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समाज के जागरण कर्ता देव ऋषि नारद - विजय मान

 

आज हमारी भारतीय पत्रकारिता एक विशेष स्थिति से गुजर रही है। पत्र प्रकाशन में व्यावसायिक भावना काम कर रही है। इसके कारण उसमें एक नया मोड़ आ गया है और स्वभावत: परोक्ष रूप से पत्रकार भी उससे प्रभावित हो रहे हैं। आधुनिक पत्रकारिता में उत्सर्गों की गर्वीली दीप्ती धूमिल हो रही है। किंतु हिंदी पत्रकारिता की कहानी तपस्या, त्याग और बलिदान की कहानी ।है उसको वर्तमान उन्नत स्थिति तक पहुंचाने का श्रेय हमारे उन आचार्यों को है जिन्होंने अथक श्रम करते हुए उत्कट देश भक्ति तथा अदम्य साहस का परिचय दिया। भीषण संघर्षों में भी अपने त्यागमय जीवन आदर्शो को तिलांजलि नहीं दी।

इसके विपरीत पत्रकारिता के इस आधुनिकतम स्वरूप ने जहां उसे नए आयाम प्रदान किये वही उसमें एक प्रकार का अनोखा आकर्षण भी पैदा किया। समाज में पत्रकार को मिलने वाली प्रतिष्ठा और पत्रकारता की इस चकाचौंध के कारण इसने अब व्यवसाय का रूप ले लिया। अपनी जिंदगी मौज से गुजारने की नियत से अनेक शौकिया निहित स्वार्थीजन इस व्यवसाय की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

पत्रकारिता के साथ हमारे जिन राष्ट्र पुरुषों का नाम जुड़ता है क्या वे भी इस चकाचौंध को देखकर इसकी ओर आकर्षित हुए थे, यह प्रश्न मन में उठना स्वाभाविक है। किंतु इस प्रश्न के उत्तर की खोज में जब हम गहराई में उतरते हैं तो हमें यह दिखाई देता है कि महापुरुषों को इस बात की पूर्ण कल्पना थी कि पत्रकारिता कोई फूलों की सेज नहीं अपितु जोखिम भरा रास्ता है।

आज पत्रकारिता जिस दौर से गुजर रही है और जिस प्रकार के लोगों के हाथ में है, उनका केवल एक ही आधारभूत विचार है कि ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, चिंतन सब पश्चिम से आयात होता है। किंतु वह भूल जाते हैं कि भारतीय चिंतन तो अनादि काल से या सृष्टि के आदि से विचार करता है उसे एक परम चैतन्य ने अपने विस्तार की इच्छा प्रकट की एकोहम बहुस्यामी।

संपूर्ण सृष्टि उसी परम ब्रह्म की लीला है - विस्तार है, कण कण में उसका वास है। ईसावासयमिदं।

इसलिए प्रत्येक मनुष्य सृष्टि का रहस्य जानना चाहता है दूसरों का समाचार जानना और अपने संदेश प्रसारित करना उसकी स्वाभाविक इच्छा है। संचार को शब्द ब्रह्म की अवधारणा से जोड़ने पर सृष्टि का रहस्य प्रकट होता है। इसलिए आदि कवि वाल्मीकि को काव्य रचना की शक्ति प्राप्त हुई तो वे भी नारद जी से पूछते हैं कि किसका गुणगान करुं जो धर्मज्ञ, गुणगान सत्यवक्ता और दृढ़ प्रतिज्ञ हो ? तब नारद जी उनको राम चरित्र का परिचय कराते हैं। सत्य और ऋत के संवाद को जन-जन पहुंचने वाले आदि संवाददाता नारद हमारे वैदिक ज्ञान पौराणिक कथाओं और लोक गाथाओं में सब कहीं व्याप्त हैं।

नारद त्रिकालदर्शी और त्रिलोक्य संचारी हैं। हर युग में वह हमारे सामने हैं। सतयुग में भी अत्याचारी हिरण्यकश्यप की गर्भवती पत्नी का कयाधू को देवगुरु बृहस्पति के आश्रम में रखकर मां के गर्भ में पल रहे प्रहलाद को ईश्वर भक्ति के संस्कार की व्यवस्था कर वे भावी क्रांति की नींव डालते दिखते हैं। बालक ध्रुव को द्वादश अक्षर मंत्र देकर परम पद की प्राप्ति के लिए भी नारद ही प्रेरित करते हैं। भगवती पार्वती को शिव का वरण करने की प्रेरणा देकर और तप में लीन देवाधिदेव शिव को पार्वती से विवाह के लिए तैयार करने के लिए नारद सभी यत्न करते हैं। आदि संवाददाता नारद देव दनुज दैत्य राक्षस सभी के विश्वासपात्र थे। वे देवलोक बैकुंठ से लेकर झोपड़ी तक संचार करते हैं। भगवान राम के पास जाते हैं तो रावण से भी मिलते हैं। वह कंस को भी बताते हैं कि देवकी की कोई सी भी संतान आठवीं होकर तुम्हारा काल बन सकती है तो द्वारकाधीश श्री कृष्ण भी अपने मन का दुख केवल नारद को ही बताते हैं और नारद उनका भी मार्गदर्शन करते हैं। नारद सभी से मिलते हैं। सभी की को भक्ति की प्रेरणा देते हैं। वे समाज के जागरण कर्ता हैं। वह परम ज्ञानी है पर ज्ञान का अहंकार नहीं होने देते।

नारद जी के समाज जागरण कर्ता के इन्हीं गुणो को अपने जीवन में धारण कर जिन लोगों ने वर्तमान पत्रकारिता को पुनर्स्थापित किया उनमें सर्व श्री अंबिका प्रसाद वाजपेई, श्री बाबूराव विष्णु पराडकर तथा श्री लक्ष्मण नारायण गर्दे ,ऐसे यह तीन संपादकाचार्य थे जिन्होंने जनता की राष्ट्रीय चेतना को जागृत करके भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की सफलता में बहुमूल्य सहयोग प्रदान किया था।

इसके अतिरिक्त हनुमान प्रसाद पोद्दार भी ऐसे ही पत्रकारों की श्रेणी में श्रेष्ठ नाम है। जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए कल्याण का प्रकाशन न केवल प्रारंभ किया बल्कि उसे लंबे समय तक चलाते रहे।
श्री अरविंद आश्रम की श्री मां ने कहा था संसार के कल्याण के लिए भारत की रक्षा होनी ही चाहिए क्योंकि वही शांति और नयी विश्व व्यवस्था की ओर ले जा सकता है। संसार की भावी रचना भारत पर निर्भर है, क्योंकि भारत जीवित जागृत आत्मा है। वैचारिक जगत में आज एक रिक्तता महसूस की जा रही है। उसकी पूर्ति करने की क्षमता केवल भारतीय जीवन दर्शन में है। दुनिया के लोग भारत की ओर इसी आशा से दृष्टि लगाए बैठे हैं। भारतीय पत्रकारों की वर्तमान पीढ़ी यदि इस चुनौती को स्वीकार कर इस दिशा में अपनी रचनात्मकता और महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहती है तो उन्हें अतीत के इस राष्ट्र पुरुषों द्वारा दिखाए गए मार्ग का ही अनुसरण करना होगा।

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