पत्रकारिता का पुनर्जागरण: एक मौन संघर्ष है – दिवाकर शर्मा
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जब सभ्यताओं का उदय हुआ था, तब सत्य और सूचना की वाणी सबसे पवित्र मानी गई थी। गुफाओं की दीवारों से लेकर राजसभा के शिलालेखों तक, मनुष्य ने शब्दों में विश्वास रखा, संवाद में देवत्व खोजा। समय बीतता गया, पर सत्य की खोज थमी नहीं। कभी पन्नों पर स्याही बनकर बहा, तो कभी ध्वनि तरंगों पर तैरता हुआ हमारे कानों तक पहुँचा। पत्रकारिता इसी यात्रा का एक अनवरत पड़ाव बनी — समाज का दर्पण, लोकतंत्र का प्रहरी, जनमत का वाहक।
परंतु आज, जब तकनीक ने अभिव्यक्ति को मुक्त आकाश दिया है, एक विचित्र विडंबना ने जन्म लिया है। वे जो दशकों से पत्रकारिता के नाम पर सत्ता-संरचना की चौखटों पर अपने पैर जमा चुके हैं, वे आज स्वयं को पत्रकारिता का अंतिम सत्य समझ बैठे हैं। तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार, जो बड़े-बड़े मीडिया घरानों की ऊंची इमारतों में अपने लिए गद्दी सँजो चुके हैं, आज उन युवा पत्रकारों को स्वीकार करने में संकोच करते हैं जो सीमित संसाधनों के साथ, मोबाइल कैमरे और कलम के दम पर समाज के कोनों-अंतरों से सत्य की मशाल उठा लाए हैं।
वास्तविक सोशल मीडिया पत्रकार उस तपस्वी की तरह हैं, जो न जंगलों में, न महलों में, बल्कि भीड़ के बीच खड़े होकर सच्चाई का जाप कर रहे हैं। वे न धन के लोभ में बंधे हैं, न सत्ता के संकेतों से संचालित होते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य है — हर अन्याय को उजागर करना, हर अनदेखी आवाज को सुनाना।
किन्तु दुर्भाग्य यह है कि तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों की सल्तनत इस निर्भीक पत्रकारिता से कांप उठती है। उन्हें भय है कि अगर इन सोशल मीडिया पत्रकारों की स्वतंत्र सोच, निर्भीकता और जनसमर्पित भावना को स्वीकार कर लिया गया, तो वर्षों से बुनी गई उनकी चमचमाती छवि दरक जाएगी। उनका वह विशेषाधिकार, जो केवल बड़े मीडिया बैनरों के झंडों के नीचे फलता-फूलता रहा है, तिनकों की तरह बिखर जाएगा।
अक्सर देखा जाता है कि जब सोशल मीडिया पत्रकार किसी भ्रष्टाचार, अन्याय या अनियमितता को उजागर करते हैं, तो वे तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार उनके खिलाफ एकजुट हो जाते हैं। वे उन्हें 'स्वयंभू', 'अज्ञानी', 'गैर-पेशेवर' जैसे उपाधियों से नवाजते हैं। वे इस नए पत्रकारिता वर्ग को हिकारत से देखते हैं, मानो सोशल मीडिया के रास्ते से आया हर पत्रकार एक अपराधी हो। परंतु वास्तविकता यह है कि यह कुंठा, यह घृणा, उनके भीतर जमे भय का परिणाम है।
वहीं दूसरी ओर, सोशल मीडिया पत्रकारिता के इस पावन क्षेत्र में भी कुछ छद्मी किरदार सक्रिय हो गए हैं। ऐसे लोग जो पत्रकारिता के गहन दायित्व को समझे बिना, केवल निजी स्वार्थवश, माइक थामे, प्रेस कार्ड लटकाए, सरकारी दफ्तरों और नेताओं के यहां हाजिरी लगाते फिरते हैं। जिन्हें समाचार की नहीं, केवल संपर्कों की चिंता है। जो सच्चाई के दीपक को बुझाकर, अपने स्वार्थ की आंधी में नाचते हैं।
इन छद्मी पत्रकारों ने सोशल मीडिया पत्रकारिता की छवि को धूमिल किया है। वे न पत्रकारिता की मर्यादा जानते हैं, न उसकी साधना। और इनके कारण ही तथाकथित वरिष्ठ पत्रकारों को पूरे सोशल मीडिया पत्रकार वर्ग को कलंकित करने का अवसर मिलता है। जैसे कुछ काँटे बगीचे की खूबसूरती को मलिन कर देते हैं, वैसे ही ये छद्मी पत्रकार समाज की नजरों में पत्रकारिता के पवित्र स्वरूप को कलंकित कर देते हैं।
लेकिन प्रश्न वही है — क्या हम पूरे वटवृक्ष को इसलिए काट देंगे कि उसकी कुछ शाखाओं पर परजीवी उग आए हैं? क्या हम उस दीपक को बुझा देंगे जिसमें हजारों तिलियों में से कुछ ने धुंआ फैलाया हो?
सच्चे सोशल मीडिया पत्रकार आज भी विषम परिस्थितियों में, बिना किसी संस्थागत सहायता के, बिना मोटे वेतन और भारी उपकरणों के, केवल अपने जुनून और समाज-सेवा की भावना से लड़ रहे हैं। वे किसी बड़े मीडिया हाउस के कवर स्टोरी का हिस्सा नहीं बनते, परन्तु उनके मोबाइल से निकली सच्चाई की तस्वीरें लाखों दिलों में सवाल जगा देती हैं। वे सरकारी विज्ञापन की कृपा पर नहीं टिके हैं, लेकिन उनका लिखा एक वाक्य किसी मंत्री की नींद उड़ा सकता है।
जनता को अब यह अंतर समझना होगा। उसे पहचानना होगा कि सच्चा पत्रकार कौन है — वह जो सत्ता की गोद में बैठा हुआ अपने आका की जयजयकार कर रहा है, या वह जो पसीने से भीगा हुआ भीड़ के बीच खड़ा सच का परचम थामे है?
धर्म, जाति, समाज या पहचान के चश्मे उतारने होंगे। पत्रकारिता की पहचान किसी प्रेस कार्ड, किसी बड़े चैनल के लोगो, या किसी वीआईपी मंच की गद्दी से नहीं होती। पत्रकारिता की असली पहचान होती है — सच्चाई के प्रति उसकी प्रतिबद्धता।
यदि कोई सोशल मीडिया पत्रकार जातिवाद, भ्रष्टाचार, अन्याय के खिलाफ बिना डरे आवाज उठाता है, तो वह समाज के लिए एक दीप स्तम्भ है, चाहे उसके पीछे कोई भारी-भरकम मीडिया संस्थान न हो। और यदि कोई तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार इन मुद्दों पर चुप्पी साधे बैठा है, तो उसका समूचा वैभव व्यर्थ है।
यह एक मौन संघर्ष है — सत्य बनाम सुविधा का, निष्ठा बनाम निजता का। और इस संघर्ष में विजय उसी की होगी जो सच के साथ खड़ा रहेगा, चाहे उसके पास साधन हों या न हों।
आज समय आ गया है कि हम इन वास्तविक सोशल मीडिया पत्रकारों को वह सम्मान दें, जिसकी वे वास्तव में पात्र हैं। उनका साथ दें, उनका हौसला बढ़ाएं, क्योंकि कल जब इतिहास लिखा जाएगा, तो कलम उन्हीं का पक्ष लेगी जिन्होंने समाज के लिए संघर्ष किया, न कि उनका जिन्होंने सत्ता के चरणों में अपने आदर्श गिरवी रख दिए थे।
आओ, इस नये युग के नवजागरण में सहभागी बनें। आओ, सत्य के इस नये सूरज को सलाम करें।
दिवाकर शर्मा
विष्णु मंदिर के पीछे, गणेश कॉलोनी शिवपुरी (म. प्र.)
मोबाईल नंबर - 7999769392
ईमेल- krantidooot@gmail.com
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दिवाकर की दुनाली से
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