स्वतंत्रता को सार्थक करने शक्ति का आधार चाहिए |


भारत की राजनीति जिस दिशा में जाती दिखाई दे रही है, उससे भविष्य की चिंता होती है | वह चिंता हमारी आर्थिक व तकनीकी उन्नति या सैन्य बल से दूर नहीं होती | इस समय सोवियत संघ का स्मरण आता है | संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो पॉवर रखने वाला, सबसे बड़ी सैन्य शक्ति संपन्न, विशाल क्षेत्रफल और संसाधन के बावजूद सोवियत संघ का बिखंडन हुआ | बिखंडन के लिए छोटी सी संगठित, निर्भीक शक्ति पर्याप्त होती है | सन 1947 में हमने यही देखा था | आज पुनः भारत में राष्ट्रवादी तथा राष्ट्र से वितृष्णा रखने वालों का अनुपात बिगड़ रहा है | आज देश स्वतंत्र है, शासन हमारे हाथ में है, लाखों की सेना है, अत्याधुनिक सैन्य साजोसामान हैं | किन्तु संग्रामपुरा, पुलवामा, ऊधमपुर, राजौरी जैसे अनगिन स्थानों पर सामूहिक हिन्दू नरसंहार होते रहे, किन्तु देश के शेष भागों में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई |

आसाम में हिन्दू लुप्त प्रजाति बनने जा रहे हैं, बाहरी घुसपैठिये उन्हें धीरे धीरे खदेड़ रहे हैं | इसे रोकना तो दूर की बात है, अधिकाँश राजनेताओं में घुसपैठियों का सरपरस्त बनने की होड़ लगी हुई है | इन नेताओं में अधिकाँश हिन्दू हैं | यही स्थिति बंगाल, केरल, बिहार जैसे राज्यों में भी है | इस दुर्बलता का इलाज सेना और हथियारों से नहीं हो सकता | हिंदुत्व की श्रेष्ठता के अपने मुंह मियाँ मिट्ठू जैसे बयानों से तो बिलकुल भी नहीं | अन्दर बाहर से चौतरफा हो रहे इन आक्रमणों का जबाब देने के लिए समाज की जो सिद्धता चाहिए, उसका नितांत अभाव है | लेदेकर सरकार की जिम्मेदारी कहकर पल्ला झाड लिया जाता है |

यह सीधा सीधा भगोडापन है | गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस मानसिकता को इस प्रकार व्यक्त किया था – 
विशेष प्रयोजन न होने पर भी हिन्दू एक दूसरे पर आघात करते हैं, और प्रयोजन होने पर भी किसी परकीय पर आघात नहीं करते | इसके विपरीत मुसलमान प्रयोजन न होने पर भी अपनी रक्षा के लिए एकजुट हो जाते हैं, और प्रयोजन हो तो दूसरों पर तीव्र आघात कर सकते हैं | इसका कारण यह नहीं कि मुसलमान का शरीर ताकतवर है, या हिन्दू का शरीर कमजोर है, कारण यह है कि मुसलमान समाज शक्तिशाली है, हिन्दुओं का नहीं | 

कोई भी सत्यनिष्ठ अवलोकनकर्ता देखेगा तो यही कहेगा कि सौ वर्ष पूर्व की यह स्थिति आज भी यथावत है | हिन्दू समाज का एक हिस्सा संघ परिवार पर जितना आघात करता है, उसका शतांश भी कश्मीर के जिहादी हत्यारों या माओवादियों पर नहीं करता | दूसरी ओर उदारवादी मुसलमान भी इस्लामी आतंकवादियों की ढाल बनने में संकोच नहीं करते | इस प्रकार की बात करने पर तथाकथित बुद्धिजीवी इसे सांप्रदायिक प्रलाप कहते हैं | 

यह दुर्बलता की पराकाष्ठा है कि हमारे देश के प्रभावशाली नेता और बुद्धिजीवी स्पष्ट दिखाई देने वाली समस्या से आँखें मूंदकर उलटे चिंता व्यक्त करने वाले हिन्दू को ही साम्प्रदायिक और बुराभला कहकर, हिंसा करने वालों की होंसला अफजाई करते हैं | ऐसा करने वाले नोट करलें कि उनकी भीरुता और कमजोरी सारे जिहादी और उग्रवादी जानते हैं | क्या कभी इन लोगो ने सोचा है कि बहुत छोटे और कम साधन वाले पाकिस्तान ने अपने से कई गुना बड़े और साधन संपन्न भारत पर चार चार आक्रमण किस विश्वास पर किये ? क्योंकि वे लोग भारत को एक दुर्बल मनोवृत्ति का देश मानते हैं, जहां हिन्दू लोकाचार व्याप्त है, इसलिए उनका मानना है कि भारत इस्लामी योद्धा-वृत्ति का मुकाबला नहीं कर सकता | आज नहीं तो कल भारत को हराया जा सकता है |

याद करें कि 1947 के पूर्व इसलामी अलगाववाद का सारा आन्दोलन और विभाजन की मांग करने वाला नेतृत्व, और उनके मुख्य समर्थक समूह अलीगढ़, मुम्बई, दिल्ली के थे | विभाजन के बाद भी उस तबके का बहुत बड़ा भाग यहीं रह गया | या यूं कहें कि रहने दिया गया | वह भी बिना शर्त | जो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पाकिस्तान आन्दोलन का केंद्र था, वह आज भी विद्यमान है, और पूरी ठसक से उसी मानसिकता का पोषण कर रहा है, अधिकाधिक सुविधा और विशेषाधिकार पाते हुए |

दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि हिन्दू राष्ट्रवादी कहे जाने वाले संगठनों के नेता भी व्यवसाई वृत्ति के हैं | उनमें से कई लोग अपने निजी हित और पारस्परिक ईर्ष्याद्वेष में गले गले डूबे हुए हैं | अपने सहयोगियों और समर्थकों से भी छल करने में उन्हें कोई संकोच या झिझक नहीं होती | अपना आत्मसम्मान बेचकर भी उनकी प्राथमिकता अपना घर भरना होता है | ऐसी नेतृत्वहीन स्थिति में हिन्दू समाज की दुर्बलता और बिकट दिखाई देने लगती है | इसे केन्द्रीय समस्या मानकर दूर करना हमारी प्राथमिकता होना चाहिए, शेष सारी समस्याएं अपने आप स्वतः हल होने लगेंगी |

1905 में श्री अरविंद ने अपनी रचना भवानी मंदिर में इस समस्या का जो समाधान सुझाया, वही एकमात्र मार्ग है | उन्होंने लिखा था – हमने शक्ति को छोड़ दिया है और इसलिए शक्ति ने भी हमें छोड़ दिया है | 

अब भी समय है, भारतीय जनमानस स्थिति की भयावहता को पहचाने, समझे और अपने स्वार्थान्ध राजनेताओं पर अंकुश लगाने की पहल करे | उन्हें विवश करे कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के एक निष्कपट बयान की आलोचना करने के स्थान पर कभी तो दीनदार अंजुमन, सिमी, इन्डियन मुजाहिदीन, अलकायदा और तालिबान कि खिलाफ भी मुखर हों | सेक्यूलरिज्म, समन्वय, गंगाजमुनी संस्कृति के नाम पर खुली कायरता के प्रदर्शन पर देश के अंदरूनी और बाहरी शत्रु केवल हंसते होंगे | भारत को हड़पने और नष्ट करने की उनकी भूख और बढ़ती होगी |

जागो भारत जागो |

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