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एमपी के 9 जिलों से गधे लापता — क्या अब ईमानदारी भी विलुप्त प्रजाति है?

 


मध्यप्रदेश की ताज़ा पशुगणना के आंकड़े बताते हैं कि पूरे प्रदेश में कुल 3052 गधे हैं। सुनने में यह साधारण आंकड़ा लगता है, लेकिन ज़रा गौर कीजिए प्रदेश के 9 जिलों में एक भी गधा नहीं बचा। अनूपपुर, बालाघाट, दमोह, डिंडोरी, हरदा, मंडला, निवाड़ी, सिवनी और उमरिया इन जिलों में अब कोई गधा नहीं है। सवाल यह नहीं कि गधे कहाँ गए, सवाल यह है कि क्यों गए। शायद उन्हें लगा हो कि अब उनका काम कोई और कर रहा है ईमानदारी से, चुपचाप, बिना सवाल किए। फर्क बस इतना है कि वे पहले मिट्टी, नमक और ईंट का बोझ उठाते थे, और अब लोग “वादों, योजनाओं और भाषणों” का बोझ उठाने लगे हैं।

नर्मदापुरम में 335 गधे, छतरपुर में 232, मुरैना में 228, दतिया में 183, श्योपुर में 176, विदिशा में 171, ग्वालियर में 161, आलीराजपुर में 150, शिवपुरी में 134, राजगढ़ में 115, बुरहानपुर में 105, टीकमगढ़ में 98, पन्ना में 77, झाबुआ में 71, मंदसौर में 69, धार में 61, भिंड में 56, बैतूल में 54, गुना में 52, नरसिंहपुर और उज्जैन में 51-51, आगर मालवा में 44, देवास में 35, सतना में 34, नीमच में 31, खरगोन में 29, बड़वानी में 28, खंडवा में 26, सीधी में 25, अशोकनगर और छिंदवाड़ा में 20-20, पांढुर्णा और शाजापुर में 18-18, रीवा में 15, भोपाल में 13, इंदौर में 12, सीहोर में 11, रायसेन में 9, सागर में 7, मैहर में 6, जबलपुर, कटनी और शहडोल में 4-4, मऊगंज, रतलाम और सिंगरौली में 3-3 गधे दर्ज किए गए हैं। यह आँकड़ा केवल पशु गणना का नहीं, बल्कि प्रतीक है ईमानदारी और सहनशीलता के विलुप्त होने का। गधे हमेशा से मेहनत, धैर्य और सादगी के प्रतीक माने गए हैं। लेकिन अब, जहाँ मेहनत कम और चालाकी ज़्यादा है, वहाँ ऐसे जीवों का टिकना मुश्किल है।

कभी गाँव की गलियों में चलते हुए दिखने वाले गधे अब शायद जंगल की ओर लौट गए हैं, क्योंकि वहाँ न कोई टेंडर है, न कोई कमीशन। वहाँ झूठे भाषण नहीं, सच्ची आवाज़ें गूँजती हैं। उन्हें शायद समझ आ गया कि जहाँ ईमानदारी पर हँसी उड़ाई जाती है, वहाँ रहना उनके स्वभाव के विरुद्ध है। अगर कोई कहे कि “गधे घट गए हैं,” तो उसका मतलब यह नहीं कि वे नष्ट हो गए बल्कि शायद उन्होंने अपने आपको बचा लिया है। क्योंकि इस दौर में सीधा चलने वाला, सच्चा रहने वाला, और बिना स्वार्थ काम करने वाला प्राणी अब दुर्लभ हो गया है।

कभी ये गधे खेतों से लेकर हाट-बाज़ार तक काम करते थे, और अब उनकी जगह ऐसे लोग आ गए हैं जो सिर्फ साइन करते हैं, लेकिन मेहनत से दूर रहते हैं। गधे तो बोझ ढोते थे, पर कभी किसी का हक़ नहीं ढोते थे। आज बोझ तो वही है, लेकिन उसके पीछे की नीयत बदल गई है। इन 9 जिलों में गधों का न होना किसी “सफलता” का संकेत नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि सच्चाई और सादगी की जगह अब चतुराई और स्वार्थ ने ले ली है। गधे चले गए क्योंकि वे शायद थक गए थे इस दिखावे, भ्रष्टाचार और दिखावटी नैतिकता से।

अब यह प्रदेश 3052 गधों का नहीं, बल्कि 3052 मिसालों का प्रदेश है जो अब भी किसी को याद दिलाते हैं कि मेहनत करना शर्म की बात नहीं, ईमानदारी में कभी नुकसान नहीं होता, और सच्चाई भले थोड़ी धीमी हो, पर टिकाऊ होती है। कहावत है “जहाँ गधा नहीं, वहाँ बुद्धिमान समझे जाते हैं।” पर मध्यप्रदेश के इन 9 जिलों को देखकर लगता है, गधे ही बुद्धिमान निकले समय रहते चले गए।

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