इमाम हुसैन की शहादत का बदला लेने के लिए अपने सात पुत्रों की कुर्बानी देने वाले अश्वत्थामा के वंशज

8 जनवरी 2013 का दिन कोई भी स्वाभिमानी भारतीय नहीं भूल सकता, क्योंकि उस दिन हमारे दो बहादुर सैनिकों की बर्बर हत्या कर पाकिस्तानी उनका सिर भी काटकर अपने साथ ले गए थे ! कारगिल युद्ध के दौरान भी कैप्टन सौरभ कालिया का शव पाकी पापियों ने क्षतविक्षत किया था ! एक तरफ स्वयं को मुसलमान कहने वाले ये नरपशु हैं तो दूसरी ओर भारतीय मूल के वे जांबाज जिन्होंने मोहम्मद साहब के छोटे नाती इमाम हुसैन के हत्यारों से बदला लेने के लिए अपने सात पुत्रों को बलिदान कर दिया था !

आईये इतिहास के उन भूले बिसरे पृष्ठों पर एक नजर डालें, जिनका सूत्रपात महाभारत काल में हुआ था -

हम सबने अश्वत्थामा का नाम अवश्य सुना होगा ! गुरू द्रोणाचार्य के एकमात्र पुत्र अश्वत्थामा महाभारत के युद्ध के बाद जीवित बचे 18 योद्धाओं में से एक थे ! अश्वत्थामा को सम्पूर्ण महाभारत युद्ध के दौरान कोई नहीं हरा पाया था! 

ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा महाभारत से बच निकल कर घायल अवस्था में इराक पहुँच कर, वहीं बस गया! अश्वत्थामा वंश के दत्त ब्राह्मणों ने इराक में अपनी बहादुरी का सिक्का जमाया! उन्होंने अरब, मध्य एशिया और इराक में अपना साम्राज्य स्थापित किया! अश्वत्थामा के ये वंशज आगे चलकर मोहियाल ब्राह्मण कहलाये और इन मोहियाल ब्राह्मणों नें एक मुस्लिम शासक के लिए अपनी संतानों की कुर्बानी तक दे दी! द्रोणाचार्य दत्त शाखा के मोहियाली ब्राहमण थे! ब्राहमण का यह ऐसा वर्ग है जो अपने को मोहियाल ब्राह्मण कहलाने में गर्व महसूस करता है! ब्राह्मण का यह वर्ग शिव भक्त कहलाते हैं और बहुत जबरदस्त लड़ाकू कहे जाते हैं! हिन्दू धर्म की रक्षा और सम्मान के लिए ये अपनी जान देते रहे हैं! इन्होंने इमाम हुसैन के लिए भी जानें दी हैं, इन्हें हुसैनी ब्राह्मण भी कहा जाता है! 

मोहम्मद साहब के काल में दत्त ब्राह्मण का राजा राहिब सिद्ध दत्त हुआ करता था! सिद्ध निःसन्तान था और मोहम्मद साहब से सन्तान का आशीर्वाद मांगने गया! लेकिन उसे पता चला कि उसके भाग्य में संतान नहीं है और वो मायूस हो कर लौटने लगा! तभी मोहम्मद साहब के छोटे नाती इमाम हुसैन ने सिद्ध दत्त को सात औलादों का आशीर्वाद दिया! हुसैन के आशीष स्वरुप सिद्ध दत्त को के यहाँ सात बेटों का जन्म हुआ और इस तरह वह मोहम्मद साहब के खानदान के संपर्क में आया! 

अपने पिता हजरत अली के लिए लड़ाई लड़ते हुए 10 अक्टूबर 680 में कर्बला की घटना में इमाम हुसैन की मौत हो गई और इसके बारे में जब सिद्ध दत्त को पता चला तो वो बदला लेने के लिए आतुर हो उठा! सिद्ध दत्त इमाम हुसैन के एहसान को नहीं भूला था! यजीदी फ़ौज इमाम का सर कलम कर उसे साथ ले जा रहे थे! तब उसने यजीदी फ़ौज का पीछा करते हुए हुसैन का सर छीना और दमिश्क की ओर बढ़ा। लेकिन रास्ते में एक जगह पड़ाव पर रात में, यजीदी सैनिकों ने उन्हें घेर लिया और हुसैन के सिर की मांग की। सिद्ध दत्त ने इमाम का सर नहीं सौंपा, मगर उसकी जगह एक एक कर अपने सातों बेटे का सर काट कर उन्हें दे दिए! लेकिन फिर भी सैनिकों ने उन्हें हुसैन का सिर मानने से इंकार कर दिया। दत्त ब्राह्मण के दिल में इमाम हुसैन के कत्ल का बदला लेने की आग भड़क रही थी। अपना बदला पूरा करने के लिए वे अमीर मुख्तार के साथ मिल गए। बहादुरी से लड़ते हुए चुन-चुन कर उन्होंने हुसैन के कातिलों से बदला लिया। हुसैन की मौत और अपने सात बेटों की कुर्बानी को याद रखने के लिए दत्त ब्राह्मण ने दर्जनों दोहे पढ़े, जो मोहर्रम में उनके घरों में पढ़े जाने लगे। यही से ही दत्त ब्राह्मण हुसैनी ब्राह्मण कहलाए।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि स्वयं को भाईचारे का पैरोकार बताने वाले कट्टर पंथी सुन्नी मुसलमान इमाम हुसैन पर आस्था रखने वाले शिया मुसलामनों को भी काफिर ही मानते हैं ! शियाओं से उनका बैर कितना है और बैर का कारण क्या है, इसे जानने के लिए पढ़िए –

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