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भारत के मूल्यों की वापसी राष्ट्र उत्थान, विश्व जागरण के प्रति समर्पण - डॉ. अमरीक सिंह ठाकुर

 



जिस दिन भारत ने अपने प्राचीन मूल्यों धर्म, करुणा, सत्य, अहिंसा और वैश्विक एकता के आधार पर अपनी यात्रा पुनः आरंभ की, उसी दिन समस्त विश्व ने भारत के पदचिह्नों पर चलना प्रारंभकिया।  21वीं सदी में भारत ने जब आत्मा की शक्ति, संस्कृति की गरिमा और सनातन आदर्शों को फिर से जगाया, तो मानवता को एक नई दिशा मिली। "वसुधैवकुटुम्बकम्" का संदेश, संस्कृतिक संरक्षण की भावना और संतुलित जीवनशैली के आदर्श भारत को विश्वगुरु के पथ पर पुनः प्रतिष्ठित कर रहे हैं। अखंडसाधना, आत्मीयता का भाव, व्यवहारकुशलता...... संघ का सर्वव्यापी, सर्वस्पर्शी विचार दिनों दिन वृद्धिगत हो रहा है।संघ की ऊपरी चमक को देखते हैं इसी कारण उस आकर्षण में आ जाते हैं।संघ की इस चमक के नीचे कितने स्वयंसेवकों के त्याग की और तप की आग है यह भी देखना चाहिए।राष्ट्रउत्थान एवं जनसेवा के कार्यों के प्रति आपका समर्पण अभिनंदनीय है। ऋषि परंपरा का आधुनिक आविष्कार है प्रचारक जीवन ऋषि परंपरा का नवीन रूप है।संघ: राष्ट्र समर्पण की साधना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक विचारधारा है, जो समाज के हर वर्ग से जुड़ती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने स्वयंसेवको को अखंड साधना, आत्मीयता, और राष्ट्र के प्रति समर्पण की प्रेरणा देती है। संघ की चमक को देखकर कई लोग आकर्षित होते हैं, लेकिन इस चमक के पीछे अनगिनत स्वयंसेवकों का तप, त्याग, और बलिदान छिपा है। संघ का विचार सर्वव्यापी और सर्वस्पर्शी है। यह विचार राष्ट्र उत्थान और जनसेवा के लिए संपूर्ण समर्पण की मांग करता है।

संघ प्रमुख मोहनराव भागवत के अनुसार, आधुनिक प्रचारक एक साधक की भांति न केवल समाज में बदलाव लाने का प्रयास करता है, बल्कि स्वयं का भी आत्मिक और नैतिक विकास करता है।संघ में प्रचारकों को विशेष स्थान प्राप्त है। वे अपने व्यक्तिगत जीवन का त्याग कर, पूर्ण रूप से राष्ट्र सेवा में समर्पित रहते हैं। अनगिनत प्रचारकों का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सादगी और संयम से समाज पर अमिट प्रभाव छोड़ा जा सकता है। विदेशों में भी संघ के प्रचारकों का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। संघ के प्रचारकों के चरित्र और उनके व्यक्तित्व की ऊंचाई को दर्शाता है।संघ की शक्ति केवल विचारों में नहीं, बल्कि इसके नेतृत्व में भी है। संघ की अद्भुत कार्यशैली और प्रचारकों की तपस्या का ही प्रमाण है।संघ में त्याग और सेवा की परंपरा गहराई से रची-बसी है। प्रचारकों को किसी प्रकार की सुरक्षा या सुविधा की चिंता नहीं होती। त्रिपुरा में संघ के चार प्रचारकों की हत्या कर दी गई थी, फिर भी संघ कार्य नहीं रुका। प्रचारक अपने जीवन को राष्ट्र सेवा के लिए अर्पित करते हैं, यह उनकी आत्मा की पुकार होती है।यानी हम हिन्दू-हिन्दू भाई-भाई का केवल गीत नहीं गाते, बल्कि उस भाईचारे को जीवन में उतारते हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में वृद्धि के कारण 1. संस्थागत ढाँचा –डॉक्टर हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना की, जो एक संगठन के रूप में निरंतर बढ़ता गया। संघ संगठन-आधारित था। निरंतर विस्तार और अनुशासन – RSS ने जमीनी स्तर पर शाखाओं का विस्तार किया, जो उनकी विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने में सफल हुआ। राजनीतिक प्रभाव – 1951 में भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के रूप में RSS की विचारधारा को राजनीतिक समर्थन मिला, जिससे यह मुख्यधारा की राजनीति में जगह बना सका। हिंदुत्व विचारधारा की स्वीकार्यता – स्वतंत्रता के बाद, विशेष रूप से 1980 और 1990 के दशकों में, हिंदुत्व विचारधारा का प्रभाव बढ़ा, जिससे संघ के स्वयंसेवको की संख्या बढ़ी। समय के साथ अनुकूलन – संघ ने शिक्षा, समाजसेवा, धार्मिक पुनर्जागरण आदि में अपने प्रयासों को बढ़ाया, जिससे यह अधिक लोगों को आकर्षित कर सका।

संघ कार्य में और कोई तत्व काम नहीं करता, केवल आत्मा करती है। यादवराव जी स्वयं बताते थे कि अपने स्नेह में स्वयंसेवकों की मनोवृत्ति को सिंचित करो। उसे स्नेह के कारण स्वयंसेवक सोचता है और उसमें कार्य के प्रति तड़पन पैदा होती है। तड़पन के बाद बाकी सभी चीजों का अंकुरण होना स्वाभाविक और आसन काम है। संघ का स्वयंसेवक केवल इसी आधार पर काम करता है। उसे और कुछ नहीं दिखाई देता। अमुक जगह पर कोई प्रचारक अच्छा काम कर रहा है तो वह वहीं रहेगा। हम उसे बदल सकते हैं। यानी एक प्रचारक अपने आपको अभी भी अंधेरे में ही छोड़ता है? यह हिम्मत तभी होती है जब आत्मा की तड़पन काम करती है। संघ जिस मनुष्य निर्माण की बात करता है, वैसा हमने निर्माण किया है। प्रचारक 80 साल की उम्र में भी सक्रिय रहते हैं। वे सोचते हैं कि शरीर में जो कुछ भी शेष है उसे निचोड़ देना है। इसके पीछे उनके मन एवं कार्य के साफल्य की ऊर्जा काम करती है। ऐसा करने में उन्हें आनन्द भी आता है और इसलिए वे ऐसा करते रहते हैं। उन्होंने यह भी तय किया है कि अपने शरीर, मन एवं बुद्धि की सार्थकता इसी काम में घिस जाने में है। काम करने के बाद तो उन्हें यश-अपयश की भी परवाह नहीं है। इसीलिए जब तक चलने की ताकत है तब तक वे संघ कार्य करने की इच्छा रखते हैं। ये लोग यह नहीं देखते कि बाहर क्या हो रहा है, बल्कि यह देखते हैं कि उनकी प्रतिज्ञा के अनुरूप अपने जीवन को लगाना है।

मुझे कुछ श्रेय चाहिए ही नहीं, बस इतना श्रेय चाहिए कि मैंने इस नियम और इस अनुशासन का पालन करते हुए अपने जीवन को चलाया। यह मेरा धर्म है। अगर वह कुछ सोचता भी है तो बस इतना कि मैंने 10 लोगों को आगे बढ़ाया है। वह यह भी नहीं कहता कि मैंने इन्हें तैयार किया है। यह भगवान का काम है और यह सबने मिलकर किया है। संघ में अध्यात्म निहित है, यह वरिष्ठ प्रचारकों के जीवन एवं कार्य से पता चलता है। बचपन में तो वे असामान्य नहीं थे। संघ में ही असामान्य बने। संघ में यह तंत्र विकसित होता है। पर सबसे महत्व की बात है कि उन्होंने अपने मन को वैसा बना लिया कि समर्पण ही मेरा लक्ष्य है। क्या होता है, क्या नहीं होता है, यह मेरा सवाल नहीं है। इतना जानता हूं कि मैं जो सपना देख रहा हूं वह भगवान की इच्छा से पूर्ण होने वाला है। मेरे जीते जी होगा, और किसी न किसी के कारण होगा, लेकिन इसी रास्ते से होगा। इस रास्ते में अपने आपको विलीन कर देना ही मेरा काम है। ऐसी भावना रखकर जो प्रचारक जीवन होता है उसका ऐसा विकास होता है। ऐसे उदाहरण हमें प्रचारकों की पहली एवं दूसरी पीढ़ी में मिलते हैं। हमारी तीसरी पीढ़ी है। चौथी एवं पांचवीं पीढ़ी में भी इस साधना को चलते हुए हम देख रहे हैं। हालांकि सभी साधक सफल नहीं होते हैं। कुछ बीच में से लौट जाते हैं। लेकिन हम देख रहे हैं कि नई पीढ़ी में भी इसी पथ पर चलकर सफल होने की उमंग रखने वाले लोग हैं, इसीलिए कोई चिंता की बात नहीं है। ऐसे हजारों अन्य नए व पुराने प्रचारक हैं। हमने देखा है कि केवल ‘सेलिब्रिटीज’ नहीं हैं, जिनके उदाहरण बताकर हम अपनी बात का मण्डन करें। यह एक सहज, स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में हम देखते हैं। यह भारत की तपोनिधि है। यह ऋषि जीवन का देश, काल, परिस्थिति के अनुसार सुसंगत आविष्कार है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नागपुर स्थित माधव नेत्रालय चैरिटेबल ट्रस्ट के विस्तारित माधव नेत्रालय के नए प्रीमियर सेन्टर के शिलान्यास समारोह ३० मार्च 2025 के अवसर पर नागरिकों को सम्बोधित करते हुए बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की अमर संस्कृति का आधुनिक अक्षयवट, उन्होंने कहा की स्वामी विवेकानन्द ने निराशा में डूबे भारतीय समाज को झकझोरा, उसके स्वरूप की याद दिलाई, आत्मविश्वास का संचार किया और राष्ट्रीय चेतना को बुझने नहीं दिया। गुलामी के अन्तिम दशक में डॉक्टरजी और श्री गुरुजी ने इस चेतना को नई ऊर्जा देने का कार्य किया। राष्ट्रीय चेतना के जिस विचार का बीज १०० वर्ष पहले बोया गया था, वह आज एक महान वटवृक्ष के रूप में खड़ा है। सिद्धान्त और आदर्श इस वटवृक्ष को ऊँचाई देते हैं, जबकि लाखों-करोड़ों स्वयंसेवक इसकी टहनियों के रूप में कार्य कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की अमर संस्कृति का आधुनिक अक्षय वट है, जो निरन्तर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना को ऊर्जा प्रदान कर रहा है। स्वयंसेवक के लिए सेवा ही जीवन है। यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कही। इस दौरान व्यासपीठ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत, जूना अखाड़ा के महामण्डलेशवर आचार्य स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज, आचार्य महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान के स्वामी गोविन्ददेव गिरि महाराज, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री देवेन्द्र फडणवीस, तथा माधव नेत्रालय के डॉ. अविनाश चन्द्र अग्निहोत्री अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भय्याजी जोशी, सुरेश जी सोनी और सहसरकार्यवाह मुकुंदा सी.आर. उपस्थित थे । विराजमान थे।

संघ के कार्यकर्ताओं ने विभिन्न क्षेत्रों में समाज को एक नई दिशा देने का कार्य किया है। यह संघ की निरंतरता और संकल्प शक्ति का परिचायक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माधव नेत्रालय प्रीमियम सेन्टर की नई विस्तारित भवन की आधारशिला रखी। यह संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी गोलवलकर की याद में स्थापित किया गया है। इस सेन्टर में २५० बेड का अस्पताल, १४ आउट पेशेंट डिपार्टमेन्ट (OPD) और १४ आधुनिक ऑपरेशन थिएटर होंगे। प. पू. डॉ. हेडगेवार, श्री गुरुजी और पुज्य बाबासाहब आम्बेडकर को श्रद्धांजली उल्लेखनीय है कि इस समारोह के पूर्व सुबह नागपुर आगमन के पश्चात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी इनके समाधि का दर्शन कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दौरान सरसंघचालक डॉ. मोहनजी भागवत, पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी, मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी उपस्थित थे। इसके पश्चात प्रधानमंत्री ने दीक्षाभूमि जाकर पुज्य डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर जी के स्मारक के दर्शन किए और उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में देश के इतिहास, भक्ति आंदोलन में संतों की भूमिका, संघ की नि:स्वार्थ कार्य प्रणाली, देश के विकास, युवाओं में धर्म-संस्कृति, स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार, शिक्षा, भाषा और प्रयागराज महाकुम्भ की चर्चा की। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सम्बोधन में कहा कि माधव नेत्रालय है तो दृष्टि की बात स्वाभाविक है। जीवन में दृष्टि ही दिशा देती है। वेदों में भी यह कामना की गई है कि हम सौ वर्ष तक देखें। यह दृष्टि केवल बाह्य नहीं, बल्कि अन्तर्दृष्टि भी होनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा, “राष्ट्रयज्ञ के इस पावन अनुष्ठान में आने का मुझे सौभाग्य मिला। आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का यह दिन बहुत विशेष है। आज से नवरात्रि का पवित्र पर्व शुरू हो रहा है। देश के अलग-अलग कोनों में गुड़ी पड़वा और उगादि का त्योहार मनाया जा रहा है। आज भगवान झूलेलाल और गुरु अंगद देव का अवतरण दिवस भी है। यह हमारे प्रेरणा पुंज, परम पूजनीय डॉक्टर साहब की जयन्ती का भी अवसर है। इसी वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गौरवशाली यात्रा के १०० वर्ष भी पूरे हो रहे हैं। इस अवसर पर मुझे स्मृति मन्दिर जाकर पूज्य डॉक्टर साहब और पूज्य गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर मिला।

आज स्वास्थ्य के क्षेत्र में देश जिस तरह काम कर रहा है, माधव नेत्रालय उन प्रयासों को और आगे बढ़ा रहा है। देश के सभी नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देना हमारी प्राथमिकता है। गरीब से गरीब व्यक्ति को भी बेहतरीन इलाज मिले, कोई भी देशवासी जीवन जीने की गरिमा से वंचित न रहे। जो बुजुर्ग अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर चुके हैं, उन्हें इलाज की चिंता न सताए, ऐसी परिस्थितियों में उन्हें न जीना पड़े—यही सरकार की नीति है। आयुष्मान भारत योजना के तहत करोड़ों लोगों को मुफ्त इलाज की सुविधा मिल रही है। हजारों जनऔषधि केंद्र देश के गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सस्ती दवाएं उपलब्ध करा रहे हैं। देशभर में सैकड़ों डायलिसिस सेंटर मुफ्त में डायलिसिस सेवा देकर हजारों करोड़ रुपये की बचत कर रहे हैं। बीते १० वर्षों में गांवों में लाखों आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनाए गए हैं, जहां देश के सर्वश्रेष्ठ डॉक्टरों से टेलीमेडिसिन के जरिए परामर्श, प्राथमिक उपचार और आगे की चिकित्सा सहायता मिल रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने आगे कहा कि हमने न केवल मेडिकल कॉलेजों की संख्या दोगुनी की है, बल्कि एम्स संस्थानों की संख्या भी बढ़ाई है। मेडिकल सीटों की संख्या में भी दोगुनी वृद्धि की गई है, ताकि अधिक से अधिक डॉक्टर उपलब्ध हो सकें। देश के गरीब बच्चे भी डॉक्टर बन सकें, इसके लिए हमने पहली बार मातृभाषा में चिकित्सा शिक्षा उपलब्ध कराई है, जिससे वे भाषा की बाधा के बिना अपने सपने पूरे कर सकें। प्रधानमंत्री ने बल देकर कहा कि हम देव से देश, राम से राष्ट्र का मंत्र लेकर चल रहे हैं।

आधुनिक ज्ञान के साथ-साथ पारम्परिक ज्ञान भी आगे बढ़ रहा है। योग और आयुर्वेद को विश्व में नई पहचान मिली है, जिससे भारत का सम्मान बढ़ रहा है। किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कृति और चेतना के विस्तार पर निर्भर करता है। यदि हम अपने देश के इतिहास पर दृष्टि डालें, तो सैकड़ों वर्षों की गुलामी और आक्रमणों के दौरान भारत की सामाजिक संरचना को मिटाने के लिए क्रूर प्रयास किए गए। लेकिन भारत की चेतना कभी समाप्त नहीं हुई, उसकी लौ जलती रही। कठिन से कठिन दौर में भी इस चेतना को जाग्रत रखने के लिए नए सामाजिक आंदोलन होते रहे। भक्ति आंदोलन इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। मध्यकाल के उस कठिन कालखण्ड में हमारे संतों ने भक्ति के विचारों से राष्ट्रीय चेतना को नई ऊर्जा दी। गुरु नानक देव, संत कबीर, तुलसीदास, सूरदास, संत तुकाराम, संत रामदेव, संत ज्ञानेश्वर जैसे महान संतों ने अपने मौलिक विचारों से समाज में प्राण फूंके। उन्होंने भेदभाव के बंधनों को तोड़कर समाज को एकता के सूत्र में बांधा। प्रधानमंत्री मोदी ने विदर्भ के महान संत गुलाबराव महाराज को याद करते हुए कहा कि महाराष्ट्र के संत गुलाबराव महाराज को प्रज्ञा चक्षु कहा जाता था। कम आयु में ही उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी, फिर भी उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की। कैसे? उनके पास भले ही नेत्र नहीं थे, लेकिन दृष्टि थी—जो बोध से आती है, विवेक से प्रकट होती है और व्यक्ति के साथ-साथ समाज को भी शक्ति देती है। उन्होंने कहा कि संघ भी एक ऐसा संस्कार यज्ञ है, जो अन्तर्दृष्टि और बाह्य दृष्टि दोनों के लिए काम कर रहा है। बाह्य दृष्टि के रूप में माधव नेत्रालय इसका उदाहरण है, जबकि अन्तर्दृष्टि ने संघ को आकार दिया है। हमारे यहाँ कहा गया है कि हमारा शरीर परोपकार और सेवा के लिए ही है। जब सेवा संस्कार बन जाती है, तो साधना बन जाती है। यही साधना हर स्वयंसेवक की प्राणवायु होती है। यह सेवा संस्कार, यह साधना, यह प्राणवायु, पीढ़ी दर पीढ़ी हर स्वयंसेवक को तप और तपस्या के लिए प्रेरित करती है। यह उसे निरन्तर गतिमान रखती है, न थकने देती है, न रुकने देती है।

स्वयंसेवक के हृदय में एक भाव हमेशा चलता रहता है। - 'सेवा है अग्नि कुण्ड, समिधा जैसे हम जलें।' प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एक बार एक इन्टरव्यू में श्री गुरुजी ने कहा था कि संघ को प्रकाश की सर्वव्यापी कहा है। प्रकाश अंधेरे को दूर करके दूसरों को रास्ता दिखा देता है। उनकी यह सीख हमारे लिए जीवनमंत्र है। हमें प्रकाश बनकर अंधेरा दूर करना है, बाधाएं हटानी हैं, और रास्ता बनाना है। यही संघ की भावना है। आज भारत की सबसे बड़ी पूंजी हमारा युवा है। हम देख रहे हैं कि भारत का युवा आत्मविश्वास से भरा हुआ है। उसकी रिस्क-टेकिंग कैपेसिटी पहले से कई गुना बढ़ चुकी है। वह इनोवेशन कर रहा है, स्टार्टअप की दुनिया में परचम लहरा रहा है। अपनी विरासत और संस्कृति पर गर्व करते हुए आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने जोर देकर कहा कि महाकुम्भ में हमने देखा कि लाखों-करोड़ों की संख्या में युवा पीढ़ी पहुँची और सनातन परम्परा से जुड़कर गौरव से भर उठी। भारत का युवा आज देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए काम कर रहा है। मेक इन इंडिया को सफल बनाया है, लोकल के लिए वोकल हुआ है। खेल के मैदान से लेकर अंतरिक्ष की ऊँचाई तक राष्ट्र-निर्माण की भावना से ओतप्रोत युवा आगे बढ़ रहे हैं। यही युवा २०४७ के विकसित भारत की ध्वजा थामे हुए हैं। मुझे भरोसा है कि संगठन, समर्पण और सेवा की त्रिवेणी विकसित भारत की यात्रा को ऊर्जा और दिशा देती रहेगी। "वसुधैव कुटुम्बकम्" का मंत्र आज विश्व के कोने-कोने में गूंज रहा है। जब कोविड जैसी महामारी आती है, तो भारत विश्व को परिवार मानकर वैक्सीन उपलब्ध कराता है।

दुनिया में कहीं भी प्राकृतिक आपदा हो, भारत सेवा के लिए तत्पर रहता है। म्यांमार में भूकंप आया तो भारत ऑपरेशन ब्रह्मा के तहत तुरन्त मदद के लिए पहुँच गया। नेपाल में भूकम्प हो, मालदीव में जल संकट हो, भारत ने सहायता देने में क्षणभर की भी देर नहीं की। युद्ध के हालात में भी भारत दूसरे देशों के नागरिकों को भी सुरक्षित निकालकर लाता है। भारत अब ग्लोबल साउथ की आवाज भी बन रहा है। विश्व में बंधुत्व और सेवा की यह भावना हमारे संस्कारों का ही विस्तार है। नया भारत गुलामी की जंजीरों को छोड़कर स्वाभिमान के साथ बढ़ रहा है। “मैं नहीं, हम। अहं नहीं, वयं।” जब प्रयासों में मैं नहीं, हम की भावना होती है, जब राष्ट्र प्रथम का भाव सर्वोपरि होता है, जब नीतियों और निर्णयों में देशवासियों का हित ही सबसे बड़ा होता है, तब उसका प्रभाव और प्रकाश सर्वत्र दिखाई देता है। आज भारत उन बेड़ियों को तोड़ रहा है, जिनमें वह उलझा था। भारत कैसे गुलामी की मानसिकता और पुरानी निशानियों को छोड़कर आगे बढ़ रहा है, यह हम सब देख रहे हैं। अब राष्ट्रीय गौरव के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को नीचा दिखाने के लिए बनाए गए कानून अब बदले जा चुके हैं। दंड संहिता की जगह अब भारतीय न्याय संहिता लागू हुई है। राजपथ अब कर्तव्य पथ बन चुका है। यह सिर्फ नाम का बदलाव नहीं, बल्कि मानसिकता का परिवर्तन है। हमारी नौसेना के ध्वज में गुलामी का चिह्न था, जिसे हटाकर अब छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रतीक को स्थान दिया गया है। अण्डमान द्वीप, जहाँ वीर सावरकर ने राष्ट्र के लिए यातनाएं सहीं, जहां नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने आजादी का बिगुल फूंका। उन द्वीपों के नाम अब आजादी के नायकों की याद में रखे गए हैं। यह नया भारत गुलामी की जंजीरों को पीछे छोड़कर राष्ट्रीय स्वाभिमान की ओर आगे बढ़ रहा है।

माधव नेत्रालय के पिछे संघ विचार की प्रेरणा है और यह शुद्ध सात्विक प्रेम पर आधारित है Iप. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा कि मानव नेत्रालय के नए प्रीमियर सेन्टर का शिलान्यास भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के हाथों हो रहा है। यह अत्यन्त शुभयोग है। शुभयोग के लिए तपस्या करनी पड़ती है। डॉ. भागवतजी ने आगे कहा कि गत तीन दशकों से माधव नेत्रालय ने अपने नेत्र चिकित्सा सेवा से समाज में प्रकाश फैलाया है। सामान्य जनों के जीवन को अपने चिकित्सा के माध्यम से आलोकित किया है। इस प्रकल्प में लगे स्वयंसेवकों ने बड़े समर्पित भाव से सेवा की है। हम सभी माधव नेत्रालय के इस तपस्या के साक्षी हैं। तपस्या से पुण्य अर्जित होता है, पुण्य से फल मिलता है। लेकिन वह फल अपने लिए न रखते हुए उसका विनियोग लोक कल्याण के लिए ही करना इस वृती से वह तपस्या आगे चलती है। माधव नेत्रालय के पीछे संघ विचार की प्रेरणा है। यह प्रेरणा स्वार्थ की नहीं, भय या प्रतिक्रिया की भी नही, न कोई मजबूरी है। वरन शुद्ध सात्विक प्रेम ही अपने कार्य का आधार है। यह समाज मेरा है, समाज के लोग मेरे अपने हैं, यह दृष्टि संघ के शाखाओं मिलती है। इसलिए संघ के स्वयंसेवक पूरी प्रामाणिकता से, निःस्वार्थ भाव से, तन-मन-धन से समाज के लिए कार्य करता है। डॉ. मोहन जी भागवत ने बल देकर कहा कि आज पूरे देश में डेढ़ लाख से अधिक सेवा प्रकल्पों के माध्यम से संघ समाज में सेवाकार्य कर रहा है। समाज के लिए हर कष्ट उठाकर निःस्वार्थ भाव से सेवाकार्य करना, यही संघ की प्रेरणा है। संघ के स्वयंसेवक प्रतिदिन १ घण्टा शाखा से ऊर्जा प्राप्त करता है और उस ऊर्जा का उपयोग समाज के हित के लिए करता है।

संघ के प्रचारकों और कार्यकर्ताओं के समर्पण, अनुशासन और देशभक्ति के अनेक उदाहरण हमारे समक्ष हैं। इन प्रचारकों की निःस्वार्थ सेवा और तपस्या ने संघ को केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक सशक्त विचारधारा बना दिया है।संघ केवल हिन्दू समाज को संगठित करने का ही कार्य नहीं करता, बल्कि प्रत्येक स्वयंसेवक में राष्ट्रभक्ति, अनुशासन और आत्मीयता की भावना भी जाग्रत करता है। संघ की यह साधना भारत को एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की दिशा में निरंतर आगे बढ़ रही है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का एक प्रमुख सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है, जिसकी स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गई थी। यह संगठन भारतीय समाज में राष्ट्रवाद, अनुशासन, और सामाजिक सेवा के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए कार्यरत है। संघ की कार्यप्रणाली, उसके प्रचारकों का त्याग, समाज में उसकी भूमिका, और अनुशासन इसके महत्वपूर्ण पहलू हैं।संघ की स्थापना का मूल उद्देश्य भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को पुनर्जीवित करना था। 1925 में जब डॉ. हेडगेवार ने संघ की नींव रखी, तब उन्होंने इसे एक ऐसे संगठन के रूप में स्थापित किया, जो भारतीय समाज को एकजुट कर सके और देशभक्ति की भावना को प्रबल कर सके। उन्होंने माना कि भारत को आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनाने के लिए एक संगठित समाज की आवश्यकता है।

आज संघ न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, और अन्य देशों में संघ की शाखाएँ कार्यरत हैं। संघ की विचारधारा और उसकी कार्यप्रणाली आधुनिक भारत में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कि उसकी स्थापना के समय थी।संघ ने भारतीय राजनीति, समाज, और संस्कृति में गहरी पैठ बनाई है। इसके स्वयंसेवक विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं, और इसका प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है।संघ केवल एक संगठन नहीं, बल्कि एक विचारधारा है जो समाज को संगठित और मजबूत बनाने में योगदान देता है। इसकी कार्यप्रणाली, अनुशासन, और समाज सेवा के प्रति समर्पण इसे अन्य संगठनों से अलग बनाते हैं। संघ के प्रचारकों का त्याग, उसकी विचारधारा, और समाज में उसकी भूमिका इसे भारत के सबसे प्रभावशाली संगठनों में से एक बनाती है। आधुनिक भारत में संघ की प्रासंगिकता और योगदान इसे एक महत्वपूर्ण संगठन के रूप में स्थापित करते हैं।

डॉ. अमरीक सिंह ठाकुर
सहायक प्रोफेसर
हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय।

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