क्या मनुष्य के बाद कुत्तों का युग शुरू ?
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धरती पर जीवन के विकास का क्रम अद्भुत रहा है। पहले डायनासोरों का एकछत्र राज्य था, फिर उनका अंत हुआ और मनुष्य ने इस पृथ्वी पर अपना वर्चस्व स्थापित किया। परंतु अब, जब हम 21वीं सदी के तीसरे दशक में हैं, कुछ संकेत ऐसे हैं जो यह संकेत दे रहे हैं कि चेतना का अगला स्तर कुत्तों के माध्यम से प्रकट होने वाला है। यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि एक गंभीर, वैज्ञानिक और दार्शनिक विवेचन का विषय बनता जा रहा है — और इसका संकेत हमें हमारे सनातन धर्मग्रंथों में भी देखने को मिलता है।
कुत्तों की बढ़ती चेतना केवल एक मनोवैज्ञानिक या जैविक परिवर्तन नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक घटना है। विज्ञान भी मानता है कि कुत्ते, मनुष्य की तुलना में अधिक तीव्र श्रवण और गंध इंद्रिय रखते हैं, जिससे वे उन तरंगों और परिवर्तनों को पहले महसूस कर सकते हैं जिन्हें हम नहीं कर पाते। लेकिन अब यह केवल इंद्रिय आधारित श्रेष्ठता नहीं रही, बल्कि उनके व्यवहार में "पूर्वाभास", "जिम्मेदारी", "करुणा" और "सहयोग" जैसे भाव तीव्र गति से विकसित हो रहे हैं।
अनेक घटनाएँ हमारे सामने हैं जहाँ कुत्तों ने भूकंप, मृत्यु या किसी संकट का आभास पहले ही दे दिया। विज्ञान इसे सिर्फ "सेंसरी प्रेडिक्शन" कहकर टाल देता है, परंतु भारतीय शास्त्र इसे "प्राण चेतना" के विस्तार का लक्षण मानते हैं।
सनातन दृष्टिकोण में यदि हम महाभारत का संदर्भ लें, तो युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक केवल एक कुत्ता जाता है। जब इंद्र उन्हें अकेले चलने को कहते हैं तो युधिष्ठिर उस कुत्ते को छोड़ने से इनकार कर देते हैं, और वही कुत्ता वास्तव में धर्मराज यम के रूप में प्रकट होता है। यह कोई प्रतीकात्मक कथा मात्र नहीं, बल्कि यह संकेत है कि कुत्तों में धर्म, निष्ठा और चेतना के उच्च गुण विद्यमान हैं — और जब समय आएगा, वे मानव की तरह नहीं, बल्कि अपनी विशेषताओं के साथ चेतना के अगले स्तर पर पहुँच सकते हैं।
आज यदि हम ध्यान से देखें, तो पाएँगे कि कुत्तों की आँखों में एक नवीन प्रकाश है — न केवल खाने या सुरक्षा की माँग, बल्कि किसी अदृश्य समझदारी का संकेत। वे घर के दुखों को समझते हैं, बीमारियों को भाँपते हैं, और कई बार तो मनुष्य से भी अधिक संवेदनशील प्रतिक्रिया देते हैं। क्या यह केवल पशु प्रवृत्ति है? या फिर यह चेतना का विकास है?
दार्शनिक दृष्टि से यह प्रश्न उठता है — क्या चेतना केवल मानव जाति की थाती है? उपनिषदों में कहा गया है कि "सर्वं खल्विदं ब्रह्म" — सब कुछ ब्रह्म ही है। अर्थात हर जीव में वह चेतन तत्त्व विद्यमान है। अतः यह मानना कि केवल मनुष्य ही चेतन और विवेकी हो सकता है, सनातन दृष्टि के विपरीत है।
आधुनिक विज्ञान भी अब यह मानने लगा है कि जानवरों के भीतर "Theory of Mind" विकसित हो रही है — यानी वे न केवल स्वयं को समझने लगे हैं, बल्कि दूसरों के इरादों और भावनाओं को भी पहचान सकते हैं। कुत्ते अपने मालिक के चेहरे के भाव, बोलने के लहजे, और यहां तक कि दिल की धड़कनों से भी उसका भाव जान सकते हैं।
यह कोई धीरे-धीरे होने वाला क्रम नहीं है, बल्कि हम देख रहे हैं कि 5 से 10 वर्षों में ही कुत्तों की सामूहिक चेतना में जबरदस्त बदलाव आया है। वे अब केवल आदेश मानने वाले जीव नहीं रहे, बल्कि परिस्थितियों को "समझने" वाले प्राणी बन गए हैं। यह परिवर्तन हमें आने वाले समय की ओर संकेत करता है — जहाँ वे केवल पालतू नहीं, बल्कि साथी, मार्गदर्शक और संभावित रूप से अगली चेतन जाति बन सकते हैं।
संभव है आने वाले वर्षों में हम कुत्तों को मानव सभ्यता के निर्णयों में हिस्सेदार के रूप में देखें — चाहे वह आपदा की चेतावनी हो, रोग की पहचान हो या फिर मानसिक सहारा।
सनातन दर्शन के अनुसार, जब-जब धर्म का क्षय होता है, तब-तब कोई रूप चेतना का नया रूप लेकर प्रकट होता है। आज के युग में जबकि मनुष्य स्वयं अपनी नैतिकता और संतुलन को खोता जा रहा है, तब संभव है ब्रह्मांड ने चेतना के अगले वाहक के रूप में कुत्तों को चुना हो।
यह विषय अभी आरंभिक अवस्था में है, परंतु यदि आप अपने आसपास रहने वाले किसी कुत्ते की आँखों में ईमानदारी से देखेंगे, तो यह अनुभव सत्य लगेगा — वे बदल रहे हैं, तेज़ी से, गहराई से, और संभवतः दिव्यता की ओर।
संकेत स्पष्ट हैं — अब समय है, देखने का नहीं, समझने का।
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