अविश्वसनीय मुस्लिम मतदाता - धर्मनिरपेक्ष दलों के सम्मुख विचारणीय मुद्दा !


पश्चिम बंगाल में चुनाव के पाँचों चरण पूर्ण हो चुके हैं ! लेकिन यह हैरत की बात है कि पूरे पांच वर्ष तक अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति पर चलने वाली ममता बेनर्जी को मुस्लिम वोट मिले हैं अथवा नहीं, इसको लेकर संदेह जताया जा रहा है ! यह स्थिति तो तब है, जब बड़ी संख्या में हिंदुत्व वादियों ने उन्हें ममता “दी” के स्थान पर ममता “बी” कहना शुरू कर दिया था ! यह भी प्रचारित हुआ था कि उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया है ! 

मुस्लिम मतों के तृणमूल से दूर जाने की मानसिकता का प्रमाण 10 मई को साल्ट लेक के नजदीक स्थित राजरहाट-गोपालपुर क्षेत्र में मिला, जहाँ दो व्यावसायिक प्रतिद्वंदी गुटों में झड़प हो गई ! एक गुट का नेतृत्व हैदर मोल्ला के हाथ में था, तो दूसरा गुट कृष्णपाददास उर्फ़ केस्टो का था ! जमीन के एक टुकडे पर स्वामित्व को लेकर शुरू हुआ यह विवाद, तब गंभीर हो गया जब दक्षिणदारी मस्जिद से माईक द्वारा सांप्रदायिक उन्माद भड़काया गया और देखते ही देखते तलवार, लोहे की छड़, ईंटों और बोतलों से आसपास के हिन्दू घरों पर आक्रमण शुरू हो गया ! बिजली की सप्लाई लाईन काट दी गई और अँधेरे में हिंसा का नग्न तांडव शुरू हो गया ! 

कई स्थानीय लोग और राहगीर इन झड़पों में घायल हो गए। भयभीत हिंदूओं ने स्थानीय लेक टाउन पुलिस थाने के एसओएस को स्थिति की सूचना दी । लेकिन जब पुलिस टीम वहां पहुंची तब सशस्त्र हैदर समूहों द्वारा उन पर भी हमला किया गया। पुलिस वाहन पर हमला कर उसमें आग लगा दी गई । सात पुलिस वालों सहित लेक टाउन के प्रभारी अधिकारी त्रिगुणा रॉय भी गंभीर रूप से घायल हो गये ।

यह सब तो सामान्य बात है, क्योंकि जहां भी मुस्लिम पर्याप्त संख्या में होते हैं, वहां यह सब चलेगा ही, यह सर्व स्वीकार्य तथ्य है ! लेकिन अब इस घटना की सबसे अहम बात ! वह यह कि घटना की सूचना मिलने पर स्थानीय टीएमसी विधायक सुजीत बसु शांति की अपील करने वहां जा पहुंचे ! लेकिन गुस्साए हुए गुंडों ने उन्हें भी नहीं बख्शा ! उन्हें भी सिर पर गंभीर सांघातिक चोट लगने के बाद गंभीर स्थिति में एक निजी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा । 

यह हांडी का एक चावल है जो मुसलमानों के मन में तृणमूल कांग्रेस के प्रति विरक्ति को दर्शाता है ! दक्षिणदारी के अलावा पश्चिम बंगाल के दमदम, राजरहाट आदि स्थानों की हवा में भी सांप्रदायिक इस्लामी आक्रामकता की बदबू आने लगी है ! सांप्रदायिक तत्वों के होंसले बुलंद होने की पीछे भले ही तृणमूल कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति रही हो, किन्तु अब वह उनपर ही भारी पड़ने लगी है ।

समय आ गया है कि अब अन्य राजनैतिक दलों के लोग भी आत्म चिंतन करें कि वे भले ही कुर्सी और वोट की खातिर कितना भी तुष्टीकरण कर लें, यह जमात अविश्वसनीय ही रहेगी ! वे कब किसका साथ देंगे, यह उनके निजी संबंधों के आधार पर तय नहीं होता, यह समूह में तय होता है, मुल्ला मौलवियों द्वारा तय किया जाता है ! वे कल तृणमूल के साथ थे, आज बामपंथियों के साथ है, कल किसके साथ होंगे यह अभी पता नहीं !

बंगलादेश में अल्पसंख्यकों पर लगातार आ रही हमलों की खबरों के बीच पश्चिम बंगाल में बढ़ रही यह हिंसक मानसिकता सतर्क रहने का सन्देश दे रही है !

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें