जम्मू कश्मीर मानवाधिकार आयोग अर्थात जिहादी प्रोत्साहन आयोग - उपेंद्र भारती


जब 'बिलाल नाजकी' जैसे लोग प्रशासन, पुलिस, न्यायपालिका, रक्षा या किसी भी आयोग के शीर्ष पद पर विराजमान हैं, तब तक भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता पर हमले होते ही रहेंगे !!!
अतः समय की मांग है कि सेना द्वारा 'मानव ढाल' बनाए गए पत्थरबाज को 10 लाख रुपये देने का निर्देश जिस कूढ़मगज व्यक्ति ने दिया है, उसे तत्काल जम्मू-कश्मीर मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से निकाल बाहर किया जाए | बिलाल नाजकी ने अपनी सीमा का गंभीर अतिक्रमण किया है | ऐसा प्रतीत होता है कि जम्मू कश्मीर मानवाधिकार आयोग का रूपांतरण जिहाद अधिकार आयोग के रूप में हो गया है ।
एक ओर तो जिहादी तत्वों द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा में लगे भारतीय सुरक्षा बलों पर लगातार हमले किये जा रहे हैं. और दूसरी ओर इन हमलों से बचने का अगर कोई असरकारक तरीका ढूँढा जाए तो उसका विरोध शासन द्वारा गठित आयोग ही करने पर उतारूं हैं | सेना ने जिहादी उन्मादी भीड़ को पत्थर फेंकने से रोकने के लिए उनमें से ही एक पत्थरबाज को पकड़कर मानव ढाल के रूप में कथित तौर पर इस्तेमाल किया | किन्तु हैरत की बात है कि जम्मू एवं कश्मीर राज्य मानवाधिकार आयोग (एसएचआरसी) ने विगत सोमवार को उस व्यक्ति को दसलाख रुपये का "मुआवजा" देने के निर्देश दिए । क्या यह इस बात का सबूत नहीं कि जम्मू-कश्मीर में राज्य मानवाधिकार आयोग अब शांतिप्रिय नागरिकों और क़ानून के रक्षक सेनानियों का संरक्षक नहीं, बल्कि जिहादियों का संरक्षण कर रहा है ।
जस्टिस बिलाल नाजकी फरमाते हैं कि "चूंकि फारूक अहमद दार के जीवन और गरिमा को खतरे में डाला गया, अतः मैंने राज्य सरकार को क्षतिपूर्ति करने को कहा है।"
गनीमत यह है कि मानवाधिकार आयोग ने सेना को कोई निर्देश देने की हिमाकत नहीं की और बुझे मन से स्वीकार किया कि यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं है। गोया होता तो शायद वे सैन्य अधिकारियों का कोर्ट मार्शल ही कर देते |
स्मरणीय है कि विगत 9 अप्रैल को जब सेना के अधिकारियों ने दार को कथित तौर पर सेना की एक जीप के बोनट से बाँधा, उसके बाद पथराव बिलकुल रुक गया । स्पष्ट ही पत्थरबाज अपने ही साथी इस दार को अपना सहयोगी और साथी मान रहे थे, और उसे किसी प्रकार का नुक्सान नहीं पहुँचाना चाहते थे | पत्थरबाजों के उस सहयोगी पत्थरबाज को दस लाख का मुआवजा देना आखिर किसकी होंसलाअफजाई करेगा ? यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह घटना श्रीनगर संसदीय सीट के उप-चुनावों के दौरान हुई, जब यह शख्स फारूक अहमद डार पत्थरबाजों के एक बड़े समूह के 'रिंग लीडर' के रूप में सुरक्षा बलों पर हमला कर रहा था।
परिस्थितियों को देखते हुए, मेजर लिपुल गोगोई ने फारूक अहमद दार को पकड़कर सेना की जीप के आगे 'मानव ढाल' के रूप में बांधने का निर्णय लिया ताकि पाकिस्तानी समर्थक जिहादी तत्वों से बचते हुए समस्या प्रभावित क्षेत्र में सेना की तैनाती की जा सके। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो सकें इस दृष्टि से सुरक्षाबालों की तैनाती की गई थी ।
इस तरह से मेजर गोगोई ने अनेक जान बचाई और बाद में सेना के अधिकारियों द्वारा उन्हें 'वीरता का पुरस्कार'भी दिया गया |
लेकिन, अब जम्मू कश्मीर मानवाधिकार आयोग उर्फ़ जिहादी अधिकार आयोग ने जिस प्रकार एक पत्थरबाज 'पीड़ित' मानत हुए 10 लाख रुपये (15,500 यूएस डॉलर) का मुआवजा देने का कार्य किया है, उससे पाकिस्तान परस्त हुर्रियत के नेताओं की बांछें खिलना स्वाभाविक है | यकीनन इससे पत्थरबाजी को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा और भारतीय सुरक्षा बलों को मनोबल कमजोर होगा |
हिन्दू अस्तित्व के संपादक और राष्ट्रीय मामलों के प्रसिद्ध वार्ताकार, उपानंद ब्रह्मचारी के अनुसार "जम्मू कश्मीर मानवाधिकार आयोग कार्रवाई घोर निंदनीय है। संकटपूर्ण परिस्थिति में उस व्यक्ति को मानव ढाल बनाने का निर्णय सुरक्षा बलों द्वारा लिया गया था, राज्य सरकार द्वारा नहीं। तो फिर राज्य सरकार को क्षतिपूर्ति के आदेश देने का औचित्य क्या ? इसके यह भी स्पष्ट होता है कि जब तक प्रशासन, पुलिस, न्यायपालिका, रक्षा या किसी भी आयोग में शीर्ष पद पर 'बिलाल नाजकी' जैसे अधिकारी रहेंगे, तब तक हमेशा देश की सुरक्षा और अखंडता पर हमले का खतरा बरक़रार रहेगा । न्यायपालिका के क्षेत्र में किसी भी जिहादी प्रेरणा को रोकने के लिए केंद्र सरकार को इस मामले को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए !!! "
बिलाल नाजकी को हटाने के लिए श्री ब्रह्मचारी ने प्रधान मंत्री कार्यालय सहित भारत के राष्ट्रपति, केंद्रीय गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के कार्यालयों को भी पत्र भेजा है।
चूंकि पाकिस्तानी और हिजबुल मुजाहेदिन के लोगों द्वारा पत्थरबाजों के सहयोग से ही बड़ी संख्या में नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों की हत्या की गई है | अतः होना तो यह चाहिए कि पत्थरबाजों को भी आतंकी मानकर व्यवहार किया जाए, किन्तु उसके स्थान पर उन्हें प्रोत्साहन देने वाले एक कट्टरपंथी व्यक्ति की तत्काल प्रभाव से जम्मूकश्मीर मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाया जाना चाहिए ।

साभार आधार: http://wp.me/pCXJT-8ck

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें