लेबल

क्या पत्रकारिता के नाम पर मस्जिद के लिए पैसे ऐंठे जा रहे हैं?

 

शिवपुरी जिले की नरवर तहसील में पत्रकारिता की विश्वसनीयता को झकझोर देने वाला एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। क्या पत्रकारिता अब धमकी, वसूली और धार्मिक उन्माद फैलाने का माध्यम बनती जा रही है? यह सवाल तब और अधिक गंभीर हो जाता है जब कोई व्यक्ति स्वयं को पत्रकार बताकर न केवल ग्राम पंचायत के अधिकारियों को गालियाँ देता है, बल्कि हथियार लहराकर जान से मारने की धमकी भी देता है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, मोमिनपुरा वार्ड क्रमांक 11, नरवर निवासी कमर खान 8 जुलाई 2025 को ग्राम पंचायत सिमरिया पहुंचा था। वह सूचना के अधिकार के तहत जानकारी लेने आया था, जिसे पंचायत द्वारा विधिवत उपलब्ध भी कराया गया। लेकिन क्या यह सही है कि जानकारी मिलने के बावजूद कमर खान ने सचिव से ₹50,000 की मांग कर डाली? जब पंचायत प्रतिनिधियों ने इसकी वजह पूछी तो क्या उसने महिला सरपंच के साथ धर्मसूचक गाली-गलौच शुरू कर दी?

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सरपंच के पुत्र प्रशैलेंद्र रावत और अन्य ग्रामीणों के पहुंचने पर माहौल और तनावपूर्ण हो गया। बताया जा रहा है कि कमर खान ने कट्टा लहराकर सचिव और सरपंच को जान से मारने की धमकी दी। क्या वास्तव में पंचायत कार्यालय में ऐसा दुस्साहस हो सकता है? क्या यह एक सामान्य शिकायतकर्ता का व्यवहार है या किसी गहरी साजिश का हिस्सा?

मामले की गंभीरता इस बात से भी बढ़ जाती है कि कमर खान पर आरोप है कि उसने पंचायत टेबल पर रखे रिकॉर्ड को फाड़ दिया और पूरा बस्ता उठाकर धमकाते हुए चला गया। क्या पंचायत कार्यालय में ऐसा कृत्य सामान्य माना जा सकता है?

स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों का आरोप है कि कमर खान वर्षों से सूचना के अधिकार कानून का दुरुपयोग कर रहा है और स्वयं को पत्रकार बताकर विभिन्न पंचायतों से अवैध वसूली कर रहा है। क्या सच में RTI का उपयोग अब ब्लैकमेलिंग के हथियार के रूप में किया जा रहा है? जानकारी के अनुसार, उसके द्वारा डाली गई सैकड़ों आरटीआई में से अधिकांश झूठी और भ्रमित करने वाली हैं।

एक और चौंकाने वाला आरोप यह भी है कि कमर खान ने सरपंच पुत्र से तीन बार मुलाकात कर मस्जिद निर्माण के नाम पर चंदा माँगा। क्या यह धार्मिक सौहार्द्र के नाम पर नई किस्म की दबाव नीति नहीं है? क्या वह खुलेआम कह रहा था कि यदि राशि नहीं दी गई तो पंचायत के खिलाफ नकारात्मक कवरेज की जाएगी?

इस पूरे मामले को लेकर ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों ने पुलिस अधीक्षक शिवपुरी को ज्ञापन सौंपा है और मांग की है कि आरोपी के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर एफआईआर दर्ज की जाए। क्या अब प्रशासन इस विषय को गंभीरता से लेगा या ऐसे तत्वों को पत्रकारिता का चोला पहनकर निरंकुश होने दिया जाएगा?

इस प्रकरण ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या पत्रकारिता की पवित्रता अब कुछ लोगों के हाथों गिरवी रखी जा रही है? क्या यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि पत्रकारिता की गरिमा पर हमला नहीं है? क्या यह हिंदू महिला सरपंच और पंचायत तंत्र को भयभीत करने की साजिश नहीं है?

समाज और प्रशासन दोनों से अपेक्षा की जा रही है कि वे ऐसे मामलों में संवेदनशीलता दिखाते हुए समय पर और कठोर कार्रवाई करें। अन्यथा पत्रकारिता की आड़ में चल रहे ये स्थानीय दबंग धीरे-धीरे लोकतंत्र की जड़ों को ही खोखला कर देंगे।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें