खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी

'खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी' वाकई सुभद्रा कुमारी चौहान की इन पंक्तियों को कंगना रनौत ने फिल्मी पर्दे पर ही नहीं बल्कि असल जिंदगी में भी सार्थक किया। अनगिनत विवादों के बावजूद कंगना ने फिल्म को पूरा करने के जुनून को वैसे ही निभाया, जैसे 'मणिकर्णिका' से झांसी की रानी बनने के बाद लक्ष्मीबाई ने आजादी पाने के जुनून को मंजिल तक पहुंचाया। कंगना राणावत की फ़िल्म "मणिकर्णिका" हर भारतीय को देखना चाहिए जिससे हम अपने इतिहास से परिचित हो सकें | मणिकर्णिका देखकर मन में यह टीस उभरती है कि काश ग्वालियर,दतिया,ओरछा के तत्कालीन छत्रपों ने लक्ष्मीबाई का साथ दिया होता तो हम 1857 की कुछ और कहानी पढ़ रहे होते..सोचीये कि क्योँ आज ग्वालियर के किले में शान है और झांसी का किला वीरान है ? क्योँ अंग्रेज़ों का साथ देने वाले राजा रजवाड़ों के वंशज आज भी मज़े से देश की राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा हैं वहीँ दूसरी ओर लक्ष्मीबाई के खानदान का नामोनिशान तक हम जानते नहीं | कम शब्दों में यदि इस फिल्म के बारे में कहा जाए तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि वे लोग धन्यवाद के पात्र है जिन्होंने इस फिल्म को बनाने का साहस किया है और 'महारानी झाँसी' जैसे चरित्र को परदे पर उतारने का कठिन कार्य किया है | 

क्योँ देखें मणिकर्णिका 

पर्दे पर कंगना की फायर ब्रैंड परफॉर्मेंस को देखकर लगता है कि मणिकर्णिका ,झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का रोल उन्हीं के लिए बना था। उनके निर्देशन और अभिनय को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे, मगर अपने अभूतपूर्व अंदाज से उन्होंने जता दिया कि उस रोल के लिए वे हर तरह से उपयुक्त हैं। इसे अगर उनके करियर की उत्कृष्ट परफॉर्मेंस कहा जाए, तो गलत नहीं होगा। शंकर-अहसान-लॉय के संगीत में प्रसून जोशी के लिखे 'बोलो कब प्रतिकार करोगे', 'विजयी भव', 'डंकीला', 'भारत' जैसे गाने फिल्म के विषय के अनुरूप बन पड़े हैं। अब तक ऐतिहासिक फिल्मों को हमने भंसाली और आशुतोष गोवारिकर के नजरिए से देखा है, मगर कंगना के नजरिए में खूबसूरती और बहादुरी दोनों झलकती है। कई दृश्य और संवाद ताली पीटने पर मजबूर कर देते हैं। मातृभूमि के लिए मर-मिटनेवाले प्रसून जोशी के संवाद जोश भर देते हैं। क्लाइमेक्स में अंग्रेज सर ह्यूरोज की सेना के साथ लक्ष्मीबाई का युद्ध और वीरतापूर्ण ढंग से प्राणों की आहुति देनेवाला अंदाज रोंगटे खड़े कर देता है। कंगना ने किरदार के बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी और ऐक्शन दृश्यों पर कड़ी मेहनत की है। इस गणतंत्र दिवस पर देशभक्ति का तोहफा समझकर इस फिल्म को देखने जरूर जाएं।

मणिकर्णिका देखने के आवश्यक कारण

मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप जान सकें कि भारत की पवित्र भूमि ने कैसी-कैसी बेटियों को जन्म दिया है।

मणिकर्णिका देखिये, ताकि भविष्य में जब कोई मूर्ख माँ दुर्गा के अस्तित्व पर प्रश्न उठाये तो आप उसके मुंह पर थूक कर कहें कि "देख! ऐसी थीं माँ दुर्गा..."

मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप जान सकें कि नारीवाद के झूठे दलालों का पितामह जब जर्मनी में जन्मा भी नहीं था, तभी भारत में हमारी बेटियां कैसे सत्ता सम्भालती थीं, कैसे इतिहास रचती थीं, और किस धूम के साथ देश के लिए अपने प्राणों की भेंट चढाती थीं।

मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप अपने बेटों को बता सकें कि हमारे लिए बेटियां क्यों पूज्य होती हैं।

मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप अपनी बेटियों से कह सकें कि तुम बेटों से किसी भी मामले में कम नहीं हो।

मणिकर्णिका देखिये,ता कि आप अपनी बेटियों को बता सकें कि "नारी उत्थान" की सच्ची परिभाषा वह नहीं जो स्वरा भास्कर या अरुंधति राय जैसी औरतें बताती हैं, स्त्री मर्यादा वह है जो हमें हमारी मनु बता कर गयी है।

मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप शिवाजी महाराज के रामराज्य के स्वप्न को समझ सकें।

मणिकर्णिका देखिये, ताकि परदे पर ही सही,भगवा ध्वज तले निकली शौर्य की उस अप्रतिम शोभायात्रा को देख कर आपकी आँखे पवित्र हो सकें।

मणिकर्णिका देखिये, ताकि आप समझ सकें कि स्वतन्त्रता की खुली हवा में लिया गया एक-एक सांस हमारे ऊपर ऋण है उन असंख्य झलकारियों का, जिन्होंने हमारे लिए स्वयं की बलि चढ़ाई थी। यह फ़िल्म तमाचा है उन गद्दारों के गाल पर, जो सरकार से प्रतिवर्ष लाखों की छात्रवृति ले कर भी "हमें चाहिए आजादी" का अवैध नारा लगाते हैं। असंख्य लक्ष्मीबाईयों के वलिदान के फलस्वरूप मिले इस 'देश' के टुकड़े करने के स्वप्न देखने वाली निर्लज्ज मानसिकता को फिल्मोद्योग की ओर से अनायास ही दिया गया एक उत्तर है यह फ़िल्म। मणिकर्णिका मात्र किसी महारानी का नाम नहीं, आजादी का मूल्य बताने वाली पुस्तक का नाम है।

मणिकर्णिका देखिये, ताकि देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देती मणिकर्णिका को देख कर आपकी आँखों से निकली अश्रु की बूंदे चिल्ला कर कह सकें, "तेरा बैभव अमर रहे माँ हम दिन चार रहें न रहें..."

फ़िल्म के एक दृश्य में जहाँ महारानी जनरल ह्यूरोज को घोड़े में बांध कर घसीटती हैं, मेरा दावा है उसे देख कर कह उठेंगे आप, "ईश्वर, बेटियाँ देना तो मनु जैसी "

झाँसी की सम्पति पर से ईस्ट इंडिया कम्पनी के हर अधिकार को नकारती हुई लक्ष्मीबाई का गरजता स्वरूप देखिये, मैं पूरे विश्वास से कहता हूँ कि आपका माथा उस वीरांगना के समक्ष अनायास ही झुक जाएगा। एक विधवा महारानी का यह संवाद, "हम लड़ेंगे, ताकि आने वाली पीढियां अपनी आजादी का उत्सव मना सकें" अकेला ही सक्षम है युगों को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाने में। 

मणिकर्णिका फ़िल्म के संवाद कैसे हैं, संगीत कैसा है, सिनेमेटोग्राफी कैसी है, कलाकारों का अभिनय कैसा है, निर्देशन कैसा है, दृश्यों की भव्यता किस लायक है, मेरे लिए इन प्रश्नों का कोई मोल नहीं। मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि फ़िल्म में मणिकर्णिका वैसी ही दिखी है, जैसी बचपन में सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी' पढ़ कर लगीं थी। उस कविता को पढ़ कर भी रोंगटे खड़े होते थे, फ़िल्म देख कर भी रोंगटे खड़े हो रहे हैं।

फिल्मोद्योग की अपनी कुछ व्यवसायिक सीमाएँ हैं जिनसे बंधी यह फ़िल्म कहीं-कहीं आपको तथ्यहीन लगेगी, पर फ़िल्म महारानी लक्ष्मीबाई के महान शौर्य को दिखाने में पूर्णतः सफल रही है इसमें तनिक भी सन्देह नहीं। यह फिल्म आप केवल अकेले ही नहीं बल्कि अपने बच्चों को भी दिखाइए, ताकि भारत के भविष्य को उसका इतिहास ज्ञात रहे। किताबों से दूर होती नई पीढ़ी परदे की भाषा ही अधिक समझ रही है, तो क्यों न उसे उसी भाषा में ही उसके पुस्तैनी शौर्य का स्मरण कराया जाय... मनु जैसी वीरांगनायें हर युग के लिए मार्गदर्शक बनी रहेंगी।

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