दुनिया के नक्शे पर कैंसर की तरह है पाकिस्तान - मशाल खान टक्कर

विगत दिनों ग्रेट अफगानिस्तान मूमेंट के संस्थापक मशाल खान टक्कर ने न्यूज़ भारती को दिए साक्षात्कार में पख्तून और बलूच संघर्ष की दास्तां बयां की -

अपने दिल में जलते अंगारों को अभिव्यक्त करते हुए ग्रेट अफगानिस्तान आंदोलन के सबसे ताकतवर नेता मशाल खान टक्कर ने कहा कि पाकिस्तान के सफाए का समय आ गया है, क्योंकि यह एक अप्राकृतिक राज्य है, तथा दुनिया के नक्शे पर कैंसर की तरह है ।

न्यूज़ भारती को दिए अपने सबसे विस्फोटक साक्षात्कार में ग्रेट अफगानिस्तान मूवमेंट (GAM) के संस्थापक टक्कर ने कहा कि यह नकली राज्य पाकिस्तान घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का प्रमुख केंद्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए स्थायी सिरदर्द है। यह पारस्परिक हिंसा का एक थिएटर और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक चिरस्थायी समस्या है।
पाकिस्तान और चीन के अपवित्र गठजोड़ पर टिप्पणी करते हुए मशाल खान टक्कर ने कहा कि पाकिस्तान (पंजाबिस्तान) बलूचिस्तान की गैस और खनिज के अरबों डॉलर का भूखा है ।
अब अपनी आर्थिक और भू राजनीतिक रणनीति के तहत, पाकिस्तान और चीन ने CPEC पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे मुख्य रूप से पंजाब को ही लाभ होगा और खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान की अनदेखी होगी । नतीजतन, पख्तून और बलूच अब CPEC परियोजना को धमकी दे रहे हैं ।

मशाल खान टक्कर का साक्षात्कार -

प्रश्न: बलूचिस्तान मुद्दे पर आपकी क्या राय है?

उत्तर: मैं इतिहास में बहुत ज्यादा नहीं जाना चाहता, किन्तु मुझे 1947 से शुरू करना होगा ! उस समय जब यह निर्णय लिया गया कि ब्रिटिश भारत को दो उपनिवेश - भारत और पाकिस्तान में विभाजित किया जाएगा, तब कलात के खान, मीर अहमद यार खान ने वायसराय लार्ड माउंटबेटन से संपर्क किया और बताया कि ब्रिटिश भारत और बलूचिस्तान के बीच 1837 में हुए समझौते के अनुसार, बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश है ।

उसके बाद पांच लोगों की मीटिंग हुई, जिसमें एक और से मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली खान थे, तो दूसरी ओर से कलात के खान और उनके सलाहकार सुल्तान अहमद खान थे, और लार्ड माउंटबेटन मध्यस्थ थे ।

बैठक में केवल दो विकल्प का फैसला किया गया:

यदि बलूचिस्तान चाहे तो पाकिस्तान के साथ जुड़ सकता है।

लेकिन यदि नहीं तो बलूचिस्तान अफगानिस्तान के साथ अपना समझौता जारी रख सकता है।
लेकिन कलात के खान ने फैसला किया कि बलूचिस्तान एक स्वतंत्र राज्य होना चाहिए।

इसलिए 11 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश ने, बलूचिस्तान पर बलूचिस्तान के शासक कलात के खान का नियंत्रण स्वीकार कर लिया। खान ने तुरंत बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी, और मोहम्मद अली जिन्ना ने भी खान के नेतृत्व में बलूचिस्तान की संप्रभुता की घोषणा पर हस्ताक्षर किए।

12 अगस्त 1947 को न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट छापी कि "समझौते के तहत पाकिस्तान ने एक स्वतंत्र संप्रभु राज्य के रूप में बलूचिस्तान को मान्यता दी।

अगले दिन, न्यूयॉर्क टाइम्स ने विश्व मानचित्र पर बलूचिस्तान को एक पूरी तरह से स्वतंत्र देश के रूप में दिखाते हुए नक्शा भी प्रकाशित किया ।

1947 के भारत विभाजन की त्रासदी यह थी कि पाकिस्तान दूसरे देशों की जमीन पर बनाया गया - बंगाली, पख्तून, बलूच और सिंधी। उनका अपना देश पंजाब के वर्चस्व में बंधक के रूप में सौंप दिया गया।

पाकिस्तान की आजादी के बाद, मोहम्मद अली जिन्ना और उनकी कानूनी टीम को समझ में आया कि डूरंड रेखा समझौते को कानूनी मान्यता नहीं है और वह बाध्यकारी दस्तावेज नहीं है ।
डूरंड रेखा समझौते में त्रुटि यह थी कि उसमें तीन स्वतंत्र देशों, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और ब्रिटिश भारत की सीमायें तो चिन्हित थीं, किन्तु ब्रिटिश ने जानबूझकर बलूचिस्तान को इससे बाहर रखा ! जबकि सीमांकन के अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार, सीमाओं पर किसी भी समझौते के पूर्व सभी प्रभावित देशों को एक होना चाहिए था, लेकिन चूंकि बलूचिस्तान को बाहर रखा गया, अतः हस्ताक्षरित डूरंड रेखा समझौता निष्प्रभावी और शून्य था ।

अफगानिस्तान से संबंधित प्रदेशों पर अपने अवैध कब्जे को जारी रखने के लिए, पाकिस्तान ने समझौते की इस महत्वपूर्ण कमी को गुप्त रखा । लेकिन उसकी दुविधा यह थी कि बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश था और एक दिन इस समझौते के बारे में सच्चाई अफगानिस्तान के सामने उजागर हो सकती थी । इस सच्चाई के उजागर होते ही पाकिस्तान अपने पश्तून बहुल इलाकों से लेकर सिंधु नदी तक, अफगानिस्तान के हाथों खो सकता था ।

अतः अफगान प्रदेशों पर अपने अवैध कब्जे को जारी रखने के लिए पाकिस्तान को जरूरी था कि या तो बलूचिस्तान का उसके साथ विलय हो या फिर वह उस पर आक्रमण करे ।

जिन्ना ने कलात के खान को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए राजी करने का प्रयत्न किया, लेकिन खान ने और कलात विधानसभा के दोनों सदनों ने इससे इनकार कर दिया।

तब पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया, और मार्च 1948 में पाकिस्तानी सशस्त्र बलों ने बलूचिस्तान सरकार के खिलाफ अपना ऑपरेशन शुरू कर दिया।

उन्होंने अप्रैल 1948 में बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया और कलात विधानसभा के सभी सदस्यों को कैद कर बलूचिस्तान का पाकिस्तान के साथ विलय कर दिया। एक संप्रभु राष्ट्र के खिलाफ आक्रामकता के इस सरल अध्याय के बाद पाकिस्तान निश्चिन्त हुआ कि डूरंड रेखा समझौते का उनका रहस्य, गुप्त रहेगा।

इस प्रकार पाकिस्तान ने एक संप्रभु राज्य बलूचिस्तान पर कब्जा कर उसे रक्त के समुद्र में डुबा दिया। 

आपने पढी बलूचों की करुण कहानी, अगर पाकिस्तान में बसे पख्तूनों की दारुण व्यथा जानना चाहते हैं तो पढ़िए -

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