मुरैना संसदीय क्षेत्र जहाँ से महल के पुतैया भी जीत गए चुनाव - इतिहास के झरोखे से भविष्य का कयास !


मुरैना कभी पेंच नाम से जाना जाता था | यह नाम इसे यहाँ लगी सरसों की मिल के कारण मिला | मुरैना बाजरा व सरसों के लिए पूरे देश में जाना जाता | मुरैना के लिए कहा जाता है कि यहां कोई भी चुनावी लहर काम नहीं करती है | यहाँ चुनाव जातिगत आधार पर होता है | ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य व अनुसूचित जाती बाहुल्य वाले इस क्षेत्र में मतदाता प्रत्याशी के समाज के आधार पर वोट देते है न कि पार्टी के आधार पर |

मुरैना का लोकसभा चुनाव इतिहास

विगत ६ चुनावों से यहाँ भाजपा जीतती आ रही है | 1991 में कोंग्रस आखिरी बार जीती थी | 1967 में यह सीट अस्तित्व में आयी | 1967 में यहाँ निर्दलीय आत्मादास जीते | अगले चुनाव में जनसंघ के हुकुमचंद जीते | 1980 में बाबूलाल सोलंकी ने कांग्रेस का खाता खोला | अगले चुनाव में पुनः कांग्रेस जीती | 1989 में छविराम ने पहली बार भाजपा को जीत दिलाई | 1991 में कांग्रेस के बारेलाल ने छविराम को हराया | वारेलाल के विषय में कहा जाता है कि उन्होंने सिंधिया परिवार के महल जयविलास पैलेस की पुताई बहुत अच्छी तरह से की थी, इससे प्रसन्न होकर कांग्रेस के तत्कालीन क्षत्रप स्व. माधव राव जी सिंधिया ने उन्हें कांग्रेस का टिकिट थमा दिया था | जनता के बीच इसीलिए सांसद वारेलाल को वारेलाल पुतैया के नाम से ही जाना जाता था |

1996 में भाजपा के अशोक अर्गल ने कांग्रेस के डॉ. प्रीतम प्रसाद चौधरी को हराया | 1996 से भाजपा का लगातार इस सीट पर कब्ज़ा है | 1967 से 2004 तक अजा के लिए यह सीट आरक्षित थी | 2009 से यह सीट सामान्य हुई | 7 बार यहाँ भाजपा व 3 बार कांग्रेस जीती है | वर्तमान 8 विधानसभा क्षेत्रों में से 7 पर कांग्रेस व 1 पर भाजपा काबिज है |

वर्ष 2014 में अनूप मिश्रा ने बसपा के वृन्दावन सिंह सिकरवार को 132981 मतों से हराया | इस चुनाव में मिश्रा को 375567 मत (४३.९६ %), सिकरवार को 242586 (२८.४%) वोट मिले | वृन्दावन ने इस चुनाव में कांग्रेस को छोड़ बसपा से चुनाव लड़ा | इस चुनाव में कांग्रेस के गोविन्द सिंह तीसरे स्थान पर रहे, उन्हें 184253 मत (२१.५७%) मिले | इससे पूर्व 2009 में भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस के रामनिवास रावत को 100997 मतों से हराया था | इस चुनाव में तोमर को ४२.३% के साथ 300647 मत एवं रावत को २८.०९% के साथ 199650 मत प्राप्त हुए | इस चुनाव में बसपा के बलवीर को १९.९९% मत प्राप्त हुए |

यहाँ रोचक तथ्य यह है कि 2013 के विधान सभा चुनाव में भाजपा 8 में से 5 सीटों पर विजई हुई थी तथा कांग्रेस को महज 1 सीट प्राप्त हुई थी, जबकि बसपा ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी | ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भाजपा ने विधानसभा चुनावों में जो कुल बढ़त हासिल की थी, वह 2014 के लोकसभा चुनाव में बढकर लगभग दूनी हो गई थी |

इस बार स्थिति भिन्न है | 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस 8 में से 7 सीटों पर विजय पताका फहरा चुकी है, जबकि भाजपा को केवल एक सीट से संतोष करना पड़ा है | कांग्रेस को 122966 वोटों की बढ़त मिली है | किन्तु जैसा कि विगत चुनावों में देखने में आया था कि दोनों प्रमुख दलों को लोकसभा और विधानसभा में मिलने वाले वोटों की संख्या में ख़ासा अंतर रहा था, अतः विधान सभा चुनाव परिणामों के आधार पर लोकसभा चुनाव का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगा |

लोकसभा चुनाव 2019 के लिए मुरैना में शुरू हुआ दीवार लेखन व पोस्टर युद्ध

मुरैना लोकसभा चुनाव के लिए व कांग्रेस का दीवार लेखन व पोस्टर युद्ध प्रारम्भ हो गया है | टिकट की चाह रखने वाले नेताओं ने मुरैना-श्योपुर संसदीय क्षेत्र के मुरैना जिले के बुधारा से लेकर श्योपुर के करहाल तक पोस्टर व दीवार लेखन से पाट दिया गया है | भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस में यह युद्ध अधिक है | कारण है 15 वर्ष के लम्बे अंतराल के बाद मप्र में कांग्रेस का सत्ता में आना | भाजपा की और से अम्बाह निवासी मनीष शर्मा ही दीवार लेखन व पोस्टर युद्ध में अव्वल है वहीँ कांग्रेस की ओर से कैलाश मित्तल, डॉ. राकेश माहेश्वरी, प्रदेश कांग्रेस महामंत्री रविंद्र तोमर, के एस आयल मिल के चेयरमेन रमेश गर्ग प्रमुख है |

राजनैतिक गलियारों की गपशप के मुताबिक़ तो मुरैना से प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री और विजयपुर से पराजित हुए श्री रामनिवास रावत का टिकिट कांग्रेस की और से तथा केन्द्रीय मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर का भाजपा की और से चुनाव लड़ना संभावित माना जा रहा है |

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