मप्र सरकार का नया प्लान: रेत चोरी रोकेंगे मगरमच्छ
प्रदेश में रेत का कारोबार अब किसी "रेतीले सोने" से कम नहीं। नेता से लेकर अफसर तक सबकी राजनीति और आमदनी का पहिया इसी पर घूम रहा है। पुलिस चौकी और प्रशासन की गाड़ियां तो रेत माफियाओं को रोक नहीं पाईं, लेकिन अब सरकार ने ऐसा खूंखार हथियार निकाला है कि सुनकर हंसी भी आए और डर भी लगे।
जी हां—अब रेत चोरी रोकने के लिए तैनात होंगे... मगरमच्छ!
सूबे के मुखिया ने जंगलात विभाग की बैठक में फरमान सुनाया—"जहां से रेत चोरी हो रही है, वहां मगरमच्छ छोड़ दो।" मानो प्रदेश में कानून-व्यवस्था की मगरमच्छ शाखा गठित होने जा रही हो।
सोचिए, अब माफिया का ट्रैक्टर-ट्रॉली नहीं रोकेगी पुलिस, बल्कि पानी से झपटकर निकल आएगा मगरमच्छ। नेताओं की जेब में नोट गिनने की बजाय मगरमच्छ की दांतों की गिनती होगी। अफसरों की जेब में सरकते "रेतीले लिफाफों" को मगरमच्छ निगल जाएंगे।
सवाल ये है कि जब नेता और अधिकारी ही इस खेल के हिस्सेदार हैं, तो क्या वे भी मगरमच्छों के हवाले किए जाएंगे? या फिर मगरमच्छों को भी नेताओं के संरक्षण की लिस्ट पकड़ाई जाएगी—"फलां-फलां को मत काटना, बाकी सबको काट लेना।"
प्रदेश की जनता कह रही है—अगर यह योजना अमल में आई तो शायद पहली बार मगरमच्छों का नाम इतिहास में दर्ज होगा—“लोकतंत्र के सबसे ईमानदार पहरेदार” के रूप में।
अब देखना ये है कि मगरमच्छ सरकार की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे, या फिर रेत माफिया मगरमच्छों को भी अपने पाले में मिला लेंगे। आखिर नेता, अफसर और रेत चोरों के इस "त्रिकोणीय गठबंधन" में मगरमच्छ की औकात कितनी है?
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