एक अकिंचन की राम कहानी - भाजपा प्रवेश और निष्कासन !



1980 में जनता पार्टी का विघटन हुआ, भारतीय जनता पार्टी बनी, और उसके साथ ही हुआ राजनीति में मेरा औपचारिक प्रवेश ! शिवपुरी नगर मंडल अध्यक्ष बने श्री प्रेमनारायण भार्गव एडवोकेट और मुझे बनाया गया कोषाध्यक्ष ! कहने को तो महज कोषाध्यक्ष था, किन्तु सक्रियता और आपातकाल के प्रभा मंडल के कारण मेरी भूमिका कहीं अधिक थी ! इसी वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में माधवराव जी कांग्रेस टिकिट पर विजई हुए ! किन्तु वे जब खनियाधाना में चुनाव प्रचार को गए, उस समय उनपर पथराव हुआ ! उस समय उनकी ओर आने वाले पत्थरों को एक नौजवान ने अपने ऊपर झेला ! माधवराव जी की नज़रों में वह चढ़ गया ! उस नौजवान का नाम था गणेश गौतम ! वही गणेश गौतम जो हमारे मित्र दिनेश का कजिन था तथा उसका उल्लेख पूर्व में कर चुका हूँ ! माधवराव जी इस बार भारी बहुमत से विजई हुए !

इसी वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में गोपाल डंडौतिया जी को शिवपुरी विधानसभा से टिकिट मिला ! पूर्व विधायक रहे सुशील बहादुर अष्ठाना जी इस बार भी अपनी आपातकाल की भूमिका के चलते टिकिट से बंचित रहे ! स्वाभाविक ही उनके व उनके समर्थकों के मन में इसके चलते क्षोभ रहा ! गोपाल जी के सामने कांग्रेस उम्मीदवार थे, माधवराव जी के प्रियपात्र बन चुके गणेश गौतम ! यहाँ यह उल्लेख करना उचित होगा कि गोपाल जी ने कभी सभा मंचों पर राजमाता सिंधिया को राजमाता संबोधन नहीं दिया ! वे हमेशा उन्हें संसद सदस्या विजयाराजे सिंधिया कहकर ही संबोधन देते थे ! स्मरणीय है कि शिवपुरी में आज भी बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की भरमार है, जो फख्र से कहते हैं कि हमें कोई पार्टी से मतलब नहीं है, हम तो महल के हैं ! ऐसे लोग दोनों ही राजनैतिक दलों में बड़ी संख्या में हैं और उन्हें पर्याप्त महत्व भी मिलता रहा है ! ऐसे में राजपरिवार के पूर्ण समर्थन प्राप्त प्रत्यासी का सामना करना बैसी ही टेढ़ी खीर था, ऊपर से भाजपा का अंतर्घात भी बड़ी समस्या बन गया ! 

गोपाल जी के पिता श्री रामचरण लाल जी महज तृतीय श्रेणी कर्मचारी थे, अतः पूरा चुनाव व्यय मात्र चुनावी चंदे पर ही आश्रित था ! आर्थिक दशा का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव की काउंटिंग के समय मैं काउंटिंग में महज इसलिए नहीं गया, क्योंकि मुझे काउंटिंग में गए कार्यकर्ताओं की भोजन व्यवस्था करनी थी ! शिवपुरी महाविद्यालय में काउंटिंग चल रही थी और मैं बाहर भोजन व्यवस्था के लिए चंदा कर रहा था ! स्वाभाविक ही परिणाम निराशाजनक रहा ! इतनी विपरीत परिस्थितियों के बाद भी गोपाल जी महज 2400 वोटों से पराजित हुए ! 

भाजपा पार्षद दल 1983

इसके बाबजूद पार्टी पर गोपाल जी की पकड़ कम नहीं हुई ! 1982 में वे भाजपा के जिला महामंत्री बने और मैं नगर महामंत्री ! 1983 में शिवपुरी नगर पालिका चुनाव हुए ! भाजपा को यथेष्ट सफलता मिली ! नगर पालिका अध्यक्ष बने सोहन मल सांखला ! कोप्शन में गुलाब चन्द्र शर्मा और मुझे वरिष्ठ पार्षद चुना गया ! मुझे स्थाई समिति में भी रखा गया ! मेरे व्यवसाय में एक बार फिर परिवर्तन हुआ ! जनरल स्टोर “वातायन” तृप्ति जलपान गृह बन गया और उसकी व्यवस्था हम तीन मित्र संभालने लगे ! उस रेस्टोरेंट के तीन संचालकों में से एक अशोक पांडे आगे चलकर मध्यप्रदेश पीएससी के चेयरमेन बने और दूसरे गोकुल दुबे तृतीय श्रेणी कर्मचारी संघ के प्रांतीय महामंत्री !

एक विचित्र और यादगार प्रसंग हुआ ! अध्यक्ष अवश्य भाजपा के थे किन्तु पार्षदों में बहुमत नहीं था ! पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष गणेशी लाल जैन जी के सहयोग से सोहनमल सांखला अध्यक्ष बने थे ! उसी दौरान मैंने नगरपालिका में भ्रष्टाचार के कुछ मामलों की जानकारी प्रदेश भाजपा नेतृत्व को देते हुए आपत्ति जताई ! एक वरिष्ठ नेता भोपाल से शिवपुरी पधारे ! पार्षदों की मीटिंग हुई ! मैंने सविस्तार भ्रष्टाचारों की गाथा वर्णित की ! भोपाल से पधारे नेताजी ने नगरपालिका अध्यक्ष जी की तरफ देखा, सोहनमल जी मुस्कुराए और बोले – हरिहर जी ने जो कुछ कहा है, वो पूरी तरह सही है ! इतना ही नहीं, जितना इन्होने बताया है, उससे कहीं अधिक गड़बड़ियां हुई हैं ! नगरपालिका गणेशीलाल जी के समर्थन से चल रही है, और उनके आग्रह को मानना ही पड़ता है ! आप कहें तो मैं अभी त्यागपत्र दिए देता हूँ !

भोपाल से पधारे नेताजी मुझे अलग ले गए और समझाया, हरिहर जी राजनीति प्रताप बनने से नहीं चलती, शिवाजी की तरह कूटनीति से चलती है ! मौके पर पैर पीछे खींचने पड़ते हैं और कई गलत बातों को भी सहन करना पड़ता है ! शिवाजी की कुलदेवी का मंदिर ढहाया गया, पर वे तुरंत लड़ने नहीं पहुंचे मौके का इंतज़ार किया और फिर बदला लिया !

भोपाल की हरी झंडी मिलने के बाद तो नगरपालिका की दिनचर्या आराम से चलने लगा, मेरी बोलती बंद हो गई ! मुझे विरोधी मान लिया गया और ढाई साल बाद होने वाले अध्यक्ष चुनाव में कांग्रेस के लक्ष्मीनारायण शिवहरे निर्विरोध अध्यक्ष बन गए ! मुझे भाजपा पार्षद दल का नेता बना दिया गया ! लड़ने को मैं, सत्ता के कई दावेदार ! शायद मेरी यही नियति है ! 

इसी बीच 1985 में विधानसभा चुनाव हुए ! संगठन ने सुशील जी को टिकिट दिया ! उनके सामने कांग्रेस ने एक बार फिर गणेश गौतम को ही उतारा ! सुशील जी पराजित हुए ! विजय का सेहरा एक बार फिर गणेश के माथे पर ही सजा !

सरदार आंग्रे 

1989 का लोकसभा चुनाव मेरे जीवन का संक्रमण काल सिद्ध हुआ ! कांग्रेस की ओर से इस बार महेंद्र सिंह कालूखेडा चुनाव मैदान में थे ! माधवराव जी ग्वालियर पहुँच गए थे ! अधिकाँश स्थानीय भाजपा नेताओं को लगा कि यह अच्छा मौक़ा है, इस बार कांग्रेस को पटखनी दी जा सकती है ! शिवपुरी गुना के अनेक नामचीन नेता गुना में राजमाता सिंधिया के निजी सचिव सरदार आंग्रे साहब से मिले ! नामों का उल्लेख मैं जानबूझकर नहीं कर रहा हूँ ! सबने एक स्वर से कहा कि किसी भी स्थानीय नेता को टिकिट दे दिया जाए, हम सीट आराम से निकाल लेंगे ! आंग्रे साहब पहले से ही मानस बनाकर आये थे ! उन्होंने सबके सामने ही कुशाभाऊ ठाकरे जी को फोन लगाया और कहा – ठाकरे जी लिखिए, “इट इज यू डी एच ए व्ही ऊधव सिंह, इसे भाजपा प्रत्यासी घोषित कर दीजिये !” सब नेताओं के चहरे फक्क हो गए ! क्योंकि ये ऊधवसिंह रघुवंशी वकील साहब, कांग्रेस के दोयम दर्जे के सामान्य नेता के रूप में जाने जाते थे ! 

प्रत्यासी घोषित होते ही आम जनता को समझ में आ गया कि यह टोकन फाईट है ! लेकिन इसके बाद भी शिवपुरी के कार्यकर्ताओं ने चुनाव दमदारी से लड़ा ! झंडे बैनरों से शहर पाट दिया गया ! ऊधवसिंह जी तो आने ही नहीं थे ! उन्हें लेने राजेन्द्र निगम जी व अन्य कुछ भाजपा कार्यकर्ता अशोकनगर पहुंचे ! ये महाशय बगल में फाईलें दवाये हुए कोर्ट से पैदल पैदल घर की ओर जा रहे थे ! इन कार्यकर्ताओं को देखते ही उन्होंने इनकी तरफ पीठ फेरकर लघुशंका का नाटक किया ! ये सभी आहत तो हुए, किन्तु खून का घूँट पीकर उनसे मिलकर ही माने ! शिवपुरी आने का निमंत्रण दिया ! मजबूरी में ऊधवसिंह शिवपुरी आये ! आंग्रे साहब की उपस्थिति में कार्यकर्ताओं ने जोरदार नारेबाजी से उनका स्वागत किया ! एकबारगी तो वकील साहब को लगा कि – “अरे वाह, शिवपुरी में तो मैं बिना कुछ किये धरे जीत रहा हूँ !” लेकिन उसके बाद भी उनकी अंटी ढीली नहीं हुई ! आंग्रे साहब ने बुलाकर मुझे शाबासी दी और कहा – “यह अच्छा किया हरिहर, इसको इसी तरह चने के झाड पर चढ़ाए रखो, कहीं ऐसा न हो कि यह बैठ ही जाए !” 

कार्यकर्ताओं का जोश चरम पर था ! ऐसे में एक उत्साही कार्यकर्ता ने शहर के एक धनपति की दूकान पर पार्टी का झंडा लगा दिया ! वे सेठ जी शेजवलकर जी तथा आंग्रे साहब के अत्यंत नजदीक माने जाते थे ! लेकिन सेठ जी ने अपने नौकरों से वह झंडा उतरवा कर कांग्रेस का झंडा लगवा दिया ! जिन कार्यकर्ताओं ने वह झंडा लगाया था, वे बहुत मायूस हुए ! किन्तु जैसे तैसे उन्हें समझा लिया गया और बात आई गई हो गई ! 

चुनाव तो हारना ही था, हार भी गए ! लेकिन उसके तुरंत बाद आया विधानसभा चुनाव ! स्वाभाविक ही इस बार भी सुशील बहादुर अष्ठाना व गोपाल डंडौतिया में से किसी एक को टिकिट मिलने की संभावना मानी जा रही थी ! स्थानीय मध्यदेशीय अग्रवाल धर्मशाला की छत पर आंग्रे साहब एक बैठक ले रहे थे ! तभी उस बैठक में वे ही सेठ जी भी पधारे, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में पार्टी का झंडा अपनी दूकान से उतरवा दिया था ! बैठक स्थल के नीचे एक कार्यकर्ता के साथ सेठ जी के कर्मचारी की गर्मागर्म बहस होने लगी ! इसी समय आग में घी डालते हुए सुशील जी के समर्थक एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने सेठजी के कर्मचारी से बहस कर रहे कार्यकर्ता को ही डांटा और धमकाया ! मेरा दिमाग घूम गया और मैंने बैठक में खड़े होकर कह दिया – आंग्रे साहब बैठक में कांग्रेसियों को क्यों बुलाया गया है ! सन्नाटा छा गया ! कोई आंग्रे साहब के सामने इस तरह ऊंची आवाज में बात कर सकता है, कल्पना से भी परे था ! विधायक जगदीश वर्मा जी दौड़कर मेरे पास आये और पूछा – कौन कांग्रेसी आ गया ! मैंने सेठ जी की तरफ उंगली उठा दी ! सेठ जी का चेहरा काला पड़ गया और वे तुरंत ही सबको नमस्कार करते हुए वहां से वापस हो गए !

तब तक आंग्रे साहब और शेजवलकर जी दोनों ही का मैं स्नेहपात्र था, किन्तु इस घटना के बाद दोनों ही मुझसे बेहद नाराज हो गए ! अपने क्रोध पर अंकुश न रख पाने का खामियाजा मेरे साथ साथ गोपाल जी को भी उठाना पड़ा ! वरिष्ठ नेताओं ने यह माना कि मैंने जो कुछ किया है, वह गोपाल जी के कहने पर ही किया है ! मेरे साथ साथ उनका राजनैतिक कैरियर भी प्रभावित हुआ ! लेकिन कार्यकर्ताओं की भावना से भी नेतृत्व अनजान नहीं था ! अतः मध्यमार्ग अपनाते हुए प्रारंभिक रूप से यह तय किया गया कि टिकिट विनोद गर्ग उपाख्य "टोडू" को दिया जाए, जो उस समय भाजपा संगठन के नगर मंडल अध्यक्ष थे ! 

मजा यह हुआ कि उन्हें सिम्बल भी एलोट कर दिया गया ! किन्तु उसके बाद पार्टी ने निर्णय बदला और सुशील जी को अपना प्रत्यासी घोषित कर दिया ! स्थानीय भाजपा स्पष्टतः दो धडों में विभाजित हो गई थी ! विचित्र स्थिति थी पार्टी का कमल चुनाव चिन्ह विनोद गर्ग के पास था और सुशील जी तीर कमान चुनाव चिन्ह पर निर्दलीय रूप से पार्टी के घोषित प्रत्यासी थे ! अफवाहों का बाजार गर्म था ! कोई कहता कि राजमाता कमल चुनाव चिन्ह के खिलाफ प्रचार करने आने को तैयार नहीं हैं, तो कोई कहता कि वे सुशील जी के पक्ष में हैं !

इस असमंजस की स्थिति को स्पष्ट करने पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जी जोशी का दौरा तय हुआ ! कैलाश जी और मेरे आत्मीय संबंधों की जानकारी विनोद गर्ग को भी थी, उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं कैलाश जी को आग्रह करूं कि वे शिवपुरी में चुनाव प्रचार हेतु न आयें ! उस समय कैलाश जी करैरा सर्किट हाउस में ठहरे हुए थे ! मैं जाकर उनसे मिला तथा इस सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा की ! आपातकाल के दौरान की सुशील जी की भूमिका व गोपाल जी के चुनाव में भितरघात के आरोपों के कारण कार्यकर्ताओं के असंतोष से उनको अवगत कराया ! 

कैलाश जी ने अपने स्वभाव के अनुरूप बिना किसी लाग लपेट के मुझसे कहा – हरिहर मैं पैदल पैदल शिवपुरी के हर कार्यकर्ता के घर जाने को तैयार हूँ, मैं उनसे कहूंगा कि तुम सुशील को नहीं, मुझे अपना विधायक मानना, हर सुख दुःख में मैं तुम लोगों के साथ खड़ा रहूँगा, लेकिन पार्टी ने एक बार जो निर्णय कर लिया, उसे मानना हर कार्यकर्ता का फर्ज है ! निर्णय होने के पूर्व अपनी बात कहने को कार्यकर्ता स्वतंत्र है, किन्तु निर्णय के बाद पार्टी अनुशासन मुख्य है ! मैं तो यहाँ से ही सुशील के पक्ष में चुनाव प्रचार प्रारम्भ करूंगा और तुमसे भी आग्रह है कि तुम भी सुशील का ही साथ दो !

मैंने लौटकर विनोद गर्ग को पूरी चर्चा सुनाई तथा आग्रह किया कि अब वह भी चुनाव मैदान से हट जाए ! किन्तु विनोद ने कहा कि भाई साहब अब कोई साथ दे नादे, मैं तो चुनाव लडूंगा ! मैंने कहा कि अब ठीक है, तुमने यह कह दिया, अब हम भी स्वतंत्र हैं ! हम अपने हिसाब से निर्णय लेंगे ! किन्तु उसके बाद परिस्थितियाँ ऐसी बनीं, कि मुझे विनोद गर्ग का साथ देना पडा ! उन परिस्थितियों का विवरण न लिखना ही श्रेयस्कर है ! अस्तु हालत यह थी कि पार्टी व संघ के अधिकाँश कार्यकर्ता विनोद के साथ थे और सुशील जी के साथ प्रदेश पार्टी ! चुनाव संघ विरुद्ध भाजपा हो गया था ! उस चुनाव में पहली बार राजमाता सिंधिया जी की सबसे छोटी पुत्री यशोधरा राजे जी का शिवपुरी आगमन हुआ और उन्होंने पूरा समय देकर सुशील जी के पक्ष में प्रचार किया ! सुशील जी भारी बहुमत से विजई हुए ! प्रदेश में भी भाजपा सरकार बनी !

उस चुनाव में कई अप्रिय प्रसंग हुए ! विनोद गर्ग खेमे की ओर से गाँव गाँव प्रचारित किया जाने लगा कि यशोधरा जी वस्तुतः राजमाता साहब की पुत्री नहीं हैं, सुशील जी मुम्बई से न जाने किसे पकड़ लाये हैं ! उसी प्रकार सुशील जी की ओर से कहा गया कि पूर्व विधायक महावीर जैन पार्टी अध्यक्ष का हस्ताक्षरित चुनाव चिन्ह संबंधी आदेश पार्टी कार्यालय से चुरा लाये और उस पर विनोद का नाम लिखकर कलेक्टर को दे दिया ! स्वाभाविक ही यशोधरा जी और महावीर जी इन आरोपों से अत्यंत क्षुब्ध हुए ! महावीर जी दुखी होकर संगठन से स्पष्टीकरण की मांग करते हुए माधव चौक पर आमरण अनशन पर बैठ गए ! हालत यह थी कि चौराहे पर महावीर जी अनशन कर रहे थे, तो उनकी धर्मपत्नी घर पर भूखी बैठी थी ! भूख हड़ताल चार दिन चली ! अंततः स्वयं आंग्रे साहब व शेजवलकर जी ने आकर वह भूख हड़ताल तुड़वाई ! 

चुनाव उपरांत यशोधरा जी के निर्देश पर सुशील जी के विरुद्ध काम करने वालों की सूची बनाई जाने लगी, और उन्हें पार्टी से निष्कासित करने की चर्चा सरगर्म हुई ! यह सूची लगभग सौ सवा सौ नामों की बनी ! इसकी जानकारी लगने पर मैं नगर के तीन व्यापारी कार्यकर्ताओं के साथ बोम्बे कोठी छतरी पर जाकर आंग्रे साहब से मिला ! मैंने आंग्रे साहब से कहा कि आपने इतने लम्बे समय तक हमें पार्टी का चेहरा बनाकर रखा, उसके कारण आम कार्यकर्ता भी हमें अपना और पार्टी का नेता मानता रहा ! आम कार्यकर्ता ने जो कुछ भी किया, हमारे कहने पर किया, अतः दोषी हम हैं, हमें यथेष्ट दण्ड दीजिये ! हम लोग तो पार्टी में रहें अथवा निष्कासित कर दिए जाएँ, संगठन के ही रहेंगे, किन्तु आम कार्यकर्ता में संभवतः इतना धैर्य न हो ! वे स्थाई रूप से पार्टी से दूर जा सकते हैं ! अच्छा हो कि बड़ी संख्या में निष्कासन न किया जाकर केवल कुछ चुनिन्दा लोगों पर ही अनुशासन की कार्यवाही की जाए !

जिस समय हम लोग आंग्रे साहब से चर्चा कर रहे थे, उस समय यशोधरा जी भी हॉल के दूसरे किनारे पर कुछ लोगों के साथ बैठी थीं ! वे हमारी चर्चा तो नहीं सुन पा रही थीं, किन्तु गपशप लम्बी चलती देख वे आक्रोशित हो उठीं ! गुस्से से तिलमिलाकर उन्होंने हमारी तरफ उंगली उठाकर कहा - आंग्रे साहब, नोट टू बी इंटरटेन ! 

हम लोग उन दोनों को नमस्कार कर वापस आ गए ! आंग्रे साहब और संगठन ने हमारे आग्रह का मान रखा और हम चार लोग पार्टी से निलंबित कर दिए गए ! गोपाल कृष्ण डंडौतिया, महावीर प्रसाद जैन पूर्व विधायक, विनोद गर्ग और हरिहर शर्मा ! हम लोगों को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, जिसका कोई जबाब हम लोगों ने नहीं दिया ! इसके बाबजूद यह निलंबन महज दो माह में ही समाप्त कर दिया गया ! 

यह अलग बात है कि उसके बाद गोपाल जी अपनी जमी जमाई वकालत की प्रेक्टिस अपने छोटे भाई भुवन को सोंपकर ग्वालियर चले गए और वहां जाकर जीडीए में सात हजार रुपये मासिक की नौकरी करने लगे ! महावीर जी मुम्बई अपने बेटे के पास चले गए, जो वहां चार्टर्ड एकाउटेंट थे ! मैं भी स्वदेशी जागरण मंच का विभाग संयोजक तथा सरस्वती शिशु मंदिर व्यवस्था समिति का अध्यक्ष बनकर राजनीति से प्रथक हो गया ! केवल विनोद गर्ग उसके बाद भी राजनीति में सक्रिय रहे ! शायद उनका घोष वाक्य था – तमाशा घुसकर देखेंगे !

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