नेताओं की दाल-बाटी और पत्रकार की चुप्पी : जब कलम परोस दी जाती है थाली में
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दिवाकर की दुनाली से ✍️
रात के तीसरे पहर, चाँद भी शर्मिंदा था –
क्योंकि एक पत्रकार की कलम, आज दाल में डूबी पड़ी थी।
लंबी-चौड़ी थाली, गरमागरम बाटियाँ, मिर्ची की चटनी,
और सामने बैठा वो नेता – मुस्कराता हुआ,
मानो कह रहा हो –
"अब तो आप भी अपने ही हैं।"
पत्रकार ने मुस्कराकर थाली को देखा।
उस मुस्कान में भूख थी, पर बेचैनी भी।
उसमें स्वाद की चाह थी, पर आत्मा की चुभन भी।
कभी वो कलम तलवार सी चलती थी –
आज प्लेट में सलाद के नीचे दबी पड़ी थी।
नेताओं की दाल-बाटी खाकर कोई पत्रकार निष्पक्ष कैसे रह सकता है?
यह सवाल हवा में तैर रहा था,
पर हर निवाले के साथ वह सवाल गले से नीचे उतरता जा रहा था।
हर चटनी की बूँद में एक समझौता घुला था,
हर बाटी की परत में एक खबर दबा दी गई थी।
नेताओं ने मुस्कान में लपेट कर सत्य बेच दिया,
संगठनों ने शॉल ओढ़ाकर ईमान गिरवी रखवा दिया।
पत्रकार – अब वह सिर्फ 'प्रेस' लिखी गाड़ी में बैठा एक सजावटी चेहरा था।
जो कैमरे में चमकता था, पर मन से बुझ चुका था।
कभी वो चीख-चीखकर सवाल करता था –
अब वो माइक पकड़कर सिर हिलाता है।
कभी वो सत्ता के खिलाफ खड़ा होता था –
अब मंत्री की कुर्सी के पास बैठकर 'विशेष संवाददाता' कहलाता है।
नेता कहता है – “बाटी तो रिश्तों की गर्माहट है।”
संगठन कहता है – “दाल में नमक जितना समझौता ज़रूरी है।”
पर पत्रकार की आत्मा कहती है –
“इस नमक से ज्यादा तो मेरे पसीने में ईमान था।”
जब थाली के बदले खबर छपी,
तो पाठकों ने पूछा – “सच कहां है?”
पत्रकार ने कहा – “नेताओं की थाली में छिपा है…”
और उस दिन से, पाठक भी समझ गए –
जो पत्रकार बाटी खाता है, वह सवाल नहीं उठाता।
दाल-बाटी सिर्फ भोजन नहीं, अब पहचान बन गई है –
पत्रकार के गिरते हुए आत्मसम्मान की,
झुकती हुई रीढ़ की,
और बिकती हुई खबरों की।
विशेष दृष्टि से कहें तो –
"पत्रकारिता का पतन तब शुरू होता है जब पत्रकार, सत्ता की थाली में अपनी कलम परोस देता है।"
नेता की हँसी में जो मिठास है,
वो दरअसल एक चुप्पी का स्वाद है –
जो धीरे-धीरे आपके सच को निगल जाता है।
इसलिए आज भी कोई पूछे कि –
नेताओं और संगठनों की दाल-बाटी खाकर कोई पत्रकार निष्पक्ष कैसे रह सकता है?
तो जवाब होगा –
"रह नहीं सकता… अगर उसे थाली की गर्मी, आत्मा की आग से ज्यादा प्रिय लगे।"
वर्ना कलम वो है –
जो भूखे पेट भी जिंदा रहती है,
पर झूठ की थाली देखकर कभी झुकती नहीं।
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