सोनिया जी की कहानी, सुब्रमण्यम स्वामी की जुबानी !


श्री सुब्रमण्यम स्वामी एक ऐसे राजनीतिज्ञ हैं, जो ऐसी बातो को भी कह देते हैं, जिन पर मुंह खोलने से पहले अन्य लोग तीन बार सोचेंगे | देश की प्रमुख वेव साईट http://swarajyamag.com/ के राष्ट्रीय मामलों के संपादक सुरजीत दासगुप्ता द्वारा लिए गए एक साक्षात्कार के कुछ रोचक अंशों का हिन्दी अनुवाद । इस साक्षात्कार में आप नेशनल हेराल्ड सहित कई महत्वपूर्ण विषयों पर श्री स्वामी के बेबाक विचार जान पायेंगे -

आपको अक्सर नेहरू-गांधी परिवार पर निशाना साधते देखा जाता है | कभी उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि तो कभी उनके कथित संदिग्ध लेन-देन आदि | इस परिवार की खिलाफत के पीछे क्या कोई व्यक्तिगत कारण भी है ?

यह सच नहीं है । जब आप किसी व्यक्ति को देश के लिए बुरा मानते हैं, तो फिर उसको दुश्मन मानकर ही भिड़ते हैं, तब उस व्यक्ति के जीवन के सभी आयाम आपके लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं । अधिकाँश लोकतांत्रिक देशों में यही होता है । बिल क्लिंटन और मोनिका लेविंस्की के संबंधों का प्रकरण स्मरण कीजिए, क्या वह सामने नहीं लाया गया ? महात्मा गांधी कहा करते थे कि एक सार्वजनिक व्यक्ति के लिए सार्वजनिक जीवन और निजी जीवन जैसा कुछ नहीं है । हाँ, कुछ मामले हैं, जैसे मेरा मेरी पत्नी के साथ झगड़ा हुआ - यह मेरे सार्वजनिक जीवन का हिस्सा नहीं हो सकता; बशर्ते इसका समाज पर कोई प्रभाव न पड़ता हो । लेकिन आगर आप एक पाकिस्तानी जासूस के साथ सोये हैं, भले ही इसमें आपसी सहमति बताकर उदारवादी समाज सही ठहराए, किन्तु यह एक सार्वजनिक हित का मामला है ।

क्या आप इस परिवार को इतना खतरनाक मानते हैं?

जहां तक भारत का प्रश्न है, यह परिवार पूरी तरह से राष्ट्र विरोधी है। मैं इसे और अधिक स्पष्ट करता हूँ | राजीव गांधी और मैं बेहद बेहद करीबी दोस्त थे। यहाँ तक कि जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, वे संसद के गलियारे में अक्सर मेरे साथ बैठते थे । उनकी पराजय के बाद भी वह और मैं लगभग प्रतिदिन दो घंटे साथ गुजारते थे | अतः मुझे अच्छी प्रकार से पता है कि उनकी शादी किन परिस्थितियों में हुई और राजीव और सोनिया के बीच कैसे संबंध थे ।

अतः मैं यह नहीं कह सकता कि मैं नेहरू-गांधी परिवार का विरोधी हूँ, लेकिन मैं निश्चित रूप से अपने स्कूल जीवन से ही नेहरू विरोधी रहा । मैं इसका कोई कारण नहीं बता सकता, सिवाय इसके कि जितना मैंने उनके विषय में जाना उतना उन्हें नापसंद करता गया । मैंने 1980 में दोबारा सत्ता में आने तक इंदिरा गांधी का मरणान्तक विरोध किया । किन्तु उनकी मौत के पूर्व मेरे और उनके सम्बन्ध मधुर हो गए थे । और ख़ास बात यह कि इसके लिए पहल उनकी ओर से हुई | हालांकि इसमें राजीव गांधी का महत्वपूर्ण योगदान था | अक्सर विभिन्न मुद्दों पर हमारे बीच विचार विमर्श भी होता था | उन्होंने निश्चित रूप से चीन के मामले में मेरी मदद ली। इसलिए उनके अंतिम दिनों में हम एक-दूसरे के खिलाफ नहीं थे। हालांकि मैं इस विषय में अधिक विचार नहीं करता |

मैं राजीव का शुभचिन्तक था । वे एक महान देशभक्त थे, अगर वे दोबारा सत्ता में आते तो एक महान प्रधानमंत्री सिद्ध होते, और मैं उनका समर्थक होता । खुले तौर पर संसद के पटल पर मैंने कहा था कि उन्होंने बोफोर्स मामले में पैसा नही लिया, पैसा सोनिया के करीबी दोस्त ओत्तावियो क्वात्रोच्चि को मिला, और यह बाद में साबित भी हुआ, किन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।

मैंने सोनिया की पृष्ठभूमि के बारे में ज्यादा शोध नहीं किया, मेरे उसके साथ सम्बन्ध मित्रवत थे । लेकिन वह एक कुशल अभिनेत्री है। जब उसके लिए आप उपयोगी हैं, तो वह आपको अच्छी दोस्त दिखाई देगी । एक समय जब पीवी नरसिंह राव ने उन्हें पूरी तरह दरकिनार कर दिया था – जबकि मैं और नरसिंह राव अच्छे दोस्त थे; उनकी सरकार में एक आयोग के अध्यक्ष के रूप में मेरी स्थिति मंत्री स्तर की थी - वह प्रति सप्ताह मेरे साथ चाय पर मिलती थीं । वस्तुतः उन्होंने मुझसे कहा भी कि वे एक भारतीय की तुलना में सिसिली अधिक हैं । मैंने उनसे पूछा भी कि 'आप ऐसा क्यों कह रही हैं ?' उनका जबाब था कि 'भारतीयों को लात खाना पसंद है।' अक्षरशः उसने मुझसे यही कहा था । उसने मुझे एक क्रूर व्यक्ति भी कहा, क्योंकि उन दिनों मैं जे जयललिता को कठिनाई में डाले हुए था ! 

वह मेरी उसके साथ आख़िरी मीटिंग थी । मैंने उससे कहा भी कि यह मेरी आपके साथ आखिरी बैठक है, मैं अब तुमसे फिर कभी नहीं मिलूंगा । आप स्वयं को भारतीय की तुलना में सिसिली अधिक मानती हो | अब मैं आपको बताता हूँ कि सिसिली क्या है ।

मुझे राजीव गांधी के माध्यम से पता चला कि सोनिया लम्बे समय से फिलिस्तीनियों के जॉर्ज हबश समूह के साथ सम्बंधित थी, तथा वह उन्हें पैसा भी भेजती थी । जब राजीव गांधी सत्ता से बाहर हो गये तब एक बार उन्होंने मुझे ट्यूनीशिया जाकर यासर अराफात से मिलने के लिए भेजा | वे जानना चाहते थे कि सोनिया द्वारा भेजे गए पैसे उन तक पहुंचे अथवा नहीं ।

क्या ट्यूनीशिया के लिए उड़ान भरने के लिए सोनिया गांधी ने आपसे कहा?

नहीं, यह राजीव गांधी ने किया। 10 अक्टूबर 1990 को मैंने ट्यूनीशिया के लिए उड़ान भरी और वहां जाकर मैंने यासर अराफात से मुलाकात की, जो उन दिनों भूमिगत थे | स्वाभाविक ही इसके लिए विशेष व्यवस्था की गई । मुझे हवाई अड्डे पर रिसीव किया गया और उस ठिकाने पर ले जाया गया, जहां उन दिनों यासिर छुपे हुए थे । यह केवल इसलिए किया गया, क्योंकि सोनिया इसके लिए राजीव को तंग कर रही थीं | जब वे सत्ता में थे, उन्होंने उन फिलिस्तीनी परिवारों को पैसा भेजा था, जिन्होंने आत्मघाती बम हमलों में अपने बेटों को खो दिया था और वह जानना चाहती थी कि पैसा उन तक पहुंचा या नहीं ।

दरअसल जॉर्ज हबश एक ईसाई समूह है, लेकिन साथ ही यह समूह लिट्टे को भी प्रशिक्षित करता है। उनका लिट्टे के साथ सम्बन्ध तब समाप्त हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट ने उसके चार लोगों को इस हद तक दोषी माना (स्पष्ट ही स्वामी का इशारा राजीव हत्याकांड की ओर है) कि उन्हें फांसी पर लटकाने की सजा सुना दी । उसने बाद में राष्ट्रपति को पत्र लिखकर सजा न दिए जाने की गुहार लगाई, और फिर बाद में उन हत्यारों में से एक से मिलने अपनी बेटी को भी भेजा ।

मैं राजीव को बहुत पसंद करता था, मैं इसे नहीं पचा सकता । उसके बाद मैंने अनुसंधान शुरू किया । इसलिए यह कहना कि मैं नेहरू-गांधी परिवार से घृणा करता हूँ, सही नहीं है। हाँ, मैंने नेहरू को कभी पसंद नहीं किया, लेकिन वह शुद्ध नीतिगत बात है । और बाद में जब मैं चंद्रशेखर सरकार के सबसे वरिष्ठ मंत्रियों में से एक था, और मैंने वे फाईलें देखीं जिनमें कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में देने का प्रस्ताव था, मेरी धारणा और पुष्ट हुई ।

जैसा कि मैंने कहा कि 1981 से 1984 तक इंदिरा गांधी से मेरे सम्बन्ध अच्छे थे और राजीव तो एक दोस्त था ही । राजीव ने अपने सभी मित्रों से अधिक मुझ पर भरोसा किया, मैं उनका सबसे भरोसेमंद दोस्त माना जाता था। 8 दिसंबर को एनडीटीवी पर एक कार्यक्रम के दौरान मुझे जानने वाले तीन पत्रकार वक्ताओं ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि स्वामी इस परिवार से घृणा करते हैं, वह राजीव गांधी के बहुत अच्छे दोस्त थे ।

लेकिन इसके विभिन्न कारण भी हैं - आप नेहरू को पसंद नहीं करते थे; काफी हद तक आप इंदिरा गांधी को भी पसंद नहीं करते थे, लेकिन अंतिम समय में आपकी उनसे नजदीकी हुई...

हाँ, मैं उसे बिल्कुल पसंद नहीं करता था ।

लेकिन 1980 और 1984 के बीच आपके उनके साथ कामकाजी रिश्ते थे ।

हाँ, यह सही है। मैंने उनके लिए काम किया; मैं चीन गया। आप देंग जियाओपिंग (दीवार पर एक तस्वीर दिखाते हुए) को मेरे साथ बैठे देख सकते हैं। उन्होंने किसी भारतीय नेता से मुलाकात नहीं की, लेकिन वह मुझसे मिले।

और फिर आप राजीव गांधी के बहुत करीब थे।

हाँ।

कुछ खुलासे हुए जिनसे आप सोनिया गांधी के बड़े विरोधी दिखाई देते हैं ।

हाँ, जैसे जैसे तथ्य सामने आते गए, मसलन राजीव गांधी ने मुझसे ट्यूनीशिया जाने के लिए पूछा । हबश समूह के साथ उसके सम्बन्ध क्यों थे?

फिर बाद में लिट्टे और उनके सम्बन्ध... और फिर जब मैंने उनका निजी व्यवहार देखा; वह विश्वसनीय महिला नहीं है । मैं उसके आग्रह पर भाजपा सरकार को मनाया । लेकिन उसने धोखा दिया | उसने मलेशिया से क्वात्रोच्चि को मुक्त कराने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के साथ सौदा किया और फिर वैकल्पिक सरकार के गठन के लिए तोड़फोड़ की!

यह 1999 में हुआ जब राजग ने संसद में एक वोट से सत्ता खोई ?

हाँ।


साभार - http://swarajyamag.com/politics/subramanian-swamy-this-nehru-gandhi-family-is-totally-anti-national/

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जेटली जी की कारस्तानी - सुब्रमण्यम स्वामी की जुबानी

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