जेटली जी की कारस्तानी - सुब्रमण्यम स्वामी की जुबानी


श्री सुब्रमण्यम स्वामी के साक्षात्कार का शेष अंश -

लेकिन आपके इसी राजनीतिक इतिहास के कारण आपके आलोचक आपको अविश्वसनीय बताते हैं ।

यह मूर्खतापूर्ण बात है। मैंने जनता पार्टी कभी नहीं छोडी । वर्षों से वे कहते हैं कि मैं बार बार दल बदलता हूँ । अब वे कहते हैं कि मैं गठजोड़ बदल रहा हूँ । मुझे बताईये कि गठजोड़ किसने नहीं बदले ? सोनिया गांधी ने इंद्रकुमार गुजराल सरकार को इस कारण गिराया, क्योंकि उसमें लिट्टे का समर्थन करने वाले एम करुणानिधि सहयोगी के रूप में थे । लेकिन इसके केवल तीन साल बाद दोनों ने गठबंधन किया, जो अभी भी जारी है।

वाजपेयी जी ने क्या किया? आज हमारा कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ जो गठबंधन है, वह क्या है ? मेरा आशय है कि उनके पास मेरे खिलाफ कहने के लिए और कुछ नहीं है । वे मुझे मूर्ख नहीं कह सकते; वे मुझे एक अनपढ़ नहीं कह सकते; मुझे बेईमान भी नहीं कह सकते। इसलिए मुझे 'असंगत' और 'आवारा' कहते हैं ! जबकि 'आवारा' तो संयुक्त राज्य अमेरिका में एक तारीफ है। ये बेवकूफ अंग्रेजी भी नहीं जानते ।

क्या आपका अभिप्राय यह है कि वाजपेई सरकार गिराने में आपकी भूमिका के कारण वर्तमान सरकार आपसे सतर्क है |

मुझे ऐसा नहीं लगता |

2014 में लोगों को लगता था कि शायद आपको नई दिल्ली से उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा जा सकता है ।

मै प्रत्याशी था। मुझे पहले बता भी दिया गया था। किन्तु अकस्मात श्री अरुण जेटली सामने आ गए – आप मुझे उद्धृत कर सकते हैं – नामांकन से ठीक पहले आखिरी दिन रात में 10 बजे भाजपा चुनाव समिति ने निर्णय लिया कि 'नई दिल्ली में हमें एक पंजाबी की जरूरत है | यह उस समय हुआ, जबकि मैं अगले दिन नामांकन दाखिल करने की तैयारी कर रहा था । मेरे सारे भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का क्या हुआ? मेरे सारे हिंदुत्व का क्या हुआ? किसी को भी नामांकन दाखिल करने का अवसर नहीं था । आज भले कमजोर हो गई हो लेकिन उस समय जेटली की स्थिति काफी मजबूत थी और वह मुझे काटने में सफल हो गया ।

उस समय पार्टी अध्यक्ष ने मुझे आश्वासन दिया कि पहला अवसर आते ही मुझे राज्यसभा के लिए भेजा जाएगा । नही भेजा गया! जब मंत्रिमंडल का गठन किया जा रहा था, तब मुझे रात को बुलाकर कहा गया कि कल आपको नरेंद्र मोदी वित्त मंत्री बनायेंगे । मैं नहीं बताऊंगा कि मुझसे किसने कहा, बस इतना ही कि वह उच्च पदाधिकारी हैं । सब अखबारों ने लिखा भी कि स्वामी नए वित्त मंत्री होंगे |

तो ऐसे अनिश्चित परिदृश्य में आप भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष के मामलों में कितने समर्थन की उम्मीद करते हैं?

मुझे किसी के भी समर्थन की आवश्यकता नहीं है । मैं एक बात और कहना चाहता हूँ । मैं नरेंद्र मोदी को 1972 से जानता हूँ | जो कुछ मेरे साथ हुआ है उसके बाबजूद मेरा मानना है कि उसका दिल सही जगह पर है । और हमें उसकी जरूरत है। आप मुझे कभी मोदी के खिलाफ जाते नहीं पायेंगे, जब तक कि पहला प्रहार मोदी की तरफ से न हो | मुझे संसदीय सीट नहीं मिली कोई बात नहीं, इससे मुझे गुस्सा आ सकता है, किन्तु कोई बात नहीं, मुझे पता है कि हर कोई मेरा समर्थक है, मोदी भी । मुझे वह पसंद है। वह एक अच्छा आदमी है। इसलिए मुझे वास्तव में उससे किसी भी मदद की जरूरत नहीं है। वह जानता है कि मैं क्या कर रहा हूँ और वह सराहना भी करता है कि मैंने वह नहीं किया जो अरुण शौरी ने किया या राम जेठमलानी ने किया था । जीत में योगदान देने का मेरे पास एक बड़ा कारण है।

लेकिन राज्य के समर्थन के बिना अधिकांश मामलों में आप नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ लड़ाई नहीं जीत सकते।

नहीं, नहीं, यह सच नहीं है। मैं उनके खिलाफ हर मामले में जीता हूँ । ये केवल प्रचार है, जो कांग्रेस के लोग कर रहे हैं, और आप लोग बिना सत्यापन के कांग्रेस की बात स्वीकार करते हैं। अब मैं क्या कहूं , असल में पत्रकार उन लोगों के साथ ज्यादा सुविधा महसूस करते हैं, जिनका रवैया सामाजिक दृष्टिकोण पर लचीला होता है ।

मैं आपको बताउँगा। पहली बात उनकी शैक्षिक योग्यता । जब मैंने यह तर्क दिया तब क्या हुआ? सोनिया गांधी का जबाब था कि यह एक टाइपिंग की गलती थी । मैंने सुप्रीम कोर्ट से केवल इतना कहा कि यह दुनिया के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चली टाइपिंग की गलती थी; इसे गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल करें। 2004 के उनके हलफनामे को देखो, और 2006 और 2009 के उनके हलफनामे, उसके बाद उन्होंने एक उपचुनाव भी लड़ा । उन्हें सही करना चाहिए था ।भारत के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि डॉ स्वामी यह राज्य का विषय है, उदार बनें, और भूल जाएँ । वह अब दोबारा गलती नहीं करेंगे | 

हाँ, उनके हलफनामों की तिथियों अलग अलग हैं।

हाँ, मैं जीत गया।

और फिर राहुल गांधी की शैक्षिक योग्यता?

लेकिन मैं उस विषय को अदालत में नहीं ले गया ।

इंडियन एक्सप्रेस ने एक नई कहानी प्रकाशित की है ।

मुझे उस शपथ पत्र की जानकारी है, पर पहले इस पासपोर्ट के विषय को ख़त्म कर लें ।

तो अब हम बक्कोप्स पर आते हैं, यह मामला क्या है?

मामला यह है कि ब्रिटेन में कंपनी द्वारा जो दस्तावेज प्रस्तुत किये गए, उनमें राहुल गांधी को कम्पनी का सचिव व डायरेक्टर दर्शाया गया । डायरेक्टर होने के नाते न सही, कंपनी के सचिव होने के नाते वे उन सभी दस्तावेजों के लिए जिम्मेदार हैं । वे कंपनी के सचिव है; वे दस्तावेज प्रस्तुत करते हैं । निगमन के समय, वे स्वयं को एक भारतीय नागरिक बताते हैं। उनके द्वारा स्वयं यह खुलासा किया गया कि वे एक भारतीय नागरिक है । कंपनी बनी 2003 में | पहली बार 2004 में उन्होंने स्वयं को ब्रिटिश नागरिक बताया, किसी ने इसे मिटाकर भारतीय लिखा, मैं नहीं जानता कि किसने । लेकिन इसके बाद 2005, 2006, 2007, 2008 में और यहाँ तक कि कंपनी के विघटन होने तक की कार्यवाही में उन्होंने स्वयं को ब्रिटेन का नागरिक बताया ।

अब ध्यान दीजिये कि उनके द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा रहा, केवल कांग्रेस पार्टी कह रही है कि यह एक 'टाइपिंग गलती' थी । मुझे समझ मैं नहीं आ रहा कि साल दर साल यह कैसे हो सकती है । मुझे कुछ भी साबित करने की जरूरत नहीं है। मैंने उनके द्वारा हस्ताक्षरित उनके द्वारा दायर किये गए दस्तावेज सामने लाये हैं ।

मुद्दा यह है कि उन्हें इस विसंगति की व्याख्या करना चाहिए । इसे टाइपिंग की गलती नहीं माना जा सकता । अपने द्वारा दायर किये गए सभी दस्तावेजों का पूरा खुलासा करना चाहिए ।
अब वह दुविधा में है। 

यदि वह यह सिद्ध करते हैं कि वह एक भारतीय नागरिक हैं तो वह एफसीआरए (विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम) और पीएमएलए (धनशोधन निवारण) के तहत आरोपी बनते हैं । इसके अतिरिक्त अपने चुनाव रिटर्न में भी इस का खुलासा नहीं करने के कारण भी लोकसभा की आचार समिति उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती हैं । अगर वह नहीं करते हैं, तो उनकी नागरिकता समाप्त होती है ।

मैंने 2014 के चुनाव से पहले आपका एक पुराना वीडिओ देखा था, जिसमें आप यह कहते दिखाए गए हैं कि जब वे पैदा हुए, उस समय भी सोनिया गांधी एक इतालवी नागरिक थीं ।

हाँ! यह सही है। और उन्होंने अपने बेटे को इतालवी नागरिक भी बना दिया था । किन्तु मैं अभी तक उस पासपोर्ट को प्राप्त करने में सफल नहीं हुआ हूँ ।

देखिये एक पासपोर्ट प्राप्त करना मुश्किल नहीं है । मुख्य बात यह है कि उसे ब्रिटिश दस्तावेजों की तरह सत्यापित होना चाहिए। आखिर ब्रिटिश अधिकारियों का भी बयान आया है कि दस्तावेज वास्तविक हैं, लेकिन कंपनियों के रजिस्ट्रार जिसे वे कंपनी हाउस कहते हैं, उन प्रविष्टियों की पुष्टि करने की जिम्मेदारी नहीं लेते । यह जिम्मेदारी उनकी (राहुल की) है कि वे स्वयं सिद्ध करें कि वे स्वयं व्याख्या करें कि उन्होंने एक ब्रिटिश नागरिक के रूप में कंपनी के दस्तावेज क्यों दायर किये ।

हाल ही में संपन्न बिहार चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की पराजय हुई । यह कहा जा रहा है कि यदि मोदी सरकार ने कांग्रेस नीत संप्रग, खासकर कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार के सभी मामलों को आगे बढ़ाया होता तो ये नेतागण एकजुट होकर लड़ने के स्थान पर अपने घाव सहला रहे होते ।

इससे मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ ।

तो इस सरकार ने यह दुर्लक्ष्य क्यों किया?

यह जेटली साहब की रणनीति थी कि 'उनके लिए अच्छे बने रहो' | मैंने प्रारम्भ में ही मोदी जी से कहा था कि जब जेटली यह कहते हैं कि 'उनके लिए अच्छे बने रहो', तो यही मुझे बाहर रखने का एक प्रमुख कारण भी था, क्योंकि मैं उनके लिए ठीक बैसा ही था जैसे “एक सांड के सामने लाल कपडा” । जेटली ने मेरे भाजपा में प्रवेश का भी विरोध किया; यह नितिन गडकरी थे ...

क्या मैं इसे उद्धृत कर सकता हों ?

हां बिल्कुल। जेटली ने मेरे भाजपा में प्रवेश का विरोध किया। निश्चित रूप से नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह और मुख्यतः राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कारण उन्हें अपने पैर पीछे खींचने पड़े । उन्होंने (जेटली ने) ही मेरे द्वारा की गई वाजपेयी जी की आलोचना का मुद्दा उठाया।

तब नितिन गडकरी ने कहा कि हमने जो उनकी आलोचना की उसका क्या? क्या हम आजीवन अपने अतीत के बारे में ही बात करते रहेंगे ? अब पत्नी और पति में झगड़ा होता है, तब वे भी एक दूसरे को बहुत बुरा भला कहते हैं, लेकिन उसके बाद सब भूल जाते हैं? ' 

जेटली का दृष्टिकोण हमेशा से यही था ... और वह इसे छुपाता भी नहीं था, उसने खुले तौर पर मुझे भी बताया था - 'सोनिया के साथ लड़ने की आपकी शैली, हमारी शैली से अलग है, और मैं नहीं समझता कि आप भाजपा में फिट है।' तो यही उनका नजरिया था ।

तब मैंने कहा था कि “ये लोग इस धरती पर पैदा हुए सबसे कृतघ्न लोग हैं । आप इनके साथ कितनी ही अच्छी तरह से पेश आओ, वे यही मानेंगे कि यह उनका मौलिक अधिकार है । वे आपके आभारी नहीं होंगे । वे हमारे सत्ता में आने को कभी स्वीकार नहीं करेंगे । कुछ अंतरराष्ट्रीय शक्तियां, जैसे अंतरराष्ट्रीय ईसाई समुदाय और उनसे जुड़े हुए गैर सरकारी संगठन हमें पसंद नहीं करते क्योंकि हम एक अलग धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं ।

और यदि हम हिंदुओं को एकजुट करने में सफल हो जाते हैं, तो फिर चुनाव में क्या बाक़ी रहेगा? हम 80 प्रतिशत हैं। इसके आधे भी अगर एकजुट हो जाएँ, तो क्या नहीं कर सकते ? अभी महज 31 फीसदी ने हमें पूर्ण बहुमत दे दिया ।

तो क्या आप आशान्वित हैं कि वर्तमान सरकार के शेष बचे तीन वर्षों में भ्रष्ट लोगों के आकार में कटौती होगी ?

अगर भ्रष्टाचार से लड़ने की मोदी की वर्तमान गुटनिरपेक्ष नीति जारी रही, तो निश्चित रूप से हम उनको समाप्त कर सकेंगे ।

यह गुटनिरपेक्ष नीति क्या है?

मोदी अपने कुछ सहयोगियों के इशारे पर भी भ्रष्ट को बचाने की कोशिश नहीं करते । बिहार को लेकर या संसद को रोके जाने के मामले में, मैंने उनसे जो कुछ कहा, वे उससे सहमत रहे । कम से कम मुझे यही लगता है । उन्होंने मुझसे कभी नही कहा कि - 'तुम सही थे और मैं गलत था' या 'मैं गुमराह किया गया था' या इस तरह की अन्य कोई बात, लेकिन मुझे लगता है वह अब वह किसी को भी अपने प्रभाव का दुरुपयोग करने की अनुमति नहीं देता ।

(इस साक्षात्कार के कुछ अंश मैंने जानबूझकर अनूदित नहीं किये हैं, जैसे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरुद्ध लेख लिखने के बाद श्री सुब्रमण्यम स्वामी के खिलाफ संघ स्वयंसेवकों द्वारा किये गए प्रदर्शन, तथा अटल जी से स्वामी के मतभेद आदि | आप चाहें तो मूल अंग्रेजी लिंक पर उन्हें पढ़ सकते हैं - सम्पादक क्रांतिदूत)

साभार - http://swarajyamag.com/politics/subramanian-swamy-this-nehru-gandhi-family-is-totally-anti-national/

साक्षात्कार का प्रथम भाग -

सोनिया जी की कहानी, सुब्रमण्यम स्वामी की जुबानी !

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