सेंट फ्रांसिस जेवियर: एक संत या समुद्री डाकू - सीता राम गोयल


सम्पादकीय –

आजकल भारत के छोटे छोटे कस्बों में भी “सेंट फ्रांसिस जेवियर” के नाम पर चलने वाले इंग्लिश मीडियम स्कूल दिख जाते है | जहाँ थोड़ी बहुत ईसाई आवादी है, वहां इन तथाकथित संत के नाम पर बने चर्च भी मिल जाते हैं | श्री सीताराम गोयल ने अपने इस आलेख के प्रारम्भ में जो प्राक्कथन लिखा, उसमें वर्णित किया कि अगर वह आज जीवित और सक्रिय होते तो मानवता के खिलाफ अपराध के लिए उन पर हेग के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय में मुकदमा चलता । कितने आश्चर्य की बात है कि एक स्पैनिश समुद्री डाकू को संत के रूप में स्थापित कर दिया गया । यही हकीकत हमें ईसाई धर्म के मूल्यों और विशेष रूप से भारतीय ईसाई धर्म के बारे में बहुत कुछ बताती है | विश्व में व्याप्त धार्मिक असहिष्णुता का मूल भी यही है । 

सर्वप्रथम तो वह पत्र जो इस सेंट फ्रांसिस जेवियर ने रोम के जेसुइट्स को लिखा: "इन भागों में संपन्न लोग ब्राह्मणों से प्रभावित हैं । वे विकृत और दुष्ट हैं जो कहीं भी पाये जा सकते है, और उन पर प्रार्थना का वह अंश लागू होता है - 'एक अपवित्र जाति के दुष्ट और चालाक मनुष्यों का उद्धार करो भगवान।' यदि यह ब्राह्मणों के लिए नहीं है तो किसके लिए है ? तो यह आवश्यक है कि हम सब आस्थावान अपने विश्वास पर दृढ रहें । "

"बपतिस्मा के बाद, नए बने ईसाई अपने घर वापस जाते हैं और फिर अपनी पत्नियों और परिवार के अन्य सदस्यों को भी बपतिस्मा के लिए तैयार करते हैं और इस प्रकार पूरा परिवार बपतिस्मा अपना लेता | मैं हर जगह आदेश देता हूँ कि झूठे देवताओं के मंदिरों को गिरा दिया जाए और मूर्तियों को तोड़ दिया जाए । मेरे पास अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं, जब मैं देखता हूँ कि कभी उन मूर्तियों की पूजा करने वाले लोग ही उन मूर्तियों को नीचे पटक कर नष्ट कर रहे हैं । "और आपको यह जानकर हैरत होगी कि यह सब जेवियर ने क्वियों के हिंदू राजा द्वारा चर्च निर्माण के नाम पर दिए गए अनुदान की राशि की मदद से किया !

फ्रांसिस जेवियर ने 16 मई 1545 को पुर्तगाल के किंग जॉन III को यह पत्र भेजा था: 

"योर मेजेस्टी ईसाइयों के लिए दूसरी आवश्यकता यह है कि पवित्र न्यायिक जांच की स्थापना की जाए, क्योंकि यहाँ बहुत से लोग ईश्वर के भय के बिना शर्मिंदगी पूर्ण यहूदी कानून के अनुसार रहते हैं । और ये लोग सब दूर फैले हुए हैं, अतः यहाँ बड़ी संख्या में पवित्र धर्म-गुरुओं और धर्म प्रचारकों की आवश्यकता है। अतः महामहिम को भारत में अपने वफादार और विश्वास की खातिर उक्त आवश्यकताओं की पूर्ति अविलम्ब करना चाहिए। "- यूसुफ विकी, डॉक्यूमेंटा इंडिका, वॉल्यूम IV, रोम, 1956

उक्त पवित्र न्यायिक जांच की स्थापना के बाद जो कुछ हुआ उसका वर्णन इतिहासकार पॉल रॉबर्ट्स ने इस प्रकार किया है –

न्यायिक जांच के लिए गोवा में सुल्तान के पुराने महल में अदालत बैठी | ईसा मसीह की एक विशाल मूर्ति उस न्याय की प्रत्यक्षदर्शी थी: " माता-पिता के सामने बच्चों के सिर काट दिये गए, वे इस दृश्य को पूरा देखें, आँख बंद न कर पायें, इसलिए उनकी पलकें पहले ही काट दी गई थीं । पुरुषों के जननांगों को काटकर उन्हें उनकी पत्नियों के सामने जिन्दा जला दिया गया | पुरुषों के सामने उनकी पत्नियों के स्तनों को तलवार से काट दिया गया और उनकी योनियां में भी तलवारें डाली गईं, पति को यह सब देखने के लिए मजबूर किया गया ...। और यह सब दो सौ साल तक चला । "- पॉल विलियम्स रॉबर्ट्स, द एम्पायर ऑफ़ द सोल: सम जर्नीज़ इन इंडिया, न्यूयॉर्क, 1997।

भेजो भेजो जरूर भेजो अपने बच्चों को मिशनरी संतों के नाम पर बने स्कूलों में | आखिर अपने पूर्वजों से हमें लेना देना ही क्या है ?

लेख बड़ा है, इसे पूरा अनुवाद करूं या न करूं पाठकगण कृपया निर्देशित करें |

साभार आधार - https://bharatabharati.wordpress.com/2012/12/04/st-francis-xavier-a-pirate-in-priests-clothing-sita-ram-goel/

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