शिवपुरी में अतिक्रमण पर दोहरा रवैया: महादेव मंदिर की शेड हटाई, मगर सड़कों और मीट मार्केट की अव्यवस्था पर चुप्पी
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शिवपुरी शहर इस समय अव्यवस्थित अतिक्रमण, लापरवाह प्रशासन और दोहरे मानदंडों का जीवंत उदाहरण बन गया है। नगर पालिका की कार्यशैली अब सवालों के घेरे में है। जहां एक ओर धार्मिक आस्था से जुड़े स्थल पर कठोरता दिखाई जाती है, वहीं दूसरी ओर शहर की असली समस्याओं पर आंख मूंद ली जाती है।
वार्ड क्रमांक 37 स्थित प्राचीन महादेव मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए वर्षों से लगी एक सादी सी टीन शेड को नगर पालिका ने हाल ही में अतिक्रमण बताकर जबरन हटा दिया। वह टीन शेड न तो किसी रास्ते में बाधा थी, न यातायात को प्रभावित कर रही थी। वह केवल एक शांत कोने में श्रद्धालुओं के बैठने और पूजा-पाठ के काम आती थी। लेकिन उसे बिना जनभावनाओं की परवाह किए हटाना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह दिखाता है कि नगर पालिका की नजर में आस्था की कोई अहमियत नहीं।
इसके विपरीत शहर की प्रमुख सड़कों की हालत बद से बदतर हो चुकी है। कोर्ट रोड, राजेश्वरी रोड, पोहरी चौराहा, न्यू ब्लॉक, झांसी तिराहा, टेकरी रोड, एमएम चौराहा—हर जगह शाम चार बजे से रात आठ बजे तक बेतहाशा भीड़, सड़क पर खड़े ठेले, आवारा मवेशी, बीच सड़क पर खड़ी गाड़ियां और पैदल चलने तक की जगह नहीं मिलती। नगर पालिका यहां पूरी तरह मूक दर्शक बनी हुई है।
इस सबके बीच शिवपुरी का मीट मार्केट तो अतिक्रमण और गंदगी का पर्याय बन गया है। दुकानदार खुले में मीट बेच रहे हैं, पैदल चलने वालों के लिए रास्ता लगभग बंद हो चुका है। हड्डियां और कचरा नालियों में फेंका जा रहा है, जिससे नालियां जाम हो चुकी हैं और इलाके में बदबू का ऐसा आलम है कि गुजरना तक मुश्किल हो गया है। आस-पास के रहवासी नारकीय स्थिति में जीने को मजबूर हैं, परंतु नगर पालिका का कोई कर्मचारी वहां झांकने तक नहीं जाता।
पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं, हॉकर्स ज़ोन सिर्फ कागज़ों तक सीमित है, और यातायात व्यवस्था का तो नामोनिशान तक नहीं। जब कभी यातायात पुलिस नाममात्र की कार्रवाई करती है, तो उन पर पक्षपात के आरोप लग जाते हैं। यह दोहरापन प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़े करता है।
शहर की जनता अब यह सवाल पूछ रही है — क्या अतिक्रमण सिर्फ मंदिर की एक छाया देने वाली टीन शेड है? क्या सड़कों पर मची अराजकता, मीट मार्केट की गंदगी और बदबू, लोगों की दैनिक जिंदगी में बाधा नहीं है? क्या नगर पालिका की सख्ती केवल उन स्थानों तक सीमित है, जहाँ विरोध की संभावना कम हो?
अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई अगर ईमानदारी और समानता के साथ नहीं की गई तो उसका अर्थ ही खत्म हो जाता है। शिवपुरी अब किसी बयानबाज़ी नहीं, बल्कि ठोस और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग कर रहा है।
जनता अब सिर्फ आश्वासन नहीं, परिणाम चाहती है – ताकि शहर की सड़कों पर फिर से आसानी से चला जा सके, और शिवपुरी वास्तव में रहने लायक बन सके।
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