एक गाँव से पैदा हुआ “नक्सलवाद” , कैसे बना विराट ? कैसे हो समाधान ? - दिवाकर शर्मा

भारत में नक्सलवाद की शुरुवात तथाकथित कम्युनिस्टों के द्वारा हुई ! इसे प्रारम्भ में कम्युनिस्ट आन्दोलन ही कहा गया ! भारत में नक्सलवाद की उत्पत्ति पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गाँव नक्सलबाड़ी से हुई ! यह गाँव दार्जलिंग जिले में नेपाल की सीमा से लगा हुआ है व वर्तमान में यह कस्बे का रूप धारण कर चुका है ! आज भी यह कस्बा अपने नक्सली अतीत व आधुनिकता के दौर में पशोपेश की स्थिति में है ! 

साठ के दशक के अंत में नक्सलवाद की शुरुवात किसानों और मजदूरों को उनका हक़ दिलाने के नाम पर हुई ! आज नक्सलवाड़ी कस्बे में तस्करी मुख्य व्यवसाय बन चुका है ! नक्सलवाद की शुरुवात भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारु मजूमदार और कानू सान्याल ने वर्ष १९६७ में सत्ता के विरुद्ध सशस्त्र आन्दोलन के साथ की ! 

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मजूमदार भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियों को जिम्मेदार मानते थे ! उनका कहना था कि सरकार की गलत नीतियों के कारण उच्च वर्गों का शासन तंत्र कृषि तंत्र पर हावी हो चुका है, अतः इस न्यायहीन व दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रान्ति के माध्यम से ही समाप्त किया जा सकता है ! इस सशस्त्र आन्दोलन को पुलिस ने कुचलने का प्रयत्न किया गया, परन्तु इस समस्या की आग बुझने की बजाय तेजी से अन्य राज्यों जैसे झारखंड, ओड़िसा, बिहार, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश में भी फ़ैलाने और अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगी और देखते ही देखते यह देश के लिए गंभीर चुनौती बन गयी !

यदि देखा जाए तो नक्सल प्रभावित जिलों को राज्य व केंद्र सरकार द्वारा पर्याप्त पैसा मुहैया कराया जाता रहा है, परन्तु इस पैसे का सही उपयोग नहीं किया गया ! यदि इन पैसों का सही उपयोग होता तो जिले व राज्य की तस्वीर ही कुछ और होती ! वर्तमान में यह समस्या केवल एक क्षेत्र विशेष की नहीं है बल्कि देश के आधे से ज्यादा भूभाग की है !

वर्ष २००६ में नक्सलवाद की समस्या से निपटने हेतु योजना आयोग ने एक समिति का गठन किया ! इस समिति ने अप्रैल २००८ में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौपी ! इस रिपोर्ट में कहा गया था कि किस तरह सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक रूप से आदिवासी, दलित समाज पीडित है ! उनकी समस्याओं के निराकरण के नाम पर सरकार से पहले नक्सली आगे आते है ! अतः नक्सलियों को समाज में दबे कुचले लोगों का समर्थन प्राप्त हो जाता है ! इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि गरीबी और शोषण का नक्सलवाद से सीधा सम्बन्ध है ! आज भी कुछ विश्लेषकों का मानना है कि उस समय इस रिपोर्ट के किसी भी पहलू पर ख़ास ध्यान नहीं दिया गया जिसके परिणामस्वरूप नक्सलवाद लगातार बढ़ता गया !

कुछ विश्लेषक मानते है कि देश में नक्सलवाद की समस्या के लिए सीधे तौर पर सरकार जिम्मेदार है ! अगर सरकार यह सोचती है कि केवल सेना के बल पर नक्सलियों को काबू में किया जा सकता है तो यह संभव नहीं है ! इससे नक्सलवाद और हिंसक ही होगा ! वास्तविकता यह है कि यदि नक्सलियों का कहर सरकारें दूर कर पाती तो शायद नक्सलवाद अपनी जडें नहीं जमा पाता ! इसमें दो राय नहीं है कि नक्सलवाद आतंकवाद से भी बड़ा ख़तरा है !

हमारे देश के १८० जिले यानि भूगोल का लगभग 40 प्रतिशत भाग नक्सलवादियों के कब्जे में है ! इन इलाकों का नाम ही “रेड कोरिडोर” पड़ चुका है ! कुल नक्सल प्रभावित इलाका ९२ हजार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है ! नक्सलियों के द्वारा लोगों से टैक्स वसूला जाता है, यह अपने शत्रुओं का सफाया करते है, अपने मुताबिक़ अपनी अदालते लगाकर तथाकथित न्याय करते है ! इन्ही नक्सलियों ने वर्ष २००९ में लालगढ़ में पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार को अपनी ताकत दिखाई थी और इसी राज्य की एक अन्य मुख्यमंत्री तृणमूल नेता ममता बनर्जी बाद में जंगल महल के नक्सलवादियों-माओवादियों से बातचीत के लिए याचना करती दिखाई दीं ! इससे पूर्व भी कई बार नक्सलियों से हथियार डालने व बातचीत करने की अपील की गयी है, मगर कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिली ! नक्सलवाड़ी चीनी कम्युनिष्ट नेता माओ त्से तुंग की विचारधारा से प्रेरणा लेकर खुलेआम सशत्र क्रान्ति की बात करते है (माओ त्से तुंग २०वीं सदी का निर्मम नेता था जिसने अहं तथा सत्ता लिप्सा के चलते न केवल 7 करोड़ लोगों की ह्त्या करवाई बल्कि ‘किसानों की क्रान्ति’ के नाम पर चीन को दमन चक्र की चक्की में बुरी तरह पीसा) ! नक्सलियों को यह बात भी समझनी चाहिए कि आज खुद चीन में माओ का नाम लेने वाले विलुप्त होते जा रहे है !

वर्ष १९६७ में जब भारत में नक्सलवादी आन्दोलन शुरू हुआ तब चीन की कम्युनिष्ट पार्टी बड़ी प्रसन्न हुई क्यूंकि इससे पूर्व श्रीकाकुलम (आन्ध्रप्रदेश) में १९४९ में सशस्त्र कम्युनिष्ट क्रान्ति का प्रयास विफल हो गया था !

१९६७ में प. बंगाल में शुरू हुआ नक्सली आन्दोलन अन्य राज्यों में तो फैला ही साथ ही देश के बड़े बड़े विश्वविधालयों में पढने वाले छात्र भी इसकी गिरफ्त में आने लगे ! १९६७ से १९७५ तक इस आन्दोलन का प्रथम चरण विफल सिद्ध हुआ ! अकादमिक बहसों ने इस आन्दोलन को कई गुटों में विभक्त कर दिया था ! स्थिति ऐसी उत्पन्न हो गयी थी कि १९८० के दशक की शुरुवात में लगभग 30 नक्सलवादी संगठन भारत में सक्रिय थे ! इसके लगभग डेढ़ दशक बाद नक्सली संगठित होना प्रारंभ हुए, यह सभी संगठन अब एक ही झंडे के तले कार्य करने लगे जिसे "माओवादी कम्युनिष्ट सेंटर" का नाम दिया गया ! इसका नेपाल के माओवादियों से भी तालमेल था !

नक्सलियों को सत्ता चाहिए वह भी हिंसा से ! विचारणीय यह भी है कि लोकतंत्र का नकाब ओढ़कर देश में होनेवाले चुनाव भी हिंसा से ही जीते जा रहे रहे है ! कहीं मतदान स्थल पर आक्रमण किया जा रहा है, कहीं मतदान दल को नजरबन्द किया जाता है, कहीं मतदाता को डरा धमका कर तो कहीं शराब व पैसे बांटकर ! 

नक्सलवाद जैसी समस्या का समाधान केवल सभ्य मानव समाज है जो आत्मशासित हो, जहाँ किसी भी शासन की आवश्यकता ही न हो ! क्या ऐसा हो पायेगा ? फिलहाल अभी तो यह संभव नहीं है ! आरक्षण रुपी भीख के कटोरे, राजनैतिक भ्रष्टाचार, बोद्धिक विकास हेतु अनुर्वरक स्थितियां, सरकारी नौकरियों व उनमे पदोन्नत्तियों हेतु खुलेआम बेशर्मी से सौदेबाजी, दोषपूर्ण कृषि नीतियाँ, कुटीर उद्योगों की ह्त्या एवं असंतुलित आर्थिक उदारीकरण आदि ऐसे पोषक तत्व है जो नक्सलवाद को मरने नहीं देंगे, कम से कम अभी तो नहीं !

नक्सलवाद की समस्या के समाधान 

1. दृण राजनैतिक इच्छाशक्ति का विकास
2. सामान्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु उपाय, विकास के समान अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए !
3. शासकीय योजनाओं का समुचित क्रियान्वयन व उनमे पारदर्शिता जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके !
4. उचित व सहयोगी कानून व्यवस्था जो स्थानीय लोगों को नक्सलवाद का प्रतिकार करने का साहस दे  !
5. लोगों को सहज एवं समय पर न्याय मिलने की सुनिश्चितता हेतु न्याय व क़ानून व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर बल !
6. सामाजिक विषमताओं पर अंकुश लगाने हेतु आजीविकापरक व सर्वोपलब्ध शिक्षा की व्यवस्था !
7. वर्गभेद की सीमाओं को नियंत्रण करने हेतु कुटीर उद्योगों को पुनर्जीवित करने के लिए समुचित प्रयास !
8. नक्सलियों को राष्ट्र के विकास की मुख्यधारा में लाने हेतु उनके पुनर्व्यवस्थापन हेतु रोजगारपरक विशेष पैकेज की व्यवस्था !
9. नक्सलियों को प्राप्त होने वाली चीन व पाकिस्तान की मदद को रोकने हेतु दृण राजनैतिक व सफल कूटनीतिक उपायों पर गंभीरतापूर्वक चिंतन एवं प्रयासों का वास्तविक क्रियान्वयन !

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