क्या है प्रदोष व्रत ? कब किया जाता है प्रदोष व्रत ? प्रदोष व्रत में किस किस देवता की उपासना की जाती है ?


प्रदोष काल में किये जाने वाले नियम, व्रत एवं अनुष्ठान को प्रदोष व्रत या अनुष्ठान कहा गया है। व्रतराज नामक ग्रन्थ में सूर्यास्त से तीन घटी पूर्व के समय को प्रदोष का समय माना गया है। अर्थात् सूर्यास्त से सवा घण्टा पूर्व के समय को प्रदोष काल कहा गया है। तिथियों में त्रयोदशी तिथि को भी प्रदोष तिथि की संज्ञा प्रदान की गयी है। इसका मतलब सायंकालीन त्रयोदशी तिथि को किया जाने वाला व्रत प्रदोष व्रत कहलाता है। प्रदोष व्रत पूर्व विद्धा तिथि के संयोग से मनाया जाता है। अर्थात् द्वादशी तिथि से संयुक्त त्रयोदशी तिथि को यह व्रत आचरित किया जाता है। पक्ष भेद होने के कारण इसे शुक्ल या कृष्ण प्रदोष व्रत कहा जाता है। 

भगवान शिव को यह व्रत परम प्रिय है इसलिये इस व्रत में शिवजी की उपासना की जाती है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव जी कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है।

सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व 

रविवार के दिन प्रदोष व्रत आप रखते हैं तो सदा निरोगी रहेंगे ।सोमवार के दिन व्रत करने से आपकी इच्छा फलित होती है ।मंगलवार को प्रदोष व्रत रखने से रोग से मुक्ति मिलती है और आप स्वस्थ रहते हैं।बुधवार के दिन इस व्रत का पालन करने से सभी प्रकार की कामना सिद्ध होती है।बृहस्पतिवार के व्रत से शत्रु का नाश होता है। शुक्र प्रदोष व्रत से सौभाग्य की वृद्धि होती है।शनि प्रदोष व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है।

प्रदोष व्रत के नियम

प्रदोष व्रत में बिना जल पिए व्रत रखना होता है। सुबह स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची भगवान को चढ़ाएं। शाम के समय पुन: स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें। शिवजी की पूजा करें। जिसमें भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजा करें। 

इसके अलावा भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं। आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं। आठ बार दीपक रखते समय प्रणाम करें। शिव आरती करें। शिव स्त्रोत, मंत्र जप करें। रात्रि में जागरण करें। इस प्रकार समस्त मनोरथ पूर्ति और कष्टों से मुक्ति के लिए व्रती को प्रदोष व्रत के धार्मिक विधान का नियम और संयम से पालन करना चाहिए। 

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत कहते हैं। यदि इन तिथियों को सोमवार हो तो उसे सोम प्रदोष व्रत कहते हैं, यदि मंगल वार होतो उसे भौम प्रदोष व्रत कहते हैं और शनिवार हो तो उसे शनि प्रदोष व्रत व्रत कहते हैं। विशेष कर सोमवार, मंगलवार एवं शनिवार के प्रदोष व्रत अत्याधिक प्रभावकारी माने गये हैं। साधारण तौर पर अलग-अलग जगह पर द्वादशी और त्रयोदशी की तिथि को प्रदोष तिथि कहते हैं। इस दिन व्रत रखने का विधान हैं।

प्रदोष व्रत का महत्व कुछ इस प्रकार का बताया गया हैं कि यदि व्यक्ति को सभी तरह के जप, तप और नियम संयम के बाद भी यदि उसके गृहस्थ जीवन में दुःख, संकट, क्लेश आर्थिक परेशानि, पारिवारिक कलह, संतानहीनता या संतान के जन्म के बाद भी यदि नाना प्रकार के कष्ट विघ्न बाधाएं, रोजगार के साथ सांसारिक जीवन से परेशानिया खत्म नहीं हो रही हैं, तो उस व्यक्ति के लिए प्रति माह में पड़ने वाले प्रदोष व्रत पर जप, दान, व्रत इत्यादि पूण्य कार्य करना शुभ फलप्रद होता हैं।

ज्योतिष कि दृष्टी से जो व्यक्ति चंद्रमा के कारण पीडित हो उसे वर्ष भर प्रदोष व्रतों पर चाहे वह किसी भी वार को पडता हो उसे प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिये। प्रदोष व्रतों पर उपवास रखना, लोहा, तिल, काली उड़द, शकरकंद, मूली, कंबल, जूता और कोयला आदि दान करने से शनि का प्रकोप भी शांत हो जाता हैं, जिससे व्यक्ति के रोग, व्याधि, दरिद्रता, घर कि अशांति, नौकरी या व्यापार में परेशानी आदि का स्वतः निवारण हो जाएगा।

भौम प्रदोष व्रत एवं शनि प्रदोष व्रत के दिन शिवजी, हनुमानजी, भैरव कि पूजा-अर्चना करना भी लाभप्रद होता हैं। गुरुवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत विशेष कर पुत्र कामना हेतु या संतान के शुभ हेतु रखना उत्तम होता हैं। संतानहीन दंपत्तियों के लिए इस व्रत पर घर में मिष्ठान या फल इत्यादि गाय को खिलाने से शीघ्र शुभ फल की प्राप्ति होति हैं। संतान कि कामना हेतु 16 प्रदोष व्रत करने का विधान हैं, एवं संतान बाधा में शनि प्रदोष व्रत सबसे उत्तम मना गया हैं।
संतान कि कामना हेतु प्रदोष व्रत के दिन पति-पत्नी दोनो प्रातः स्नान इत्यादि नित्य कर्म से निवृत होकर शिव, पार्वती और गणेशजी कि एक साथमें आराधना कर किसी भी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक, पीपल के मूल में जल चढ़ाकर सारे दिन निर्जल रहने का विधान हैं।

प्रदोष कथा

इस व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान के भक्त श्री सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूत जी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगा हर तरफ अन्याय और अनचार का बोलबाला होगा। मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोक को प्राप्त होगा। सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाएंगे। यह व्रत अति कल्याणकारी है इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी। इस व्रत में अलग अलग दिन के प्रदोष व्रत से क्या लाभ मिलता है यह भी सूत जी ने बताया।

सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को बताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था। मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैने आपको सुनाया है।प्रदोष व्रत विधान सूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं। सूर्यास्त के पश्चात रात्रि केआने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है। इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है। इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए। इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है।