सनातन की पुकार : जिझौतिया ब्राह्मण महासंघ की केंद्रीय धर्मसंसद ने जातिगत गणना को बताया आत्मबोध का माध्यम
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लौट आओ अपने मूल की ओर – यही उद्घोष गूंजा जब जिझौतिया ब्राह्मणों की केन्द्रीय धर्मसंसद में वैदिक सभ्यता की पुनर्स्थापना का शंखनाद हुआ।
वाराणसी से उज्जैन, दिल्ली से त्रिवेणी संगम तक... और फिर बुंदेलखंड की जिझौति भूमि से उठी एक आवाज—"हम कौन हैं, हमें याद है।" 2 मई वैशाख शुक्ल पंचमी, आदि शंकराचार्य की 2532वीं जयंती के पावन अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय जिझौतिया ब्राह्मण महासंघ की केन्द्रीय धर्मसंसद ने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर दिया। यह न केवल जातिगत गणना पर विचार है, बल्कि भारत की आत्मा—सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का आत्मबोध भी है।
जातिगत गणना नहीं, आत्मज्ञान है यह!
महासंघ ने केंद्र सरकार की जातिगत गणना का स्वागत करते हुए कहा—यह अवसर है, जब भारतवासी न केवल अपने धर्म, बल्कि अपने गुण-कर्म के आधार पर वर्ण को भी पहचानें। “हिंदू” लिखें अपने धर्म में और “ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र” लिखें अपने वर्ण में—यह केवल जानकारी नहीं, यह सनातन की गर्जना है कि हम अब भी जिंदा हैं, जागरूक हैं और संगठित हो रहे हैं।
राजनीतिक विभाजन का प्रतिकार
वर्तमान संविधान द्वारा बनाए गए सवर्ण, पिछड़ा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति जैसे वर्गीकरण को महासंघ ने एकमत से अस्वीकार कर दिया। धर्मसंसद का स्वर था स्पष्ट—यदि देश के हर नेता से धर्म और जाति पूछी जाए, तो सत्य सामने होगा।
"जो स्वयं को नहीं पहचानते, वो देश को कैसे विकसित करेंगे?"—यह सवाल उन सबके लिए है, जो सनातन संस्कृति को उपेक्षित करते रहे हैं।
जिझौतियाखंड का उद्बोधन
जैसे किसी भूले हुए वंश का राजा वापस लौटा हो, वैसे ही महासंघ ने विंध्य की जिझौति भूमि से आह्वान किया—
"उठो! जिझौतिया क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण, कायस्थ, धीवर, तेली, कलार और अन्य सभी! अपनी गौरवशाली परंपरा को पुनः पहचानो।"
हर उपजाति के लिए यह एक पुकार है, कि जाति केवल सामाजिक पहचान नहीं, यह आपकी आध्यात्मिक परंपरा है।
शास्त्र और शस्त्र का एकत्व
महासंघ ने "संघशक्ति कलियुगे" को स्वीकारते हुए कहा कि आज का धर्मयुद्ध केवल विचारों से नहीं, संगठन और पराक्रम से लड़ा जाएगा। आद्य शंकराचार्य की धर्मदिग्विजय यात्रा की पुनः शुरुआत का यह प्रस्ताव, शास्त्र और शस्त्र दोनों का साक्षी है।
मनुस्मृति जलाने वालों को संदेश
धर्मसंसद ने दो टूक शब्दों में कहा—"मनुवाद" और "ब्राह्मणवाद" के नाम पर फैलाया गया झूठ अब अधिक नहीं चलेगा।
“शूद्र” कोई गाली नहीं, यह गुणकर्म आधारित एक वर्ण है।
भ्रांतियों से ग्रस्त समाज को चेतावनी है—अब नरेटीव नहीं, शास्त्र चलेगा।
शंकर की जयंती पर प्रस्ताव चारों पीठों तक
महासंघ यह प्रस्ताव चारों शंकराचार्य पीठों तक भेजेगा, और भारत सरकार को भी।
यह केवल एक धर्मसभा का संकल्प नहीं, यह भारत के आत्मबोध की घोषणा है—कि हम सनातनी हैं, और हमें अब भ्रमों की गुलामी नहीं चाहिए।
जय सनातन। जय जिझौति। जय भारत।
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बहुत बढ़िया शानदार क्रांति दूत एक सशक्त निर्भीक पत्रकारिता
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