महावीर वाणी - आचार्य श्री रजनीश "ओशो"

पांच नमस्कार हैं | अरिहंत को नमस्कार | अरिहंत का अर्थ होता है, जिसके सारे शत्रु विनष्ट हो गए | जिसके भीतर अब कुछ ऐसा नहीं रहा, जिससे उसे लड़ना पडेगा | लड़ाई समाप्त हो गई | भीतर अब क्रोध नहीं है, जिससे लड़ना पड़े; भीतर अब काम नहीं है, जिससे लड़ना पड़े; अज्ञान नहीं है | वे सब समाप्त हो गए जिनसे लड़ाई थी |
अरिहंतों को नमस्कार, उन सबको नमस्कार जिनकी मंजिल आ गई है | असल में मंजिल को नमस्कार | वे जो पहुँच गए उनको नमस्कार |
लेकिन अरिहंत शब्द नकारात्मक है | उसका अर्थ है, जिनके शत्रु समाप्त हो गए |जिनके अंतर्द्वंद विलीन हो गए | जिनको लोभ नहीं, मोह नहीं, काम नहीं; वह क्या हुए, यह नहीं कहा; क्या नहीं हुए, वह कहा; इसलिए दूसरे शब्द में पोजिटिव का उपयोग किया है | “नमो सिद्धाणं” | सिद्ध का अर्थ होता है, वे जिन्होंने प् लिया | अरिहंत का अर्थ है, वे जिन्होंने कुछ छोड़ दिया | सिद्धि अर्थात उपलव्धि अर्थात जिन्होंने पा लिया | लेकिन ध्यान रहे उनको ऊपर रखा गया, जिन्होंने खो दिया | जिन्होंने पा लिया उनको नंबर दो पर रखा गया | सिद्ध अरिहंत से छोटा नहीं होता लेकिन भाषा में नंबर दो पर रखा गया |

तीसरा सूत्र कहा है, आचार्यों को नमस्कार | आचार्य का अर्थ है जिसने पाया भी और आचरण से प्रगट भी किया | जिसका ज्ञान और आचरण एक है | जो व्यक्ति आचार्य को नमस्कार कर रहा है उसका भाव यह है कि मैं नहीं जानता की क्या है ज्ञान और क्या है आचरण, लेकिन जिनका भी आचरण उनके ज्ञान से उपजता है, उनको नमस्कार करता हूँ |
चौथे चरण में उपाध्याय को नमस्कार | उपाध्याय का अर्थ है, आचरण ही नहीं उपदेश भी | वे जो जानते हैं, जानकर वैसा जीते हैं; और जैसा वे जीते हैं, वैसा बताते भी हैं | आचार्य मौन हो सकता है, और केवल आचरण देखकर न समझ पाने वाले लोगों पर दया कर जो बोलकर भी समझाये उस उपाध्याय को नमस्कार |
लेकिन इन चार के बाहर भी जानने वाले छूट सकते हैं | इसलिए पांचवे चरण में एक सामान्य नमस्कार है “ॐ नमो लोए सव्व साहूणं” | जगत में जो भी साधू हैं, उन सबको नमस्कार | साधू इतना सरल भी हो सकता है जो उपदेश देने में भी संकोच करे | कोई इतना सरल भी हो सकता है कि आचरण को भी छिपाए | पर उनको भी नमस्कार पहुँचना चाहिए |
अस्तित्व में कोई कोना न बचे, अज्ञात, अनजान, अपरिचित, पता नहीं कौन साधू है, पता नहीं कौन अरिहंत है, पर श्रद्धा से भरकर जो ये पांच नमन कर पाता है उसके सारे पाप विनष्ट हो जाते हैं | नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्व साहूणं |
नमोकार को जैन परंपरा ने महामंत्र कहा | करते क्या हैं ये महामंत्र ? ध्वनिविज्ञान बहुत से नए तथ्यों के नजदीक पहुँच रहा है | उसमें एक तथ्य यह भी हैकि जगत में पैदा की गई कोई भी ध्वनि कभी नष्ट नहीं होती | वह इस अनंत आकाश में संगृहीत होती चली जाती है | मानो आकाश भी रिकॉर्ड करता है | रूसी वैज्ञानिक कामनिएव तथा अमरीकी वैज्ञानिक रूडोल्फ किर ने कुछ प्रयोग किये हैं | अगर मंगल कामना से भरा एक व्यक्ति आँख बंद कर हाथ में जल की एक मटकी कुछ समय लिए रहे, तत्पश्चात वह जल अगर बीजों पर छिड़का जाए तो उन बीजों से उत्पन्न पौधे जल्दी बढ़ते हैं | इतना ही नहीं तो पौधे पर आने वाले फूल अपेक्षाकृत बड़े आते हैं, लगने वाले फल बड़े लगते हैं | इसके विपरीत रुग्ण, विक्षिप्त और दूसरों को नुक्सान पहुंचाने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के हाथों का जल विपरीत प्रभाव उत्पन्न करता है | दोनों वैज्ञानिकों ने सद्भाव युक्त जल, सामान्य जल और नकारात्मक ऊर्जा वाला जल तीनों का फर्क प्रमाणित किया |
अगर जल में यह रूपांतरण हो सकता है तो हमारे आसपास के आकाश में वातावरण में क्यों नहीं | मन्त्र की आधारशिला यही है | मंगल भावनाओं से भरा हुआ मन्त्र हमारे आसपास के आकाश में गुणात्मक परिवर्तन पैदा करता है | एसो पञ्च नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो | सब पाप का नाश करदे ऐसा महामंत्र है नमोकार |
धम्मो मंगलमुक्कित्थम
अहिंसा संजमो तवो
देवा वि तं नमंसन्ति
जस्स धम्मे सया मनो ||
धर्म सर्वश्रेष्ठ मंगल है | कौन सा धर्म ? अहिंसा, संयम और तपरूप धर्म | जिस मनुष्य का मन उक्त धर्म में सदा संलग्न रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं |
महावीर जैसे लोग प्रमाण नहीं देते, केवल वक्तव्य देते हैं | वे कहते हैं ऐसा है | उनके वक्तव्य वैसे ही वक्तव्य हैं जैसे कि आइन्स्टीन के या किसी अन्य वैज्ञानिक के | आइन्स्टीन से अगर हम पूछें कि पानी हाइड्रोजन और आक्सीजन से क्यों मिलकर बना है, तो आइन्स्टीन कहेगा, क्यों का कोई सवाल नहीं है; बना है | यह हम नहीं जानते क्यों बना है | हम इतना ही कह सकते हैं कि ऐसा है | जिस प्रकार आइन्स्टीन कह सकता हैकि पानी का अर्थ है एच टू ओ, हाईड्रोजन के दो आक्सीजन का एक अणु, इनका जोड़ पानी है | वैसे ही महावीर कहते हैंकि धर्म अहिंसा, संयम तप, इनका जोड़ है | यह “अहिंसा संजमो तवो” यह वैसा ही सूत्र है जैसा एचटूओ |
अहिंसा धर्म की आत्मा है, केंद्र है धर्म का | तप धर्म की परिधि है और संयम केंद्र और परिधि को जोड़ने वाला सेतु | ऐसा समझ लो अहिंसा आत्मा है, तप शरीर है और संयम प्राण है | वह दोनों को जोड़ता है, श्वांस है | श्वांस टूट जाए तो शरीर भी होगा, आत्मा भी होगी, लेकिन आप न होंगे | संयम टूट जाए तो तप भी हो सकता है, अहिंसा भी हो सकती है, लेकिन धर्म नहीं हो सकता | वह व्यक्ति बिखर जाएगा | श्वांस की तरह संयम है |
महावीर की अहिंसा का अर्थ वैसा ही है, जैसे बुद्ध के तथाता का | तथाता का अर्थ होता है टोटल एक्सेप्टेबिलटी, जो जैसा है वैसा ही हमें स्वीकार है | हम कुछ हेर फेर न करेंगे | अहिंसा का गहन अर्थ है अनुपस्थित व्यक्तित्व | अहंकार हिंसा है और निरहंकारिता अहिंसा | महावीर घर छोड़कर जाना चाहते थे, माँ ने कहा मत जाओ, मुझे दुःख होगा | महावीर रुक गए | महावीर ने दुबारा कहा ही नहीं | माँ के मरने तक नहीं बोले | माँ मर गई, अंतिम संस्कार से लौटते समय बड़े भाई से बोले, अब मैं जा सकता हूँ ? माँ ने कहा था उसे दुःख होगा, इसलिए नहीं गया | माँ गई, अब मैं जाऊं ? भाई ने कहा तू कैसा आदमी है ? इतना बड़ा दुःख का पहाड़ टूट पड़ा है और तू जाकर उसे और बढ़ाना चाहता है | महावीर चुप हो गए | दो वर्ष बीत गए | इतने चुप कि भाई को ही पीड़ा होने लगी | महावीर घर में हैं तो, लेकिन ऐसे जैसे हों ही नहीं | घर में किसी को कुछ कहते नहीं, कोई सलाह नहीं, कोई उपदेश नहीं | दरवाजे के सामने से गुजरते तो ऐसे की किसी को पता ही न चल्र, दबे पाँव | बैठे देखते रहते, जो हो रहा है, साक्षी भाव से | भाई ने और सबने मिलकर सोचा कि हम ज्यादती कर रहे हैं | हम रोकते हैं इसलिए रुक जाते हैं, किन्तु वास्तव में तो ये जा चुके हैं | ऐसा लगता है पार्थिव देह पडी है घर में | घर के लोगों ने मिलकर कहा, हम आपके मार्ग से हट जाते हैं, आप तो घर में होकर भी नहीं हैं | इतना सुनना था कि महावीर उठे और चल पड़े |
यह अहिंसा है | हिंसा किस बात से पैदा होती है ? जो हो रहा है, वह न हो, हम जो चाहते हैं वह हो | आदमी जितना चाहता है, यह हो, उतनी हिंसा बढ़ती है | लाओत्से ने कहा है कि श्रेष्ठतम सम्राट वह है, जिसकी प्रजा को पता ही नहीं चलता की वह है |
·         रूस के डेविडोविच किरलियान ने अति संवेदनशील फोटोग्राफी द्वारा जीवित व मृत व्यक्तियों के चित्र लिए | जीवित व्यक्तियों के चित्रों में आसपास ऊर्जा का वर्तुल आता है, लेकिन मृत व्यक्ति के चित्र में वर्तुल नहीं आता | ऊर्जा के गुच्छे दूर भागते प्रतीत होते हैं | तीन दिन तक मरे हुए आदमी में से ऊर्जा के गुच्छे बाहर निकलते रहते हैं | पहले दिन कुछ अधिक, दूसरे दिन उससे कम और तीसरे दिन और कम | वैज्ञानिक कहते हैं कि जब तक ऊर्जा निकल रही है, तब तक पुनर्जीवित करने की विधि आज नहीं तो कल खोजी जा सकेगी |
मृत्यु में ऊर्जा बाहर जा रही है, किन्तु बजन कम नहीं होता | निश्चय ही उस ऊर्जा पर ग्रेविटेशन का कोई असर नहीं होता | योग कहता है कि जब अनाहत चक्र सक्रीय होता है तो जमीन का गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है | यही कारण हैकि योगी का शरीर जमीन से ऊपर उठना संभव हो जाता है | उस ऊर्जा को जगाने की क्रिया को ही वैदिक संस्कृति ने यज्ञ कहा है | उस ऊर्जा के जागने पर जीवन में एक नई ऊष्मा भर जाती है | तपस्वी जितना शीतल होता है, उतना कोई नहीं होता | तपस्वी का अर्थ है ताप से भरा हुआ | किन्तु जितनी जग जाती है यह अग्नि, उतना केंद्र शीतल हो जाता है |
वैज्ञानिक पहले सोचते थे कि सूर्य जलती हुई अग्नि है | लेकिन अब कहते हैं कि सूर्य अपने केंद्र पर अत्यंत शीतल है | दा कोल्डेस्ट स्पॉट इन द यूनिवर्स | जहां जितनी अग्नि हो उसे शीतल करने को उतनी ही शीतलता चाहिए | अन्यथा संतुलन टूट जाएगा | तो तपस्वी की कोशिश यह हैकि वह अपने चारों ओर इतनी अग्नि पैदा कर ले ताकि उस अग्नि के अनुपात में भीतर शीतलता का विन्दु पैदा हो |
किरालियान फोटोग्राफी में जब कोई व्यक्ति संकल्प करता है तो ऊर्जा का वर्तुल बड़ा हो जाता है | जब आप घृणा से भरे होते हैं, जब आप क्रोध से भरे होते हैं, तब आपके शरीर से उसी तरह की ऊर्जा के गुच्छे निकलते है, जैसे मृत्यु पर निकलते हैं | जब आप प्रेम से भरे होते हैं, जब आप करुना से भरे होते हैं, तब विराट ब्रह्म से आपकी तरफ ऊर्जा के गुच्छे प्रवेश करने लगते हैं | इसलिए क्रोध के बाद आप थक जाते हैं, करुना के बाद आप और सशक्त हो जाते हैं |
किरालियान फोटोग्राफी के हिसाब से मृत्यु में जो घटना घटती है, वही छोटे अंश में क्रोध में घटती है |
·         बाह्य तप –
अनशन
महावीर ने यह अनुभव कियाकि जब भोजन बिलकुल नहीं होता शरीर में, तो प्रज्ञा अपनी पूरी शुद्ध अवस्था में होती है | क्योंकि तब पचाने का कार्य न होने के कारण शरीर की ऊर्जा मस्तिष्क को मिल जाती है |
ऊणोदरी
अर्थात अपूर्ण भोजन | ऊणोदरी का अर्थ है अपनी इच्छा के भीतर रुक जाना | अपनी सामर्थ्य के बाहर किसी बात को न जाने देना | मन को तब तक तृप्ति नहीं होती, जब तक वह चरम पर न पहुँच जाए, भले ही उसके कारण दुखी और परेशान होना पड़े | महावीर कहते हैं चरम पर पहुँचाने के पहले रुक जाना | प्रत्येक इन्द्रिय मांग करती हैकि मेरी भूख को पूरा करो | इस वृत्ति पर संयम है ऊणोदरी
वृत्ति संक्षेप
प्रत्येक काम को, प्रत्येक वृत्ति को उसके केंद्र पर एकाग्र करना | जिस दिन आपकी समग्र शक्ति वृत्तियों से मुक्त होकर बुद्धि को मिल जाती है, उस दिन आप मुक्त हो जाते हैं |
रस परित्याग
रस परित्याग की प्रक्रिया है मन के प्रति साक्षी भाव | मुल्ला नसरुद्दीन मरकर स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचा | द्वारपाल ने पूछा कहाँ से आ रहे हो ? मुल्ला ने जबाब दिया प्रथ्वी से | द्वारपाल ने कहा कि वैसे तो तुम्हे नरक में भेजना था किन्तु तुम प्रथ्वी से आ रहे हो तो तुम्हें नरक भी स्वर्ग प्रतीत होगा | इसलिए तुम्हें पहले कुछ समय स्वर्ग में रखकर फिर नरक में भेजेंगे, जिससे तुम्हे नरक कष्ट दे सके | सुख और दुःख सापेक्ष हैं |
काया क्लेश
काया क्लेश का अर्थ है, जब दुःख आये तब उसे स्वीकार करना | इतना स्वीकार कर लो कि क्लेश का भी बोध मिट जाए | काया क्लेश की साधना दुःख को स्वीकार कर दुःख से मुक्त होना है |
इस अद्भुत विचार सार का द्वितीय भाग भी पढ़ें -

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