भी बन आती है। निवोदा गाँव में जो हुआ, वह इसी कुप्रथा का नतीजा है।
जो बच्चे आज हमारे बीच नहीं हैं, वे न केवल बारिश के पानी में डूबे, बल्कि वे उस भ्रष्टाचार और अनियमितता की चपेट में आए, जो अवैध खनन को बढ़ावा देता है। अगर इन गड्ढों को समय पर भर दिया जाता, अगर प्रशासन ने खनन को रोका होता, तो शायद आज ये बच्चे जीवित होते।
टोंगरा, मानपुर, बड़ोदी और अन्य क्षेत्रों में अवैध मुरम खनन
शिवपुरी जिले के विभिन्न स्थानों जैसे टोंगरा, मानपुर, बड़ोदी, नोहरी, और मेडिकल कॉलेज के पीछे अवैध मुरम खनन बड़े पैमाने पर चल रहा है। इस खनन के घिनौने खेल में कई सफेदपोश लोग शामिल हैं। कई अलग-अलग दलों के नेता और सरकारी कर्मचारियों के रिश्तेदार आपस में पार्टनर बनकर इस अवैध कार्य को अंजाम दे रहे हैं। इसमें से अधिकांश लोग फर्जी रॉयल्टी का सहारा लेकर, एक जगह की रॉयल्टी और दूसरी जगह से खनन का खेल खेल रहे हैं, जिसे स्थानीय माइनिंग और पुलिस का संरक्षण मिलता हुआ प्रतीत होता है।
यहाँ के मुरम माफिया महज 2500 से 3000 रुपए प्रति ट्रॉली मुरम उपलब्ध करा देते हैं। लेकिन यह सवाल उठता है कि जब टोंगरा से शिवपुरी तक मुरम लाने का खर्चा ही इतना है, तो कोई इस व्यापार में नुकसान कैसे सह सकता है? वास्तविकता यह है कि जिले के विभिन्न हिस्सों में अवैध मुरम माफियाओं ने अपने-अपने क्षेत्र बाँट रखे हैं। जिस भी इलाके में मुरम का ऑर्डर मिलता है, वहाँ से यह माफिया नजदीक से अवैध रूप से मुरम खोदकर उपलब्ध कराते हैं, जिससे उनका मुनाफा सुनिश्चित हो जाता है।
जनप्रतिनिधियों की खामोशी
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब किसी बड़े शहर में कोई हादसा होता है, तो तत्काल जनप्रतिनिधि वहां पहुंच जाते है। लेकिन जब शिवपुरी के निवोदा में मासूम बच्चे मौत के गड्ढे में समा गए, तब कोई जनप्रतिनिधि वहां नहीं पहुंचा। यदि यह हादसा किसी बोरवेल में गिरने की वजह से हुआ होता, तो मीडिया भी तुरंत हर संभव संसाधन लेकर पहुँचती। परंतु यह दुर्घटना एक गड्ढे में डूबने की है, और यही कारण है कि इसे नजरअंदाज कर दिया गया।
जिम्मेदारी और हत्या की परिभाषा
क्या इसे मात्र एक दुर्घटना कहा जाए? या फिर यह इन बच्चों की हत्या थी? हत्या इसलिए क्योंकि जिन लोगों ने इस अवैध खनन को अंजाम दिया, उन्होंने सुरक्षा मानकों की अनदेखी की। और हत्या इसलिए भी क्योंकि जिन अधिकारियों को इस अवैध कार्य को रोकना चाहिए था, उन्होंने अपनी आँखें मूँद लीं। ये मासूम बच्चे उस भ्रष्टाचार और लालच के शिकार हुए, जो हमारे समाज में गहराई से जड़ें जमा चुका है।
न्याय की उम्मीद
इन मासूमों की मौत ने एक बार फिर से हमें सोचने पर मजबूर किया है कि हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं। जहाँ बच्चों की मौत पर कोई शोक नहीं, कोई कार्रवाई नहीं। क्या यह मासूम बच्चों की हत्या नहीं? ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उन निर्दोष आत्माओं को शांति प्रदान करे और दोषियों को दंडित करे। परंतु क्या यह सब केवल ईश्वर पर छोड़ देना सही है?
यह समय है कि प्रशासन जागे और अवैध खनन के खिलाफ सख्त कदम उठाए। जो भी अधिकारी और नेता इस अवैध कार्य में लिप्त हैं या इसे संरक्षण दे रहे हैं, उन्हें कठोर सजा दी जानी चाहिए। साथ ही मीडिया को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए ऐसी घटनाओं पर ध्यान देना चाहिए ताकि किसी और मासूम की जान न जाए।
यह घटना हमें चेतावनी देती है कि अगर अवैध खनन और प्रशासनिक लापरवाही को रोका नहीं गया, तो ऐसी घटनाएँ दोहराई जाती रहेंगी। यह सिर्फ तीन बच्चों की मौत नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम की खामियों की मौत है। हमें मिलकर इस मुद्दे के खिलाफ आवाज उठानी होगी ताकि भविष्य में कोई और मासूम इन गड्ढों की बलि न चढ़े।
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
एक टिप्पणी भेजें