चीन का नया ब्रह्मास्त्र - जल युद्ध - श्री ब्रह्मा चेलानी के वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित लेख का अनुवाद


अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान दक्षिण चीन सागर में चीन की विवादित जल नीति पर ही केन्द्रित है, जबकि चीन तेजी से बांध निर्माण द्वारा विश्व के सम्मुख एक बड़े संकट के जाल बुन रहा है, जिससे न केवल तिब्बत जैसे चीन-नियंत्रित क्षेत्र, बल्कि अन्य समीपवर्ती देश भी प्रभावित होंगे । इतिहास में किसी भी देश ने चीन से अधिक बांध नहीं बनाए हैं। आज दुनिया के बाकी देशों से कहीं अधिक बांध चीन में हैं ।

अपनी सीमा रणनीति में चीन का नया जुनून मीठा पानी है| व्यक्ति के जीवन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राण तत्व जल है | सोचिये कि एशिया में अगर इसकी कमी हो जाए तो क्या होगा ? बाँध चीन की इसी रणनीति का एक अंग हैं, जिनके माध्यम से वह प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों पर कब्ज़ा कर पडौसी देशों पर कहर बरपा सकता है।

आज चीन में कुल 86,000 बाँध हैं, जिसका मतलब है कि 1949 के बाद से उसने औसतन कम से कम एक बांध प्रति दिन निर्माण किया है। इनमें से लगभग एक तिहाई बड़े बांध हैं, जिनकी जल भंडारण क्षमता 3 मिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक है | संयुक्त राज्य अमेरिका, दुनिया का दूसरा सबसे अधिक बाँध वाला देश है, जिसके बांधों की संख्या लगभग 5,500 है | जहाँ तक बड़े बांधों का प्रश्न है, चीन ने उसे बहुत पीछे छोड़ दिया है।

संसाधनों के मामले में चीन, दुनिया का सबसे अधिक भूखा देश है, चीन ने प्राकृतिक संसाधनों के शोषण की इन्तहा कर दी है ।इसी क्रम में वह सबसे जरूरी संसाधन मीठे पानी पर, बांधों और अन्य संरचनाओं के माध्यम से नियंत्रण करने का प्रयत्न कर रहा है। चीन ने केवल अपने देश की आंतरिक नदियों पर बाँध बनाए हैं, बल्कि बांधों द्वारा उन नदियों का प्रवाह भी अवरुद्ध किया है, जो अन्य पडौसी देशों में भी प्रवाहित होती हैं, जैसे मेकॉन्ग, साल्विन, ब्रह्मपुत्र, इरतिश, इली और अमूर जैसी नदियाँ ।

जैसे कि फारस की खाड़ी के देशों में तेल और गैस के विशाल भंडार हैं, उसी प्रकार चीन विशाल अंतरराष्ट्रीय जल संसाधनों को नियंत्रित करता है | 1951 में उसने एशिया का "पानी का टॉवर" कहे जाने वाले, तिब्बती पठार पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया, और उसके साथ ही एशिया की प्रमुख नदी प्रणालियों पर उसका दबदबा हो गया।

हाल के वर्षों में चीन के क्रियाकलापों से उसके डाउनस्ट्रीम पड़ोसी एक प्रकार से उस पर आश्रित हो गए हैं । उदाहरण के लिए, चीन ने दक्षिण पूर्वी एशिया में प्रवाहित होने वाली मेकांग नदी पर आठ विशालकाय बांध खड़े किए हैं, और 20 नए बाँध बनाने की उसकी योजना है । नए बांधों के इस शस्त्र के माध्यम से वह कभी भी सरकारों का तख्तापलट कर सकता है | बीजिंग ने बेशर्मी पूर्वक उस संधि को त्याग दिया है, जिसके चलते मेकांग नदी आयोग का गठन किया गया था, और उसने इसके बदले अपनी मनमर्जी से लंकांग-मेकाँग सहयोग पहल शुरू की है, जिसमें कमजोर डाउनस्ट्रीम राष्ट्रों के हित में बाध्यकारी नियमों का पूरी तरह अभाव है।

चीन द्वारा इसी प्रकार की एकपक्षीय कार्यवाही भारत के साथ भी की है, जिसके कारण पानी संबंधी तनाव बढ़ने की पूरी संभावना है, क्योंकि भारत में बहाने वाली कई महत्वपूर्ण नदियों का उद्गम तिब्बत में हैं।

2017 में चीन ने उन दो कानूनी रूप से बाध्यकारी द्विपक्षीय समझौते को मानने से इनकार कर दिया, जिसके तहत उसे भारत के साथ जल डाटा साझा करना था | इससे चीन की बदनीयती पूरी तरह स्पष्ट हो गई है | पानी के प्रवाह संबंधी डाटा देने से इनकार का अर्थ है कि चीन भारत को "बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव" शिखर सम्मेलन का बहिष्कार करने और डोक्लाम विवाद के लिए सबक सिखाना चाहता है ।

पिछले साल मानसून सीजन में ब्रह्मपुत्र नदी में आई भीषण बाढ़ ने, पिछले अनेक वर्षों का रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिया था, जिसके कारण असम में बड़े पैमाने पर जन हानि हुई, विनाश का तांडव हुआ । अगर चीन ने समय पर भारत को उक्त संधि के परिपालन में बाढ़ की चेतावनी दी होती, तो यह जन हानि कम हो सकती थी ।

बीजिंग ने इस वर्ष भी अभी तक यह संकेत नहीं दिया है कि वह इस डेटा को साझा करना शुरू करेगा अथवा नहीं | इसके कारण भारत और चीन के द्विपक्षीय संबंधों में एक बड़ा नया मुद्दा उभरा है - ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से भारत में प्रवेश करती तथा इसकी मुख्य जल आपूर्तिकर्ता सियांग नदी का पानी गंदा और भूरा हो गया है, जिसके कारण भारत और निचले प्रवाह के अन्य देशों में चिंता बढ़ गई है | जिस तरह से चीन ने अपनी घरेलू नदियों को प्रदूषित कर दिया है,उसी प्रकार वह अपनी अपस्ट्रीम गतिविधियों से सीमा पार की नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को भी खतरे में डाल सकता है | स्मरणीय है कि उसकी घरेलू नदियों के प्रदूषण के कारण ही चीनी पीढी वंशानुगत कारणों से पीली हुई है ।

कई हफ्तों तक सियांग के प्रदूषण पर चुप रहने के बाद, बीजिंग ने 27 दिसंबर को दावा किया कि मध्य नवंबर में दक्षिण पूर्वी तिब्बत में आए भूकंप के कारण नदी का पानी गन्दा हुआ, किन्तु सचाई यह है कि दुनिया की सबसे प्राचीन नदियों में से एक, सियांग का प्रवाह भूकंप से पहले ही भूरा और गन्दला हो गया था ।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि चीन दक्षिण पूर्वी तिब्बत में बड़े पैमाने पर खनन और बांध-निर्माण गतिविधियों चला रहा है । बैसे भी तिब्बती पठार पानी और खनिज दोनों से समृद्ध है |

चूंकि चीन चुपचाप तिब्बत में पनबिजली परियोजनाओं की एक श्रृंखला पर काम कर रहा है, जिसके कारण दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में डाउनस्ट्रीम प्रवाह की गुणवत्ता और मात्रा को प्रभावित हो सकती है | हो सकता है कि ब्रह्मपुत्र नदी का प्रवाह परिवर्तित करने की कोई चीनी योजना हो । 2005 में प्रकाशित एक आधिकारिक तौर पर प्रकाशित एक पुस्तक में यह रहस्योद्घाटन किया गया था कि ब्रह्मपुत्र का प्रवाह “हन” (चीनी प्रांत) के मध्य में ले जाया जाए । हाल ही में एक हांगकांग के एक अख़बार ने भी कुछ ऐसा ही समाचार प्रकाशित किया है, जिसके अनुसार चीन अब झिंजियांग में ब्रह्मपुत्र जल पहुँचाने के लिए, दुनिया की सबसे लंबी सुरंग बनाने की योजना बना रहा है।

हालांकि बीजिंग ने इस तरह की किसी योजना से इनकार किया है | लेकिन चीन का क्या भरोसा ? 2015 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस बात से भी इनकार किया था कि चीन की दक्षिण चीन सागर में सात मानव निर्मित द्वीपों को सैन्य ठिकानों में बदलने की कोई योजना है, किन्तु बाद में उसने वही किया ।

चीन की यह निराशाजनक एकपक्षीयता है कि उसने अपनी एक प्रमुख बांध परियोजना को पूरा करने के लिए, 2016 में ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी, झियाबुक के प्रवाह को कम किया और वर्तमान में एक अन्य उपनदी, ल्हासा नदी को कृत्रिम झीलों की एक श्रृंखला में बांट रहा है।

कोई गलती न करें: 

चीन का एक प्राचीन सैन्य रणनीतिकार हुआ है - सन त्जू | उसका कहना था - "सभी युद्ध धोखे पर आधारित हैं।" 

जलविद्युत संरचनाओं के माध्यम से सीमा पार के जल संसाधनों पर नियंत्रण बढ़ाने के द्वारा, पानी से संबंधित मुद्दों पर भू-राजनैतिक शक्ति से लैस चीन कभी भी चुपके से जल युद्धों को छेड़ सकता है, क्योंकि उसकी आदर्श रणनीति केवल धोखेबाजी ही है |

अतः पडौसी देशों के पर्यावरण और अधिकारों का सम्मान करने के लिए बीजिंग पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाकर ही उसके बांध उन्माद पर लगाम लगाई जा सकती है।

• ब्रह्मा चेलानी एक भूरणनीतिकार और "जल:एशिया का नया युद्ध क्षेत्र" “Water: Asia’s New Battleground” (Georgetown University Press, 2013) के लेखक है |

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