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शिवपुरी का अनकहा फिल्मी इतिहास – दिवाकर शर्मा

 

भारतीय सिनेमा का इतिहास जब लिखा जाता है तो मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद जैसे महानगरों के बड़े स्टूडियो, चकाचौंध भरी रोशनियां, चर्चित अभिनेता और करोड़ों रुपये के बजट सबसे पहले याद आते हैं। लेकिन इस मायावी दुनिया के पीछे छोटे कस्बों और शहरों की भी एक दुनिया है, जिसने अपने प्राकृतिक सौंदर्य, सांस्कृतिक धरोहर और मानवीय प्रयासों से सिनेमा को एक अनूठी पहचान दी। इन्हीं शहरों में से एक है मध्यप्रदेश का छोटा-सा नगर शिवपुरी, जो जंगलों, झीलों, किलों और मंदिरों से घिरा हुआ है और जिसने बार-बार कैमरे की रोशनी को अपनी ओर खींचा है।

शिवपुरी का फिल्मी इतिहास जितना आकर्षक है उतना ही रहस्यमय भी। यहां फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री बनाने के अनेक प्रयास हुए, जिनमें से कुछ पूरे हुए, कुछ अधूरे रह गए और कुछ समय की धूल में कहीं खो गए। राष्ट्रीय पटल पर इसकी चर्चा कभी व्यापक रूप से नहीं हुई, लेकिन यदि कोई शिवपुरी की गलियों, झीलों, किलों और मंदिरों को गौर से देखे तो महसूस करेगा कि हर कोना किसी फिल्मी किस्से को अपने भीतर छुपाए हुए है।

सबसे पहले फिल्म निर्माण का प्रयास झांसी वाले डॉक्टर के नाम से प्रसिद्ध डॉ. मदनमोहन शर्मा और चित्रकार नन्ने खां ने किया। दोनों ने मिलकर न केवल फिल्मों का सपना देखा बल्कि वीर तात्या टोपे नामक वृतचित्र भी बनाया। साधनों और पूंजी की कमी के बावजूद यह प्रयास शिवपुरी में फिल्म निर्माण की पहली गंभीर कोशिश थी। यही वह बीज था जिससे आगे चलकर अनेक प्रयोग हुए। इसके बाद हरिउपमन्यु, डॉ. नाथूराम शर्मा पद्मेश, रमेशचन्द्र जैन, याकूब खां और मेहमूद खां जैसे लोगों ने भी फिल्म बनाने का साहस दिखाया। हरिउपमन्यु ने वन्य जीवन को कैमरे में कैद किया और 16 एमएम की सिलोलाइट फिल्म भी शूट कर ली। जंगलों में दौड़ते हिरण, बंदरों की चंचलता और पंछियों की चहचहाहट कैमरे में तो कैद हुई, लेकिन आवाज भरने की तकनीकी समस्या उनकी राह में दीवार बन गई। जैसे प्रकृति ने कहानी दी लेकिन सिनेमा उसे आवाज न दे सका।

रामकुमार भ्रमर का उपन्यास तीसरा पत्थर भी फिल्म रूप लेने वाला था। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक वासु भट्टाचार्य थे। उम्मीदें बड़ी थीं लेकिन निर्माता और निर्देशक के टकराव तथा आर्थिक संकट ने इसे बीच रास्ते में रोक दिया। फिल्म डिब्बों में कैद रह गई और इतिहास के पन्नों में खो गई। इसी कड़ी में रमेशचन्द्र जैन का नाम आता है जिन्होंने डरावनी हवेली नामक फिल्म बनाई। इस फिल्म के संयुक्त निदेशक डॉ. भूपेन्द्र विकल थे। यह फिल्म देशभर में प्रदर्शित हुई और शिवपुरी के नाम को नई पहचान दी। डॉ. भूपेन्द्र विकल ने आगे चलकर दूरदर्शन भोपाल के लिए घूंघट नामक टेलीफिल्म भी बनाई जिसमें शिवपुरी और ग्वालियर के कलाकारों ने अभिनय किया और शिवपुरी की खूबसूरत लोकेशनों पर शूटिंग हुई।

फिल्म निर्माण की इस परंपरा को आगे बढ़ाया शिवपुरी के निर्माता-निर्देशक राकेश सरैया ने। उन्होंने कई लघु फिल्मों—नई मेहंदी, मुझे शराब कहते हैं, अभी जंग जारी है, सद्भावना, सावधान—का निर्माण किया जिन्हें भोपाल, जयपुर और लखनऊ के दूरदर्शन केंद्रों पर प्रदर्शित किया गया। बाद में उन्होंने फीचर फिल्म यातना बनाई जिसका प्रीमियर ग्वालियर के हरिनिर्मल टॉकीज में हुआ। प्रस्तुतकर्ता थे स्वर्गीय अशोक चौकसे, जिन्होंने न केवल आर्थिक सहयोग दिया बल्कि आशा भोंसले के साथ एक गीत भी गाया। कलाकारों में सुप्रिया पाठक, शेखर सुमन, रवि वासवानी और कृष्ण धवन शामिल थे। संगीतकार थीं उषा खन्ना और गीतकार योगेश। सबकुछ बेहतर होने के बावजूद वितरकों ने इस फिल्म को ठुकरा दिया और यह ग्वालियर, इंदौर और शिवपुरी के सिनेमाघरों से एक हफ्ते के भीतर उतर गई। लेकिन राकेश सरैया ने हार नहीं मानी और जैक पॉट वन करोड़ जैसी फिल्म भी बनाई जो टीवी चैनलों पर बार-बार प्रदर्शित हुई।

इसी बीच दिनेश वशिष्ठ ने वन संरक्षण पर आधारित एक डोकू-ड्रामा फिल्म बनाई जिसमें स्थानीय कलाकारों ने अभिनय किया। अमान नामक युवा चित्रकार ने मीठा जहर वीडियो फिल्म बनाई जो नशामुक्ति पर केंद्रित थी और जिसका प्रीमियर शो गोदावरी भवन में हुआ तथा बाद में इसे स्थानीय केबल चैनलों पर भी प्रसारित किया गया।

अगर फिल्मों की शूटिंग लोकेशन की बात करें तो शिवपुरी हमेशा से फिल्मकारों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। तीन बत्ती चार रास्ता फिल्म में चिंताहरण क्षेत्र को कैमरे में उतारा गया। दो ग्यारह फिल्म की शूटिंग गाराघाट पर हुई जिसमें देवानंद और हास्य कलाकार महमूद नजर आए। पाकीजा जैसी कालजयी फिल्म के कुछ अंश शिवपुरी के जंगलों में फिल्माए गए जिनमें मीना कुमारी दिखीं। डाकू हसीना की शूटिंग शिवपुरी छत्रियों, पोहरी और नरवर के किलों और जंगलों में हुई जिसमें जीनत अमान और रजनीकांत जैसे दिग्गज कलाकार थे। दयाल निहालनी की फिल्म गुरु दक्षिणा भी शिवपुरी में फिल्माई गई जिसमें पल्लवी जोशी और अनुपम खेर मुख्य भूमिकाओं में नजर आए।

सिर्फ फिल्में ही नहीं, हास्य-व्यंग्य की दुनिया में भी शिवपुरी ने अपनी छाप छोड़ी। ग्राम धौलागढ़ के विकलांग युवक कुलदीप दुबे लाफ्टर चैलेंज से मशहूर हुए और आज देश के नामचीन हास्य कलाकारों में गिने जाते हैं।

शिवपुरी के दिवंगत भाजपा नेता अजय जुनेजा के पुत्र रोहित जुनेजा ने शिवपुरी से निकलकर मायानगरी मुंबई में संघर्ष करते हुए न केवल अभिनय जगत में अपनी पहचान बनाई, बल्कि स्वयं की एंटरटेनमेंट कंपनी जान्या एंटरटेनमेंट का भी निर्माण किया। उन्होंने मॉडलिंग से शुरुआत करते हुए कई रैंप शो किए और रूम द मिस्ट्री नामक फिल्म में मुख्य किरदार निभाया, जिसे खूब सराहा गया। जान्या एंटरटेनमेंट के बैनर तले उन्होंने 750–800 टीवी कमर्शियल्स में कास्टिंग डायरेक्टर के रूप में कार्य किया है। दो फीचर फिल्में, जिनमें एक में जिम्मी शेरगिल और दूसरी में संजय मिश्रा ने अभिनय किया है, उनमें भी उन्होंने कास्टिंग डायरेक्शन किया है। विज्ञापन डायरेक्टर के रूप में 7–8 विज्ञापन तथा 3–4 शॉर्ट फिल्मों का निर्माण किया है।

महिंद्रा, टाटा ट्रक्स, कल्याण ज्वेलर्स, कोरा हेयर कलर्स व शैंपू, शी सैनिटरी पेड्स जैसे बड़े ब्रांड्स के विज्ञापन भी उन्होंने प्रोड्यूस किए। साथ ही 2–3 वर्टिकल सीरीज शॉर्ट टीवी के लिए प्रोड्यूस की, जिनमें से परफेक्ट रेंटल गर्लफ्रेंड रिलीज हो चुकी है जबकि बाकी निर्माणाधीन हैं। इसके अलावा कुक्कू टीवी के लिए भी 2 सीरीज प्रोड्यूस की हैं। इस तरह रोहित जुनेजा का योगदान शिवपुरी की फिल्मी पहचान को नई ऊँचाइयों तक ले गया है।

शिवपुरी के वरिष्ठ पत्रकार संजय बेचैन के पुत्र आरव कान्हा शर्मा ने भी अभिनय की दुनिया में उल्लेखनीय पहचान बनाई है। उन्होंने सोनी लिव पर प्रसारित धारावाहिक एक दूजे के वास्ते, शेमारू टीवी पर प्रसारित धारावाहिक जुर्म और जज्बात, स्टार भारत के धारावाहिक सावधान इंडिया समेत कई अन्य टीवी शोज़ में काम किया। इसके अलावा भोले भोले महादेव, नाचो दीवाने, होली है, सबके हैं राम, प्यार है, मौसम दोस्ती का जैसे वीडियो सॉन्ग्स में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय देते हुए दर्शकों का दिल जीता। आरव ने अपने अभिनय कौशल से शिवपुरी के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनने में सफलता हासिल की है।

सोशल मीडिया और डिजिटल युग ने भी शिवपुरी को एक नया मंच दिया। 2015 के बाद स्थानीय युवाओं ने यूट्यूब पर लघु फिल्मों और वेब सीरीज़ का निर्माण शुरू किया। मुकेश अग्निहोत्री के निर्देशन में रामबाबू गडरिया और शबनम की पाठशाला जैसी फिल्मों के साथ कूडादान, जमघट व भांड जैसी चर्चित शॉर्ट फिल्में भी बनाई साथ ही दोस्ती नाम से एक कवर सॉन्ग भी बनाया। अर्जुन दुबे ने भारत बंद, कमिशन, मतदान—एक प्रेम कथा, नाइट ड्यूटी, साइलेंट मोड, सेक्शन 377 जैसी लघु फिल्में और ब्लैक पोज सीजन 1, जैसी वेब सीरीज़ व कलाकंद जैसी आकर्षक शॉर्ट फिल्में भी राजेश झा के प्रोडक्शन के तले बनाईं। उनकी शॉर्ट फिल्में 1930, सबक और रिश्ते चर्चित हुईं। इनमें से सबक ग्वालियर फिल्म फेस्टिवल में नॉमिनेट हुई, भारत बंद को बसारी फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार मिला और नाइट ड्यूटी को खजुराहो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सम्मानित किया गया।

ड्रामा डोज़ इंटरटेनमेंट ने वेदना जैसी शॉर्ट फिल्म बनाई जिसका निर्देशन अमान खान ने किया और इसमें ब्रजेश अग्निहोत्री व वेदांश शिवहरे का अभिनय सराहनीय रहा। प्रताड़ना फिल्म का निर्देशन दिवाकर शर्मा ने किया। इसी दौर में साहिल खान, शिवनारायण अग्रवाल, राजकुमार गुप्ता, के.पी. रंगीला, राहुल शर्मा और मोनू जैसे युवाओं ने भी लघु फिल्में बनाकर यूट्यूब पर प्रस्तुत कीं।

स्थानीय स्तर पर कई नाम उभरकर आए। ब्रजेश अग्निहोत्री, डेविड शर्मा, पत्रकार ब्रजेश तोमर, पत्रकार अतुल गौड़, भाजपा नेता हेमंत ओझा, पत्रकार शालू गोस्वामी, समाजसेवी वैभव कबीर कुक्कु, वरिष्ठ रंगकर्मी विजय भार्गव, मृदुल शर्मा, भूमिका सगर, दीपक गर्ग और सोमा नामदेव ने अभिनय और योगदान से शिवपुरी की पहचान को मजबूती दी। भोपाल के दीपक चतुर्वेदी के निर्देशन में बनी अहसास शॉर्ट फिल्म में भी शिवपुरी के कलाकारों ने अपनी भूमिका निभाई।

शिवपुरी से जुड़ी हस्तियों में प्रख्यात संगीतकार ओ.पी. नैयर, निर्देशक रवि टंडन, मनहर खन्ना (संगीतकार उषा खन्ना के पिता) और अजय कश्यप का नाम भी उल्लेखनीय है। इनका शिवपुरी प्रवास इस शहर की सांस्कृतिक धरोहर को और समृद्ध करता है।

स्वर्गीय अशोक चौकसे के सुपुत्र संकेत चौकसे और पुनीत चौकसे ने टीवी धारावाहिकों की दुनिया में ख्याति पाई। संकेत चौकसे ने नागिन, सावधान इंडिया, दुर्गा माता की छाया जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया। पुनीत चौकसे ने नाटी पिंकी की लंबी लव स्टोरी, शक्ति, सिर्फ तुम, नागिन-3, बाजी इश्क की जैसे धारावाहिकों में अभिनय किया और वर्तमान में स्टार प्लस के धारावाहिक एडवोकेट अंजलि अवस्थी में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं।

बैराड निवासी राजेश गर्ग ने स्प्रिंग फिंगर फिल्म में अभिनय किया और कई वेब सीरीज़ में भी अपनी पहचान बनाई।

इतिहास की इन परतों से स्पष्ट होता है कि शिवपुरी का योगदान भारतीय सिनेमा में अद्वितीय रहा है। यहां फिल्में बनीं, शूटिंग हुई, कलाकार पैदा हुए और सांस्कृतिक धरोहर कैमरे में कैद हुई। आर्थिक तंगी, बड़े शहरों की चमक-दमक और फिल्मी राजनीति ने इन प्रयासों को दबा दिया, लेकिन इनकी गूंज अब भी शहर के किलों, झीलों और मंदिरों में सुनाई देती है। चिंताहरण मंदिर, गाराघाट की पगडंडियां, छत्रियों की नक्काशी, नरवर का किला और पोहरी के जंगल अब भी उस कैमरे की चमक को महसूस करते हैं जिसने कभी इन्हें अमर कर दिया था।

शिवपुरी का यह अनकहा फिल्मी इतिहास हमें बताता है कि सिनेमा केवल महानगरों की उपज नहीं है, बल्कि छोटे कस्बों की धड़कनों से भी जन्म लेता है। यहां के सपने अधूरे रहे, पर उनका अस्तित्व आज भी मिटा नहीं। सवाल यही है कि क्या कभी शिवपुरी फिर से किसी बड़े प्रोजेक्ट का केंद्र बनेगा? शायद हां, शायद नहीं। लेकिन इतना निश्चित है कि शिवपुरी का नाम भारतीय सिनेमा की परंपरा में उस पन्ने पर दर्ज रहेगा जो अधूरा होकर भी अमर है।

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