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कौन हैं कार्बाइड गन के निर्माता? त्योहार की रोशनी के पीछे छिपा खतरा!

 


दीपावली रोशनी का त्योहार है पर कुछ लोगों ने इसे धमाकों और चीखों का मेला बना दिया है। शिवपुरी में बीते कुछ दिनों से जो तस्वीरें सामने आई हैं, वे केवल चिंता नहीं, बल्कि भय उत्पन्न करती हैं। चमकते दीयों के बीच अब ‘कार्बाइड गन’ का काला धुआँ फैल रहा है। सवाल उठता है आखिर ये लोग कौन हैं जो हजारों निर्दोषों की जान को जोखिम में डालकर अपने मुनाफे का खेल खेल रहे हैं?

कैल्शियम कार्बाइड, प्लास्टिक पाइप और बारूद का यह खतरनाक मिश्रण, बच्चों के हाथों में खिलौने की तरह पकड़ा जा रहा है। नतीजा आंखें जलीं, हाथ फटे, और कुछ लोगों की जिंदगी हमेशा के लिए अंधेरे में डूब गई। जिला अस्पताल के आँकड़े बताते हैं कि सिर्फ एक त्योहार की रात में 17 लोग घायल हो गए, जिनमें दो को ग्वालियर रेफर करना पड़ा। यह कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि लापरवाही की सुनियोजित श्रृंखला है।

प्रशासन ने आदेश तो जारी कर दिया, प्रतिबंध भी लगा दिया, पर क्या इतना काफी है? क्या उन हाथों तक यह आदेश पहुँचा है जो कार्बाइड और पाइप से यह मौत की मशीन बना रहे हैं? या फिर यह सब केवल कागज़ों तक सीमित रह जाएगा जैसे कई बार पहले भी हुआ है?

यह प्रश्न अब जनसाधारण का नहीं, बल्कि शासन के विवेक का है। अगर सोशल मीडिया पर घूमते वीडियो प्रशासन की आँखें खोलने के लिए काफी नहीं हैं, तो और क्या होगा? दीपावली का पर्व सुरक्षा और उल्लास का प्रतीक है, लेकिन जब एक-एक पटाखे के साथ मौत की आवाज़ उठने लगे, तो यह केवल उत्सव नहीं एक अपराध बन जाता है।

जो लोग इन खतरनाक उपकरणों का निर्माण, विक्रय या उपयोग कर रहे हैं, वे सिर्फ कानून नहीं तोड़ रहे वे समाज की आत्मा को घायल कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जिनकी पहचान करना अब प्रशासन के लिए अनिवार्य है। क्योंकि जब तक दोषी चिन्हित नहीं होंगे, तब तक हर साल कुछ और आंखें बुझेंगी, कुछ और घर मातम में डूबेंगे।

प्रश्न यही है क्या जिला प्रशासन केवल आदेशों तक सीमित रहेगा या उन ‘अदृश्य निर्माताओं’ तक पहुंचेगा जो त्योहार की खुशियों को धुएँ और आंसुओं में बदल रहे हैं? दीपावली पर अब असली दीया यही होना चाहिए जागरूकता का, जिम्मेदारी का और सख़्त कार्रवाई का। क्योंकि कार्बाइड की यह आग सिर्फ पटाखे नहीं जलाती, यह इंसानियत को भी राख कर देती है।

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