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RSS पर अशोभनीय टिप्पणी कर फंसे कांग्रेस विधायक साहब सिंह गुर्जर – बयान ने मचाया बवाल

 

राजनीति में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन यदि मतभेदों की अभिव्यक्ति अश्लील भाषा और गली के स्तर की सोच तक पहुँच जाए, तो यह न केवल राजनीति की मर्यादा को ठेस पहुँचाता है, बल्कि उस व्यक्ति की मानसिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा देता है जो जनप्रतिनिधि कहलाने लायक होता है। कांग्रेस के ग्वालियर ग्रामीण से विधायक साहब सिंह गुर्जर का कथित बयान – "जो मर्द थे वो जंग में आए और जो हिजड़े थे वो संघ में गए" – क्या यह किसी जिम्मेदार नेता की भाषा हो सकती है? क्या यह वही कांग्रेस है जो 'संविधान' और 'लोकतंत्र' की दुहाई देकर नैतिकता की राजनीति का दावा करती है?

अगर यह वीडियो सत्य है – जिसकी हम पुष्टि नहीं करते – तो यह केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अपमान नहीं, बल्कि उन लाखों स्वयंसेवकों का अपमान है, जिन्होंने निस्वार्थ भाव से राष्ट्र सेवा में अपना जीवन समर्पित किया है। क्या किसी भी संगठन की आलोचना इस स्तर की भाषा में करना उचित है? क्या एक विधायक का इतना गिरा हुआ शब्द चयन दर्शाता है कि वह मानसिक रूप से कितने असुरक्षित और घृणा से भरे हुए हैं?

क्या यह बयान ट्रांसजेंडर समुदाय का भी अपमान नहीं है? क्या यह सिर्फ संघ पर हमला है या भारतीय समाज की बुनियादी गरिमा पर हमला है? जब कोई विधायक "हिजड़ा" जैसे शब्दों का उपयोग तिरस्कार और उपहास के रूप में करता है, तो क्या यह समाज के एक संवेदनशील वर्ग के खिलाफ घोर अपमान नहीं है?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से असहमति हो सकती है, पर वह संगठन देश की सेवा, शिक्षा, आपदा राहत और सामाजिक समरसता जैसे कार्यों के लिए जाना जाता है। ऐसे में इस तरह की ओछी टिप्पणी क्या उस कुंठा का परिणाम नहीं है जो राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रति असहिष्णुता से जन्म लेती है? कांग्रेस पार्टी क्या इस बयान को अपना समर्थन मानती है? या यह विधायक अपने निजी एजेंडे के तहत संघ पर विषवमन कर रहे हैं? क्या राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और प्रियंका गांधी इस बयान पर चुप रहेंगे या इसे खारिज करेंगे?

देश जानना चाहता है – क्या कांग्रेस पार्टी अब अश्लीलता और द्वेष फैलाने वालों की शरणस्थली बन गई है? क्या कांग्रेस की नई राजनीति का आधार अब केवल संघ और राष्ट्रवादियों को गाली देना रह गया है? क्या जनप्रतिनिधि बनने का अर्थ अब समाज को बांटने वाली, हिंसक भाषा बोलने की छूट हो गया है?

देश का युवा जाग चुका है, उसे यह समझ है कि शब्द केवल विचार नहीं दर्शाते, बल्कि चरित्र भी उजागर करते हैं। और जब कोई नेता इस स्तर पर गिरकर राष्ट्रभक्तों पर अशोभनीय भाषा का प्रयोग करता है, तो समाज उसे इतिहास के कचरे में फेंक देता है।

अब प्रश्न जनता का है – क्या आप ऐसे नेताओं को माफ करेंगे जो संघ जैसे राष्ट्रसेवी संगठन को "हिजड़ों की संस्था" कहने का दुस्साहस करते हैं? या फिर इस घृणित सोच को लोकतंत्र से बाहर का रास्ता दिखाएँगे? आपका मौन, उनके विष वमन को शक्ति देगा। और आपकी जागरूकता – राष्ट्र के सम्मान की रक्षा।

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