वैलेंटाइन के बलिदान का अपमान है "वैलेंटाइन डे" का वर्तमान अश्लील स्वरुप !

हमारे देश में ऋतुओं के अनुसार पर्व तथा उत्सव मनाने की अद्वितीय परम्परा है । वसन्त पंचमी, मकर संक्रान्ति, माघ पूर्णिमा, श्रावणी उपक्रम, होलिकोत्सव, दीपोत्सव आदि अनेक पर्व इस देश में एक नवीन ऊर्जा का संचार करते है। किन्तु दुर्भाग्य है इस भारतवर्ष की युवा पीढ़ी का, जिसने अपने ऊर्जावान् पर्वों को भुला दिया और पाश्चात्य पर्वों को मनाने की प्रथा शुरू कर दी। पाश्चात्य देशों में उन पर्वों को मनाने के पीछे कोई न कोई कारण जरुर रहा होगा, जिसकी वहां आवश्यकता होगी। किन्तु बिना किसी कारण को जाने हमारे भारतवासी भाई लोग इन पर्वों को अपनी मन-मर्जी से मनाते हैं। मनाने के साथ-साथ कभी यह भी विचार नहीं करते कि हम जो पर्व मना रहे है, इसका उद्देश्य क्या है? इस पर्व को मनाने से क्या लाभ होगें? 

हमारे देश की अधिकांश युवा पीढ़ी (अब तो युवाओं के अतिरिक्त अन्य लोग भी) वैलेंटाइन डे, फ्रैंडशिप डे आदि अनेक पाश्चात्य पर्वों को मनाने के लिए सदैव उद्यत रहती हैं | इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि हमें अपने पर्वों को मनाने के लिए जनजागरण करना पड़ता है, शोभायात्राएं निकालनी पड़ती हैं, लोगों को भारतीय पर्वों की ओर आकृष्ट करने के लिए प्रलोभन देना पड़ता हैं। फिर भी भारतीय पर्वों के प्रति निराशा भरा वातावरण चहु ओर दृष्टिगोचर होता है। अभी कुछ ही दिनों में युवाओं को अपनी ओर सर्वाधिक आकृष्ट करने वाला पाश्चात्य सभ्यता का पर्व वैलेंटाइन डे आ रहा है। जिस पर्व के सत्यार्थ को न समझ लोग मौज-मस्ती में निमग्न हो सब कुछ गलत कर बैठते है। बिना शादीशुदा हुए ही भोग-विलासता की सभी हदें पार कर देते हैं। आखिर क्या कारण है, जो इस पर्व को मनाया जाता है ? इसके पीछे क्या रहस्य छिपा हुआ है ? क्योंकि पर्व मनाने के पीछे कोई न कोई उद्देश्य एवं रहस्य अवश्य छिपा होता है। आइये जानते है वैलेंटाइन डे की कहानी | 

वेलेंटाइन डे की कहानी 

आज से कई वर्षों पूर्व यूरोप की दशा वर्तमान यूरोप से बहुत निम्नस्तर की थी। यूरोप में पहले शादियां नहीं होती थी। लोग रखैलों में विश्वास रखते थे। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां माना जाता था कि विवाह करने से पुरुषों की शक्ति और बुद्धि कम होती है। यूरोप के बड़े-बडे़ लेखक, विचारक तथा दार्शनिक भी इन्हीं परम्पराओं में संलिप्त थे। वे भी ऐसे ही मौज-मस्ती भरे जीवन को जीना पसन्द करते थे। प्लूटो जैसा दार्शनिक भी महज एक स्त्री से नहीं, अपितु अनेक स्त्रीयों से सम्बन्ध रखता था। प्लूटो खुद इस बात को इस प्रकार लिखता है कि ‘ मेरा 20-22 स्त्रीयों से सम्बन्ध रहा है।’ अरस्तु, रुसो आदि पाश्चात्य विचारक इसी प्रकार के थे। कई दार्शनिकों ने हैवानियत की सभी हदें पार करते हुए मातृतुल्य पूजनीय स्त्रीयों के सन्दर्भ में एकमत होकर कहते हैं कि- ‘ स्त्री में तो आत्मा होती ही नहीं है। स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान है, जब पुरानी से मन भर जाये तो नयी का प्रयोग करो’। ऐसी घृणित मान्यता को देख कई बार लोगों का पत्थर दिल भी पिघल कर विद्रोह की भावना को जन्म देता है।

ऐसे अनेक यूरोपियन हुए जिन्होंने बीच-बीच में इस प्रचलन का विरोध किया। ऐसे ही विरोधियों में एक वैलेंटाइन नामक व्यक्ति भी था। जिसने इस कुप्रथा के प्रति आवाज उठायी। उसका कहना था कि हम लोग जो शारीरिक सम्बन्ध रखते हैं, वह जानवरों की तरह का है, इस तरह का व्यवहार उचित नहीं है। इससे शारीरिक रोग होते हैं। इसका सुधार करो, एक पति एक पत्नी के साथ विवाह करके ही रहे, विवाह के बाद ही शारीरिक सम्बन्धों को स्थापित करें। ऐसी बातों को वैलेंटाइन ने घूम-घूम कर लोगों को बताया और लोग भी जागृत हुए।संयोगवश वह एक चर्च के पादरी बन गये। चर्च में आने वाले प्रत्येक नागरिक को ऐसी ही सलाह देने लगे |  लोग प्रायः उनसे पूछ लेते कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो? अपनी परम्पराओं को क्यों तोड़ना चाहते हो? आप ये सब क्यों कर रहे हो? इसके उत्तर में वह कहते कि आज-कल मैं भारतीय सभ्यता और दर्शन का अध्ययन कर रहा हूं और मुझे लगता है कि भारतीय सभ्यता तथा भारतीय जीवन श्रेष्ठ हैं और इसे स्वीकार करने में कोई हनि भी नहीं है। इसीलिए आप लोग मेरी बात को स्वीकार करो, कुछ लोग उनकी उस बात को स्वीकार करते और कुछ लोग अस्वीकार कर देते। 

धीरे-धीरे चर्च में ही शादीयां कराने लगे। सैकड़ों की संख्या में शादी होने लग गई तथा अनेक लोग इस घृणित कार्य से रुक गये। वैलेंटाइन के इस कार्य की सूचना पूरे रोम में जगह-जगह होने लगी। धीरे-धीरे ये बात रोम के राजा क्लौड़ीयस तक भी पहुंच गयी। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने तुरन्त वैलेंटाइन को बुलाकर कहा कि – तुम ये क्या गलत काम कर रहे हो? तुम अधर्म क्यों फैला रहे हो? अपसंस्कृति को अपना रहे हो? हम बिना शादी के रहने वाले लोग हैं, मौज-मस्ती में डूबे रहने वाले लोगों को तुम बन्धन में बांधना चाहते हो, ये सब गलत है। वैलेंटाइन ने कहा – महाराज! मुझे लगता है कि ये ठीक नहीं है। राजा ने उनकी एक न सुनी और तुरन्त ही उसे फांसी की सजा सुना दी। क्लौड़ीयस ने उन सभी को बुलाया जिनकी वैलेंटाइन ने शादी करायी थी और 14 फरवरी 498 ई.वी को खुले मैदान में, सार्वजनिक रूप से वैलेंटाइन को सजा दे दी गई। जिन लोगों की वैलेंटाइन ने शादी करायी थी, वो लोग बहुत दुःखी हुए, इसी दुःख की याद में वैलेंटाइन डे मनाना शुरु हुआ। 

आज भारत में भी वैलेंटाइन डे मनाया जाता है पर ये बिल्कुल विपरीत है। जिस भारतवर्ष को वैलेंटाइन ने एक आदर्शवादी देश के रूप में स्वीकार कर अपने देश को भी उसी प्रकार बनाने का विचार किया था। जिस देश में शादी होना एक मान्य बात है, आज वहीं बिना शादी के घूमना तो एक सामान्य बात है। कहां हम किसी के आदर्शवादी थे और आज हम अपने देश को उसी गर्त में ले जाना चाह रहे हैं, जिस गर्त से वैलेंटाइन अपने देश को बचाना चाहता है। भारतीय लोग पाश्चात्य सभ्यता का अनुकरण मात्र ही नहीं कर रहे अपितु उसका अन्धानुकरण कर रहे हैं। वैलेंटाइन डे का यह दिवस बड़ा विचित्र है। जो दिवस उस पाश्चात्य महापुरुष के दुःख के रूप में स्वकीर किया जाता है। आज वही दिवस उसके सिद्धान्तों से सर्वथा विपरीति होता जा रहा है। भारतवर्ष में शादी के पवित्र बन्ध को तोड़ने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है। अब ये वैलेंटाइन हमारे स्कूलों, काॅलेजों व विश्वविद्यालयों में आ गया है, बड़ी धूम-धाम के साथ इसे मनाया जा रहा है। लड़के-लड़कियां बिना कुछ सोचे-विचारे एक दूसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं। और जो कार्ड होता है उसमें लिखा होता है कि- “Would You Be My Valentine” । इसका मतलब किसी को मालूम नहीं होता है और अन्धी दौड़ में बस भागते ही रहते हैं। वो समझते हैं कि हम जिस किसी से प्यार करते हैं उसको ये कार्ड दिया जाता है, इसलिए इस कार्ड को वो सभी को दे देते हैं। ये कार्ड एक या दो लोगों को नहीं देते अपितु दस-बीस लोगों को दे देते हैं। 

कोई उनको इस कार्ड में लिखे वाक्य का तात्पर्य भी नहीं समझाता। इस कार्य को बढ़ावा देने के लिए टेलीविजन चैनल इसका बहुत प्रचार तथा प्रसार करते हैं। बड़ी-बड़ी कम्पनियां अपने काम-धंधे को विस्तृत करने के लिए कार्ड, गिफ्ट, चाॅकलेट आदि को दुगुनी अथवा तीगुनी रकम में बेचते हैं। यदि किसी लड़की को गुलाब दिया जाये और वह लड़की उस गुलाब को स्वीकार कर ले तो वैलेंटाइन और न स्वीकार करे तो उसी क्षण उसके चहरे पर तेजाब डाल दिया जाता है। ये कैसी परम्परा है? जिस कन्या को देवी के तुल्य समझा जाता है, उसी देवी के साथ खिलवाड़ हो रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि नारी ने बहुत तरक्की की है, लेकिन यह भी सच है कि हमारे पुरुष प्रधान देश में आज भी नारी को दबाया जाता है। समय आ गया है कि हम नारी का सम्मान करें। क्योंकि कहा भी गया है- ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्त रमन्ते तत्र देवता’। 

वेलेंटाइन डे की आड़ में लव जिहाद 

आज जो वेलेंटाइन डे हमारे देश में मनाया जा रहा है उसकी आड़ में लव जिहाद का घिनौना खेल भी खेला जा रहा है | लव जिहाद को ज्यादा समझने के लिए थोडा अतीत ने जाना होगा 26 जून 2006 केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमान चांडी द्वारा केरल विधानसभा में दिए एक लिखित जवाब से केरल का हिन्दू समाज स्तब्ध रह गया था जब एक सवाल के जवाब में, चांडी ने बताया था कि 2006 से 2012 तक, राज्य में 7713 लोग इस्लाम में मतांतरित किए गए हैं. इनमें कुल मतांतरित 2688 महिलाओं में से 2196 हिन्दू थीं और 492 ईसाई लेकिन इस रपट के तुरंत बाद मुस्लिम गुटों के दबाव पर राज्य सरकार ने अदालत में प्रतिवेदन दर्ज करके उसका ठीक उलट कहा कि “लव जिहाद” जैसी कोई चीज नहीं है.

जबकि उसी दौरान केरल से प्रकाशित एक पत्रिका में साफ-साफ छपा था कि “लव जिहाद” केरल के संभ्रांत हिन्दू परिवारों और रईस ईसाई परिवारों को भी बेखटके निशाना बना रहा है. इसके लिए व्यावसायिक कालेजों और तकनीकी शिक्षण संस्थानों पर नजर रखी जाती है. मुस्लिम गुट मुस्लिम लड़कों को तमाम तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम करने और उनमें गैर मुस्लिम लड़कियों को इनाम देने को उकसाते हैं ताकि उन्हें फांसा जा सके. जो लड़कियां उनकी तरफ आकर्षित होती हैं उन्हें मुस्लिम लड़कियों के साथ घुलने-मिलने का भरपूर मौका दिया जाता है. इन शुरुआती तैयारियों के बाद, “लव जिहाद” के खाके को क्रियान्वित किया जाता है. जैसे ही प्रतियां छपकर आईं, पूरे केरल में बड़ी संख्या में मुस्लिम कट्टरवादियों ने इन्हें खरीदा और फाड़ कर जला डाला. अगले दिन दुकानों में गिनती की प्रतियां ही रह गईं थी.

राजनैतिक स्तर पर चांडी के बयान की आलोचना के बाद सेकुलर मीडिया ने वहां के मुख्यमंत्री की इस स्पष्ट स्वीकारोक्ति को पूरी तरह अनदेखा कर दिया था. दक्षिण भारत के इस मामले को उत्तर भारत में बड़े स्तर पर हवा तो मिली लेकिन इस लव जिहाद को राजनीतिक एजेंडा बताकर लोग कन्नी काटते नजर आये. लेकिन केरल में इस गुप्त एजेंडे के तहत प्रेम जाल में फांसकर हिन्दू युवतियों से निकाह करके उन्हें धर्मान्तरित करने और गरीबों को लालच देकर मतांतरित करने का षड्यंत्र जारी रहा 2012 में छपी साप्ताहिक पत्रिका के आंकड़े बताते हैं कि केरल में हर महीने 100 से 180 युवतियां धर्मान्तरित की जा रही हैं.

उसी दौरान भारत की एक बड़ी पत्रिका के अनुसार मालाबार की एक इस्लामी काउंसिल के 2012 तक के धर्मांतरण के आंकड़े बताते हैं कि 2007 में 627 लोग मुस्लिम बने, जिसमें से 441 हिन्दू थे और 186 ईसाई. 2008 में 885 में से 727 हिन्दू थे, 158 ईसाई. 2009 में 674 में से 566 हिन्दू थे, 108 ईसाई. 2010 में 664 में से 566 हिन्दू थे, 98 ईसाई. 2011 में 393 में से 305 हिन्दू थे, 88 ईसाई. एक बात यहाँ स्पष्ट कर दूँ धर्मान्तरित होने वालों में बड़ी संख्या युवतियों की रही है.

इन सब आंकड़ों के बीच अजीब बात है कि गैर मुस्लिमों को फुसलाने के साथ ही, अलगाववादी गुट मुस्लिम युवतियों को किसी गैर मुस्लिम लड़के से बात तक नहीं करने देते. ये कट्टरवादी तत्व मुस्लिम महिलाओं को हिन्दुओं के घरों में काम करने से रोकते हैं. साप्ताहिक की रिपोर्ट एक दिलचस्प आंकड़ा देती है कि 2008 से 2012 तक, महज 8 मुस्लिम महिलाओं ने ही गैर मुस्लिम पुरुषों से प्रेम विवाह किया है. मतलब साफ है कि केरल के सभी 14 जिलों में व जिहाद जोरों पर है.

मामला सिर्फ केरल ही नहीं अब उत्तर भारत में भी अपने पैर पसार चूका है जिसका सबसे बड़ा खुलासा वर्ष 2014 में नेशनल शूटर तारा शाहदेव के मामले में देखा गया था. लेकिन उस समय भी सेकुलरवादी नेताओं और मीडिया ने इसे झूठा बताने का कार्य किया था जो अब सीबीआई जाँच में सच पाया गया है. असल में यह एक सोचा समझा धार्मिक षड्यंत्र है इसे केरल की हदिया वाले मामले में आसानी से समझा जा सकता है कि आरोपी युवक शफीन क्या इतना धन या राजनैतिक हैसियत रखता है कि वो कांग्रेस के बड़े नेता और महंगे वकील कपिल को अपनी पेरवी के लिए खड़ा कर सकता है? इससे भी साफ समझ जा सकता है शफीन के पीछे किन बड़ी राजनैतिक और धार्मिक संस्थाओं का हाथ है?

वेलेंटाइन डे की आड़ में चल रहे इन षड्यंत्रों के विरुद्ध हमारा मीडिया कुछ भी कहने से बचता है परन्तु जब इन षड्यंत्रों के विरुद्ध बजरंग दल एवं विश्व हिन्दू परिषद् जैसे राष्ट्रवादी संगठन के कार्यकर्ता वेलेंटाइन डे के दौरान अश्लीलता परोसते हुए प्रेमी युगलों को रंगे हाथों पकड़ते है तो यही मीडिया इन कार्यकर्ताओं को गुंडा साबित करने पर आमादा हो जाता है | प्रचारित किया जाता है कि हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्त्ता विलेन की तरह कपल्स और इनके प्यार के बीच पहरेदार बनकर आ रहे है जबकि इन संगठनों के द्वारा स्पष्ट किया जाता रहा है कि वे प्यार के विरुद्ध नहीं है बल्कि वैलेंटाइन डे के मौके पर इसकी आड़ में प्यार के नाम पर किए जाने वाले अश्लील प्रदर्शन के खिलाफ हैं।

  
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें