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Asia Cup 2025: धर्म और क्रिकेट का टकराव

 


एशिया कप 2025 का आयोजन केवल क्रिकेट का उत्सव भर नहीं है, बल्कि यह एशिया की बदलती धार्मिक और सांस्कृतिक तस्वीर का आईना है। जब मैदान पर आठ देशों की टीमें उतरीं, तो खेल से पहले उनके खिलाड़ियों की सूची ने ही एक गहरी सच्चाई सामने रख दी। यह सच्चाई यह है कि एशिया में किस धर्म का प्रभाव बढ़ रहा है और किसका सिकुड़ता जा रहा है। आँकड़ों की भाषा कभी नीरस लग सकती है, लेकिन कभी-कभी यही आँकड़े भविष्य का वह आईना सामने रख देते हैं, जिसे हम रोज़मर्रा की हलचल में अनदेखा कर देते हैं। क्रिकेट के आँकड़े अब केवल चौकों-छक्कों की गिनती नहीं रहे, बल्कि यह समाज, राजनीति और संस्कृति की गहराई में छिपे सत्य को उजागर करने लगे हैं।


भारत की टीम में कुल बीस खिलाड़ियों का चयन हुआ है। इनमें 14 हिंदू खिलाड़ी हैं जिनमें सूर्यकुमार यादव, शुभमन गिल, अभिषेक शर्मा, तिलक वर्मा, हार्दिक पांड्या, शिवम दुबे, अक्षर पटेल, जितेश शर्मा, कुलदीप यादव, हर्षित राणा, रिंकू सिंह, प्रसिद्ध कृष्णा, वाशिंगटन सुंदर और यशस्वी जायसवाल जैसे नाम शामिल हैं। इनके साथ 3 सिख खिलाड़ी हैं—जसप्रीत बुमराह, अर्शदीप सिंह और ध्रुव जुरेल। वहीं एक ईसाई खिलाड़ी है—संजू सैमसन। यह विविधता भारत की सनातनी आत्मा का प्रतीक है, जो सहिष्णुता और बहुलता को अपने अस्तित्व का हिस्सा मानती है। परंतु यही विविधता कभी-कभी कमजोरी भी बन जाती है क्योंकि भारत के पड़ोसी राष्ट्र अपनी टीमों में केवल धार्मिक एकरूपता को ही स्थान देते हैं।
पाकिस्तान की सत्रह सदस्यीय टीम पूरी तरह से मुस्लिम खिलाड़ियों से बनी है। सलमान अली आगा, शाहीन अफरीदी, हारिस रऊफ, फखर जमान, हसन अली, मोहम्मद हारिस, मोहम्मद नवाज और बाकी सभी—सत्रह के सत्रह खिलाड़ी केवल मुस्लिम। अफगानिस्तान का भी यही हाल है—राशिद खान, रहमानुल्लाह गुरबाज, इब्राहिम जादरान, मोहम्मद नबी, मुजीब उर रहमान, नूर अहमद, नवीन-उल-हक… नाम बदलते हैं परंतु धर्म नहीं। अफगानिस्तान की पूरी टीम भी सत्रह के सत्रह खिलाड़ी मुस्लिम।
बांग्लादेश की सोलह सदस्यीय टीम में लिट्टन दास जैसे एक हिंदू खिलाड़ी को छोड़ दिया जाए, तो बाकी सभी पंद्रह खिलाड़ी मुस्लिम हैं। यानी बांग्लादेश भी लगभग पाकिस्तान और अफगानिस्तान की राह पर चल रहा है, जहाँ दूसरे धर्म की उपस्थिति नगण्य है।
श्रीलंका का परिदृश्य इससे थोड़ा अलग है। वहाँ की सोलह सदस्यीय टीम में 6 बौद्ध, 6 ईसाई और 2 हिंदू खिलाड़ी हैं। चरिथ असलांका, पथुम निसांका, वानिंदु हसरंगा जैसे खिलाड़ी बौद्ध धर्म से आते हैं, जबकि कुसल मेंडिस, कुसल परेरा, चमिका करुणारत्ने जैसे नाम ईसाई धर्म से जुड़े हैं। यह मिश्रण दर्शाता है कि वहाँ अभी भी धार्मिक विविधता को स्थान दिया जाता है, यद्यपि बौद्ध धर्म का ऐतिहासिक प्रभाव अब भी बना हुआ है।
हांगकांग की बीस सदस्यीय टीम में 14 मुस्लिम खिलाड़ी हैं। इनमें यासिम मुर्तजा, बाबर हयात, जीशान अली, मोहम्मद ऐजाज खान जैसे नाम शामिल हैं। इनके अलावा 3 हिंदू खिलाड़ी जैसे आयुष आशीष शुक्ला और 3 ईसाई खिलाड़ी जैसे मार्टिन कोएट्जी भी हैं। यह अनुपात बताता है कि यहाँ भी मुस्लिम खिलाड़ियों का वर्चस्व बढ़ रहा है।
ओमान की सत्रह सदस्यीय टीम में 11 मुस्लिम खिलाड़ी हैं, जैसे हम्माद मिर्जा, आमिर कलीम, मोहम्मद नदीम, जिक्रिया इस्लाम, मोहम्मद इमरान। इनके साथ 5 हिंदू खिलाड़ी हैं—जतिंदर सिंह, विनायक शुक्ला, आशीष ओडेडेरा, आर्यन बिष्ट और करण सोनावले। इसके अलावा एक सिख खिलाड़ी—समय श्रीवास्तव भी शामिल हैं। यह मिश्रण बताता है कि ओमान में प्रवासी हिंदुओं और सिखों की उपस्थिति खेल तक पहुँच चुकी है।
यूएई की सत्रह सदस्यीय टीम में 12 मुस्लिम खिलाड़ी हैं—मुहम्मद वसीम, हैदर अली, मतिउल्लाह खान, मुहम्मद फारूक आदि। इसके अलावा 4 हिंदू खिलाड़ी जैसे अर्यांश शर्मा, ध्रुव पाराशर, हर्षित कौशिक और राहुल चोपड़ा शामिल हैं। एक ईसाई खिलाड़ी एथन डिसूजा और एक सिख खिलाड़ी सिमरनजीत सिंह भी मौजूद हैं। यह अनुपात साफ करता है कि यहाँ मुस्लिम बहुलता कायम है, लेकिन प्रवासी भारतीय और अन्य समुदाय भी अपनी जगह बनाए हुए हैं।
अब यदि सभी देशों के आँकड़ों को मिलाकर देखें तो कुल 140 खिलाड़ियों में 86 मुस्लिम, 31 हिंदू, 11 ईसाई, 7 बौद्ध और 5 सिख हैं। प्रतिशत में यह अनुपात 61.43% मुस्लिम, 22.14% हिंदू, 7.86% ईसाई, 5% बौद्ध और 3.57% सिख बनता है। इस संपूर्ण तस्वीर से यह बिल्कुल साफ हो जाता है कि एशिया में इस समय सबसे बड़ा और तेज़ी से बढ़ता हुआ धार्मिक प्रभाव इस्लाम का है। हिंदू, बौद्ध और सिख जैसे धर्म, जो कभी इस महाद्वीप की आत्मा हुआ करते थे, अब संख्यात्मक रूप से पिछड़ते जा रहे हैं। ईसाईयत की उपस्थिति कुछ क्षेत्रों तक सीमित है, परंतु वह भी हिंदू और बौद्ध की तुलना में अधिक संगठित और स्थिर दिख रही है।
यह केवल खेल का आँकड़ा नहीं है, बल्कि समाज, राजनीति और संस्कृति की गहरी सच्चाई का प्रतिबिंब है। यदि खेल जैसी प्रतिस्पर्धाओं में भी एक धर्म का इतना व्यापक प्रभुत्व दिखाई देने लगे, तो समझ लेना चाहिए कि यह केवल मैदान की जीत-हार नहीं, बल्कि विचारों और संस्कृतियों की भी लड़ाई है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश पूरी तरह एकरंगी तस्वीर पेश कर रहे हैं, जहाँ किसी अन्य धर्म को स्थान नहीं। वहीं भारत जैसे देश अपनी सनातनी आत्मा के कारण सभी को साथ लेकर चलते हैं, लेकिन यही विविधता कभी-कभी उनकी सुरक्षा और पहचान के लिए चुनौती बन सकती है।
भारत को यह समझना होगा कि केवल सहिष्णुता से काम नहीं चलेगा। उसे अपनी पहचान को शक्ति और स्वाभिमान से जोड़ना होगा। क्रिकेट में दिखने वाली यह धार्मिक तस्वीर हमें चेतावनी देती है कि इस्लाम का प्रभाव एशिया में सबसे तेज़ी से विस्तार कर रहा है। हिंदू, बौद्ध और सिख समुदायों के लिए यह एक पुकार है कि वे अपनी परंपराओं, संस्कृति और जड़ों को और अधिक मज़बूत करें।

क्रिकेट केवल खेल नहीं है, बल्कि समाज की गहराई का दर्पण है। जब मैदान पर मुस्लिम खिलाड़ी 62 प्रतिशत तक पहुँच जाएँ और हिंदू मात्र 22 प्रतिशत पर सिमट जाएँ, तो यह केवल खेल की सांख्यिकी नहीं रह जाती, बल्कि भविष्य की चेतावनी बन जाती है। एशिया कप 2025 का यह परिदृश्य हमें यही बताता है कि यह समय केवल बैट और बॉल का नहीं, बल्कि धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए सजग रहने का है।

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