ज्योतिरादित्य सिंधिया ने शिवपुरी में स्वघोषित पत्रकारों की खोली पोल
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शिवपुरी की सरजमीं शुक्रवार को एक ऐतिहासिक पल की गवाह बनी जब प्रेस क्लब द्वारा आयोजित कार्यशाला में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पत्रकारों को संबोधित किया। यह महज़ भाषण नहीं था बल्कि एक आईना था जिसमें पत्रकारों को अपनी असल तस्वीर देखने का अवसर मिला। सिंधिया ने अपने अंदाज़ में बेबाकी से कहा कि आज हम मोबाइल के डिब्बे में कैद होकर रह गए हैं। यह टिप्पणी जैसे ही सभागार में गूंजी, कई चेहरे झेंप से लाल पड़ गए। सच भी यही है कि आज पत्रकारिता का बड़ा हिस्सा मोबाइल स्क्रीन और इंस्टेंट कॉपी तक सिमटकर रह गया है। खबरें आती हैं और चली जाती हैं, मगर गहराई और विश्लेषण गायब हो गया है।
सिंधिया ने शिवपुरी के वरिष्ठ पत्रकार प्रेमनारायण नागर को याद करते हुए कहा कि वह हमेशा पैड और पेन लेकर चलते थे। चाहे सवाल कितना भी कटु क्यों न हो, वह बिना किसी द्वेष के पूछते थे। यही पत्रकारिता का असली स्वरूप है—न्यूट्रल, निष्पक्ष और प्रामाणिक। उनका उदाहरण देकर सिंधिया ने यह संदेश दिया कि आज की पत्रकारिता में वही आत्मा गायब है। अब न तो पैड-पेन का रोमांच बचा है और न ही निर्भीक प्रश्न पूछने का साहस। सबकुछ डिजिटल हो गया है लेकिन आत्मा सूख चुकी है।
सिंधिया ने वरिष्ठ उपन्यासकार प्रमोद भार्गव का नाम लेकर कहा कि उनके हर लेख में रिसर्च झलकती है। यह अनुसंधान और नवाचार का प्रमाण है। उन्होंने इस तथ्य की ओर इशारा किया कि आज भी गंभीर लेखन और शोध आधारित पत्रकारिता जीवित है, लेकिन ऐसे उदाहरण अब गिनती के रह गए हैं। सिंधिया ने साफ कहा कि पत्रकारिता में केवल रिपोर्टिंग ही नहीं बल्कि एनालिसिस की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। आज के समय में जब सबकुछ इंस्टेंट हो रहा है, उस दौर में विश्लेषण और रिसर्च ही पत्रकारिता की असली जान है।
उन्होंने आगे कहा कि पत्रकार समाज तक रोल मॉडल और अच्छे उदाहरण पहुँचाते हैं। पत्रकारों के पास ज्ञान की ताकत होती है और यह ज्ञान समाज को दिशा देता है। मगर अफसोस की बात है कि कुछ पत्रकार केवल टीआरपी और सनसनी के पीछे भाग रहे हैं। बिना किसी लक्ष्य के नकारात्मक खबरें परोसकर वे समाज में नकारात्मकता फैला रहे हैं। सिंधिया का यह तंज सीधे उन पत्रकारों के सीने पर लगा जो खबर को समाज सुधार का माध्यम मानने के बजाय अपनी लोकप्रियता और निजी स्वार्थ का साधन बना बैठे हैं।
सिंधिया ने पत्रकारों से सीधे सवाल पूछकर माहौल को असहज कर दिया। उन्होंने कहा—क्यों आप लोग सभी को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हो? क्या कभी किसी ने आपको भी कठघरे में खड़ा किया है? यह सवाल सुनकर सभागार में सन्नाटा छा गया। कई पत्रकारों के चेहरे फीके पड़ गए, कुछ बगलें झाँकने लगे और कुछ मजबूरी में तालियाँ बजाकर बात टालने की कोशिश करने लगे। यह दृश्य साफ बता रहा था कि सिंधिया ने तलवार की तरह सवाल चलाकर ढाल की तरह जवाब देने की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी।
उन्होंने पत्रकारों से यह भी कहा कि आपके हाथ में कलम रूपी तलवार और ढाल है, लेकिन आखिर क्यों आप इसका सदुपयोग नहीं करते? क्यों वही कलम किसी सशक्त मुद्दे पर खामोश हो जाती है और किसी तुच्छ मसले पर जहर उगल देती है? यह प्रश्न केवल शिवपुरी के पत्रकारों के लिए नहीं बल्कि पूरे देश की पत्रकारिता के लिए आत्ममंथन की घंटी था।
कार्यक्रम का सबसे असहज पल तब आया जब सिंधिया ने पत्रकारों से सवाल किया कि अपने आप से प्रश्न करें कि पिछले एक वर्ष में आपने कितने लेख लिखे हैं। यह सुनते ही सभागार का माहौल बदल गया। अधिकांश लोग एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे, कुछ ने सिर झुका लिया। यह साफ हो गया कि सोशल मीडिया और मोबाइल पत्रकारिता के दौर में लेखन और शोध का गंभीर पक्ष लगभग मर चुका है। खुद को पत्रकार कहने वाले कई लोग वास्तव में लेखन और रिसर्च से कोसों दूर हैं।
सिंधिया ने आगे कहा कि देश बनाने में पत्रकारों की भी भूमिका होती है। पत्रकारों का कर्तव्य है कि वे चरित्रवान और प्रेरणादायी व्यक्तियों को जनता के सामने प्रस्तुत करें। लेकिन आज का बड़ा सवाल यही है कि क्या पत्रकार सच में इस जिम्मेदारी को निभा रहे हैं या केवल सत्ता और दलाली के खेल में मोहरे बनकर रह गए हैं।
इस कार्यशाला में सिंधिया केवल एक मंत्री के तौर पर नहीं बल्कि एक सच बोलने वाले नायक के रूप में सामने आए। उन्होंने न तो लच्छेदार भाषण दिया और न ही भीड़ को खुश करने वाली बातें कीं। इसके बजाय उन्होंने पत्रकारों को कटु सत्य का आईना दिखाया। उनकी बातों से यह स्पष्ट हो गया कि वह केवल राजनीति ही नहीं बल्कि समाज और पत्रकारिता की गिरती हालत को लेकर भी गंभीर हैं।
शिवपुरी की यह कार्यशाला वास्तव में उन अयोग्य और स्वघोषित पत्रकारों की क्लास थी जो केवल नाम के लिए पत्रकारिता कर रहे हैं। सिंधिया ने मंच से ही उन्हें आईना दिखाया कि पत्रकारिता केवल माइक्रोफोन उठाने और मोबाइल से वीडियो बनाने का नाम नहीं है। पत्रकारिता का अर्थ है रिसर्च, विश्लेषण, निष्पक्षता और समाज में सकारात्मक बदलाव की जिम्मेदारी।
यहां सिंधिया की सबसे बड़ी खासियत सामने आई। आमतौर पर नेता ऐसे कार्यक्रमों में पत्रकारों की चापलूसी करते हैं, लेकिन सिंधिया ने इसके उलट सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस दिखाया। यही उनकी राजनीति को साफ-सुथरा और बेबाक बनाता है।
शिवपुरी का यह आयोजन केवल एक कार्यशाला नहीं बल्कि पत्रकारिता की आत्मा को झकझोरने वाला क्षण था। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस मंच से साबित किया कि वह न केवल राजनीति के सच्चे सेवक हैं बल्कि समाज की आत्मा को दिशा देने वाले नायक भी हैं। उन्होंने पत्रकारों को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाई और यह सिखाया कि कलम की ताकत केवल निंदा और आलोचना में नहीं बल्कि सकारात्मक बदलाव की मशाल जलाने में है। आज जब पत्रकारिता सवालों के कठघरे से बचने लगी है, ऐसे में सिंधिया जैसे नेता का यह स्वर समाज और मीडिया दोनों के लिए एक साफ और मजबूत संदेश है।
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दिवाकर की दुनाली से
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