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जुलाई: फाइब्रॉएड जागरुकता माह – महिलाओं के स्वास्थ्य की चुप्पी अब टूटनी चाहिए - डॉ मनीषा यादव

 

हर साल जुलाई का महीना "फाइब्रॉएड जागरुकता माह" के रूप में मनाया जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह विषय लाखों महिलाओं के जीवन से जुड़ा है। भारत जैसी सामाजिक संरचना में, जहाँ महिलाएं अक्सर अपने स्वास्थ्य को परिवार की जिम्मेदारियों के पीछे रख देती हैं, ऐसे में गर्भाशय फाइब्रॉएड जैसी गंभीर समस्या पर खुलकर बात करना बेहद जरूरी हो जाता है।

फाइब्रॉएड एक गैर-कैसरयुक्त (non-cancerous) गांठ होती है, जो गर्भाशय की मांसपेशियों और संयोजी ऊतकों से बनती है। यह गांठें छोटी भी हो सकती हैं और बहुत बड़ी भी। कई बार ये बिना लक्षणों के होती हैं,लेकिन कई महिलाओं को भारी मासिक रक्तस्राव, पेट या पीठ में दर्द, थकावट, बार-बार पेशाब लगना, या बांझपन जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

इस बीमारी के पीछे कई कारण हो सकते हैं—जैसे हार्मोनल असंतुलन, आनुवंशिक प्रवृत्ति, मोटापा, तनाव और गलत जीवनशैली।

दुर्भाग्य की बात यह है कि महिलाएं अपने शरीर में हो रहे बदलावों को अक्सर नजरअंदाज कर देती हैं, और सोचती हैं कि यह "सामान्य" दर्द है, जो हर स्त्री को सहना ही पड़ता है।

यही सोच सबसे बड़ी बाधा है।

फाइब्रॉएड का इलाज संभव है—अगर समय रहते इसकी पहचान हो जाए। इलाज के विकल्पों में दवाइयाँ, हार्मोनल थैरेपी, मिनिमली इनवेसिव सर्जरी और अत्यधिक मामलों में गर्भाशय को निकालना तक शामिल है। लेकिन सही समय पर कदम उठाया जाए, तो ना केवल महिला की सेहत बेहतर हो सकती है, बल्कि उसकी प्रजनन क्षमता भी बचाई जा सकती है।
इस विषय पर मुंबई की वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीषा यादव कहती हैं –
"हमारे देश में अधिकतर महिलाएं दर्द और असहजता को सहती रहती हैं, क्योंकि वे इसे अपनी नियति मान बैठती हैं। फाइब्रॉएड कोई कलंक नहीं है, और ना ही इसे छुपाने की जरूरत है। समय पर जाँच और इलाज से यह पूरी तरह नियंत्रित हो सकता है। हमें ज़रूरत है जागरूकता फैलाने की, ताकि महिलाएं खुद को प्राथमिकता देना सीखें।"
इसलिए जुलाई का महीना सिर्फ एक कैलेंडर में दर्ज तारीख नहीं, बल्कि एक मौका है—महिलाओं से यह कहने का कि अब और चुप मत रहो। अपने शरीर की सुनो, उसकी परवाह करो।







डॉ मनीषा यादव
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ मुम्बई
जिला चिकित्सालय अशोकनगर मप्र




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