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डिजिटल रणभूमि पर राष्ट्रवाद की चुनौती

यूट्यूब आज केवल मनोरंजन या सूचना का मंच नहीं रहा, बल्कि यह विचारधारा की लड़ाई का सबसे बड़ा अखाड़ा बन चुका है। अफसोस की बात है कि इस अखाड़े में राष्ट्रवाद की आवाज़ लगातार दबती जा रही है और वामपंथी मानसिकता हावी होती जा रही है। यह किसी संयोग का परिणाम नहीं है, बल्कि यूट्यूब की एल्गोरिद्म पॉलिसी की सोची-समझी रणनीति है, जो राष्ट्रवादी कंटेंट को हाशिये पर डालकर वामपंथी कंटेंट को आगे बढ़ाने में लगी दिखाई देती है।

ध्यान से देखें तो जो चैनल दिन-रात भारत की जड़ों, संस्कृति और परंपरा पर प्रहार करते हैं, जो देशभक्ति को “भक्ति” और राष्ट्रीयता को “सांप्रदायिकता” कहकर बदनाम करते हैं, वही चैनल एल्गोरिद्म की कृपा से करोड़ों दर्शकों तक पहुँच रहे हैं। इनमें Dhruv Rathee, Ravish Kumar, The Deshbhakt (Akash Banerjee), Mohak Mangal, Priya Jain, Nitish Rajput, Gaurav Thakur, Abhi and Niyu, The Lallantop, और Ranveer Allahbadia (BeerBiceps / The Ranveer Show) शामिल हैं। ये चैनल न केवल विचारधारात्मक रूप से मुखर हैं, बल्कि अपने समर्थकों की सक्रियता और आर्थिक सहयोग से डिजिटल दुनिया में और अधिक ताकतवर बन गए हैं।

इसके विपरीत राष्ट्रवादी यूट्यूबर, जो भारत की संस्कृति, परंपरा, राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव की रक्षा की आवाज़ उठाते हैं, उन्हें अपने ही समर्थकों से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पाता। आज के टॉप राष्ट्रवादी यूट्यूबरों में Nitish Rajput, Abhi and Niyu, Gaurav Thakur, क्रांतिदूत जैसे नाम शामिल हैं। ये चैनल राष्ट्रवाद और भारतीयता की अवधारणा को जिंदा रखते हैं, लेकिन एल्गोरिद्म और सीमित संसाधनों के कारण उनके विचार लाखों दर्शकों तक पहुँचने में बाधित होते हैं। अधिकांश राष्ट्रवादी दर्शक केवल वीडियो देखकर आगे बढ़ जाते हैं, न तो अपने विचार कमेंट में रखते हैं और न ही आर्थिक सहयोग प्रदान करते हैं। यही कारण है कि राष्ट्रवाद के प्रतिनिधि चैनल एल्गोरिद्म के दबाव और संसाधनों की कमी से जूझते रहते हैं, जबकि वामपंथ के चैनल हर मंच पर मुखर, प्रभावी और आर्थिक रूप से सुदृढ़ दिखाई देते हैं।

विडंबना यह है कि जिस राष्ट्रवाद ने इस देश की आत्मा को सदियों से जीवित रखा है, उसी राष्ट्रवाद के वाहक आज डिजिटल मंचों पर उपेक्षित और संघर्षरत हैं। जबकि वामपंथ, जिसकी जड़ें भारतीय समाज में कभी गहरी नहीं रही, वह यूट्यूब की कृपा, एल्गोरिद्म की सहूलियत और अपने अनुयायियों की सक्रियता से अधिक मुखर और प्रभावी बन बैठा है। उनके समर्थक चैनलों को लगातार व्यूज़, शेयर और आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं, जिससे उनकी विचारधारा हर मंच पर हावी होती जा रही है।

यह केवल यूट्यूब एल्गोरिद्म की समस्या नहीं है, बल्कि राष्ट्रवादियों के अपने लचर रवैये का भी परिणाम है। यदि वास्तव में राष्ट्रवाद की ध्वजा को डिजिटल जगत में ऊँचा रखना है, तो राष्ट्रवादी दर्शकों को सक्रिय होकर आगे आना होगा। वीडियो शेयर करना होगा, कमेंट करके एल्गोरिद्म को चुनौती देनी होगी, चैनल को सब्सक्राइब करना होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि आर्थिक सहयोग में पीछे नहीं हटना होगा।

राष्ट्रवाद कोई शो, टीवी डिबेट या सोशल मीडिया ट्रेंड नहीं है जिसे सुना और भुला दिया जाए। यह भारत की आत्मा है, हमारी पहचान है, हमारी संस्कृति और गौरव है। यदि हमने डिजिटल युग में अपनी आत्मा की रक्षा के लिए कदम नहीं उठाए, तो वामपंथी विचारधारा हमारी आने वाली पीढ़ियों के मानस पर हावी हो जाएगी। राष्ट्रवादी चैनलों जैसे क्रांतिदूत के समर्थन में नागरिकों का सक्रिय योगदान अब समय की मांग है। यह लड़ाई केवल व्यूज़ और सब्सक्राइबर्स की नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, अस्मिता और गौरव की है।

राष्ट्रवादियों को अब उदासीन नहीं रहना होगा। यह समय है जागने का, संघर्ष करने का और अपनी संस्कृति, अपने देश और अपनी पहचान के लिए डिजिटल मैदान में भी लड़ने का। यदि राष्ट्रवादी समाज अब एकजुट नहीं होगा, तो वामपंथी मानसिकता का प्रभुत्व न केवल यूट्यूब पर, बल्कि समाज के हर स्तर पर बढ़ता रहेगा। भारत की आत्मा को बचाने का दायित्व अब हम सभी के कंधों पर है और यह लड़ाई जितनी तेज़ होगी, उतना ही हमारे देश की शान सुरक्षित रहेगी।
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