ये कहाँ आ गए हम ?



यह दो भाईयों की सच्ची कहानी है | बिहार में धनवाद के पास एक छोटा सा स्थान भूली | वहां के अस्पताल परिसर में दोनों भाई साथ साथ रहते – साथ साथ भीख माँगते और साथ साथ दारू पीते | एक नाम था धर्मराज तो दूसरे का ओमप्रकाश पांडे | 

ओमप्रकाश का लीवर खराब हो गया और यमराज के यहाँ से बुलावा आ गया | और अंततः 60 वर्ष की जिल्लत भरी जिन्दगी से उसे छुटकारा मिल गया | 

उसके बाद जो हुआ, वह ठीक बैसे ही दिल दहलाने वाला है, जैसे मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी “कफ़न” में हुआ था | कफ़न की कहानी दो पिता-पुत्र, घीसू और माधो की थी | उसमें बेटे माधो की पत्नी के मरने के बाद दोनों बाप बेटों ने उसके अंतिम संस्कार के नाम पर चंदा इकठ्ठा किया और बहू की तारीफों के पुल बांधते हुए दारू के नशे में डूब गए | लाश पडी रही | 

लगभग बैसा ही इस प्रकरण में भी हुआ | ओमप्रकाश पांडे के अंतिम संस्कार के लिए जनता मजदूर संघ के लोगों ने तीन हजार रुपये इकठ्ठा कर उसके भाई धर्मराज को दिए | धर्मराज लाश को ठेले में लादकर चला और रेलवे लाईन के पास झाड़ियों में फेंककर कलारी जा पहुंचा और छककर शराब पी | 

सुबह नशा उतरा तो पुलिस स्टेशन लाश चोरी की रिपोर्ट लिखाने जा पहुंचा | लाश तो मिलनी ही थी, मिल गई और पुलिस द्वारा जमींदोज भी कर दी गई | लेकिन मानवीय संबंधों और संवेदनाओं की लाश तो सडांध देती ही रहेगी | 

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