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वरिष्ठ रंगकर्मी ब्रजेश अग्निहोत्री की पीड़ा: शहर की शर्मनाक तस्वीर

 

शिवपुरी की गलियों में जब भी रंगमंच, कला और सामाजिक चेतना की बात होती है तो सबसे पहले जिस नाम का स्मरण होता है, वह है ब्रजेश अग्निहोत्री। यह वही शख्सियत हैं जिन्होंने सत्तर साल की उम्र में भी अपनी कला, अपने विचार और अपने संघर्षों से समाज को लगातार आईना दिखाया है। जिनकी पहचान केवल रंगकर्मी भर की नहीं, बल्कि एक सजग सामाजिक योद्धा की भी रही है। कभी शहर की प्यास बुझाने के लिए जल क्रांति सत्याग्रह में तपती धूप के बीच भूख हड़ताल पर बैठे ब्रजेश अग्निहोत्री आज उसी पानी की मार से दो-दो हाथ कर रहे हैं। उस शहर को जिसने उनकी तपस्या का प्रतिफल प्यास बुझाकर पाया, वही शहर आज उन्हें भुला चुका है और उनका परिवार बरसाती गंदे पानी के दलदल में कैद होकर जीने को मजबूर है।

उनके घर के सामने नालियों का अभाव है। बारिश का पानी रुककर तालाब का रूप ले चुका है। हालात यह हैं कि पूरा परिवार अपने ही घर में कैद होकर रह गया है। बच्चों की पढ़ाई ठप हो चुकी है, वे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। बुजुर्ग बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। घर तक पहुंचने के लिए परिवार के लोग लंबा चक्कर काटकर आ-जा रहे हैं। दिन-ब-दिन जमा होता पानी अब बदबू, मच्छरों और बीमारियों का अड्डा बन गया है। घर की दीवारें और नींव लगातार भीगकर कमजोर होती जा रही हैं। एक साधारण-सी नगर पालिका की जिम्मेदारी पूरी न होने का दंड एक ऐसा परिवार भुगत रहा है, जिसने पूरी जिंदगी समाज और शहर के लिए समर्पित कर दी।

सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि आखिर कहाँ है? क्षेत्र के पार्षद वेदांश सविता का नाम तो कागज़ों में है, पर चेहरा तक आज तक लोगों ने नहीं देखा। ब्रजेश अग्निहोत्री ने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने कभी अपने पार्षद को इलाके में कदम रखते नहीं देखा। यह कैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था है, जहाँ जनता का प्रतिनिधि केवल नाम का रह जाता है और नागरिक अपने ही घर तक पहुंचने के लिए तरसते हैं? जनता ने जिन्हें चुनकर अपनी उम्मीदें सौंपीं, वही आज उनके दुख-दर्द से बेखबर गायब हैं।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल उन पर है जो खुद को जनता का ठेकेदार और समाज का मसीहा बताने का दम भरते हैं। कहाँ हैं वे लोग जो पब्लिक पार्लियामेंट नामक संस्था के सर्वेसर्वा बनकर जल क्रांति सत्याग्रह के नाम पर ब्रजेश अग्निहोत्री जैसे बुजुर्गों को मई-जून की तपती धूप में भूख हड़ताल पर बैठाकर अपनी राजनीति चमकाते रहे? कहाँ हैं वे ठेकेदार, जो शहर की प्यास बुझाने का श्रेय लेने में आगे थे, लेकिन जिन्होंने निजी हित साध लिए, अपने मकसद पूरे कर लिए और उसके बाद इन सच्चे समाजसेवियों को दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंका? आज जब वही ब्रजेश अग्निहोत्री गंदे पानी में डूबे हैं, तब उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। यह केवल उपेक्षा नहीं, यह छल है, यह विश्वासघात है और यह समाज के प्रति सबसे बड़ा अपराध है।

शिवपुरी की गलियाँ आज नालियों से खाली हैं लेकिन लोगों के दिल आक्रोश से भरे हुए हैं। जिन गलियों में कभी ब्रजेश अग्निहोत्री ने रंगमंच की मशाल जलाई थी, सामाजिक चेतना की अलख जगाई थी, उन्हीं गलियों में आज सड़ांध और अंधेरा पसरा है। यह केवल नगर पालिका की लापरवाही नहीं, यह पूरी व्यवस्था की असफलता है।

यह दृश्य केवल ब्रजेश अग्निहोत्री का नहीं, बल्कि पूरे शहर का आईना है। सोचिए, जब समाज और शहर की भलाई के लिए अपने जीवन का बड़ा हिस्सा न्योछावर करने वाले लोग ही इस तरह की लाचारी में जीने को मजबूर हैं, तो आम नागरिक किस हाल में होंगे? यह केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि इस व्यवस्था की सबसे शर्मनाक तस्वीर है, जो जनता की उम्मीदों को पैरों तले कुचलकर कुर्सियों पर ऐश कर रही है।


अब सवाल शहरवासियों और जिम्मेदार अधिकारियों से है—क्या वे तब तक चुपचाप तमाशबीन बने रहेंगे, जब तक यह बुजुर्ग कलाकार अपने ही घर की नमी और बीमारियों में दम घुटता हुआ जीवन बिताने के लिए मजबूर न हो जाए? क्या उनकी पीड़ा को अनसुना करते रहेंगे, या फिर आगे आकर इस समस्या का समाधान करेंगे?


शहर की गलियों में आज भले ही नालियाँ न हों, लेकिन लोगों के दिलों में आक्रोश की बाढ़ जरूर बह रही है। और अगर यह आक्रोश सैलाब बनकर फूटा, तो यह गंदा पानी केवल घरों की नींव ही नहीं, बल्कि सत्ता की कुर्सियों तक बहाकर ले जाएगा।

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