शिवपुरी में पूर्व मंत्री के परिजन की दबंगई: संघ पदाधिकारी के शोरूम में मारपीट
0
टिप्पणियाँ
शिवपुरी शहर के ठीक मध्य में स्थित ‘किसान बूट हाउस’ में जो हुआ, उसने न केवल सत्ता के नशे की सच्चाई को उघाड़ दिया, बल्कि यह भी सिद्ध कर दिया कि दल बदल लेने से संस्कार नहीं बदलते।
इस प्रतिष्ठान के संचालक उमेश शर्मा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला सह कार्यवाह हैं—यानि अनुशासन, संस्कृति और सादगी का जीवंत प्रतीक। लेकिन उनके ही शोरूम में कुछ युवाओं ने जमकर गदर मचाया। इन युवाओं में एक नाम है पूर्व मंत्री और सिंधिया निष्ठ सुरेश राठखेड़ा के भतीजे का। सत्ता से जुड़े रिश्तों का ऐसा घमंड, कि शोरूम में घुसकर नौकर की पिटाई कर डाली! न कोई डर, न कोई लिहाज, और न ही किसी कानूनी प्रक्रिया का सम्मान।
घटना सीसीटीवी में कैद हो चुकी है। प्रमाण भी है और प्रत्यक्षदर्शी भी। मगर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा में कांग्रेस छोड़कर आए नेता और उनके परिजन, अब भी उसी ‘बदले की राजनीति’, ‘धौंस-धमकी’ और ‘सत्ता के दम पर सबकुछ चलाने’ वाले मानसिक ढांचे को ढो रहे हैं?
जिस भाजपा को ‘अनुशासन का प्रतीक’ कहा जाता है, और जहां कार्यकर्ता भी अपनी वाणी और आचरण में मर्यादा का पालन करते हैं, वहां सिंधिया समर्थकों की यह बेलगाम हरकत सीधे-सीधे पार्टी के अनुशासन पर प्रश्नचिन्ह लगाती है। कांग्रेस से भाजपा में आए कई नेता, आज भी पुरानी शैली में ही राजनीति कर रहे हैं—दल बदल लिया, सोच नहीं।
किसी संघ पदाधिकारी के प्रतिष्ठान में जाकर ऐसी हरकत करना, सिर्फ एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि पूरे संघ और पार्टी की कार्यसंस्कृति पर हमला करने जैसा है। यह वही संघ है जिसके स्वयंसेवक अपनी दिनचर्या में ‘संघशक्ति कल्याणाय’ का जाप करते हैं। और यह वही भाजपाई संस्कृति है जिसमें शक्ति नहीं, सेवा को सर्वोच्च माना जाता है।
घटना के बाद शिवपुरी शहर में गली-गली में चर्चा गर्म है—‘क्या भाजपा में भी अब वही कांग्रेस संस्कृति घुस आई है?’
‘क्या सिंधिया समर्थकों के लिए भाजपा सिर्फ सत्ता का नया मंच है, जिसमें आचरण की कोई सीमा नहीं?’
यह कोई पहली बार नहीं है जब सत्ता से जुड़े परिजनों ने ऐसी दबंगई की हो, लेकिन यह पहली बार है जब संघ से जुड़े प्रतिष्ठान में ऐसी हरकत की गई है। इससे बड़ा प्रतीकात्मक तमाचा और क्या हो सकता है?
अब देखना यह है कि भाजपा इस घटना को कैसे लेती है—संघ के स्वाभिमान और पार्टी के अनुशासन की रक्षा करती है, या सत्ता के नाम पर चुप्पी साध लेती है?
शिवपुरी की जनता जवाब चाहती है—और इस बार सिर्फ पुलिसिया कार्रवाई नहीं, बल्कि संगठनात्मक उत्तरदायित्व भी तय हो।
क्योंकि अगर अब भी आंखें मूंदी गईं, तो कल शायद ये बूट हाउस नहीं, कोई मंदिर, कोई विद्यालय, या फिर कोई संघ कार्यालय निशाने पर हो सकता है।
Tags :
शिवपुरी
एक टिप्पणी भेजें