केवल 70 वर्षों में इतना राष्ट्रद्रोह - संजय तिवारी



राष्ट्रद्रोह का ऐसा खुला खेल। केवल 70 वर्षों में। अब देश के विश्वविद्यालयों से भारत विरोध का ऐसा स्वर? आखिर भारत की यह कौन सी यात्रा है? कैसी पीढ़ी पैदा हो रही है और कौन इनको पैदा कर रहा है? ये बहके हुए नासमझ लोग तो नही हैं भाई? बहुत पढ़े लिखे हैं। डिग्रियां हैं इनके पास। तर्क हैं जिनके पास। मीडिया पर कब्जा करने की जुगत है इनके पास। दिल्ली है इनके पास। यदि ऐसा नही होता तो कुछ सैकड़ा की संख्या वाली यह जमात आखिर 130 करोड़ जनता के मनोभावों पर भारी कैसे पड़ती? पिछले लगभग महीने भर से जैसे देश दुनिया मे कोई और काम ही नही हो रहा। भारत का राष्ट्रीय मीडिया इन राष्ट्रीय लोगो से इतना प्रभावित है कि उसके पास लिखने और दिखाने को कुछ और बचा ही नही है। यह राष्ट्रीय कहा जाने वाला मीडिया कितना बेबस, कमजोर, मरियल, लाचार, गुलाम जैसा है कि जिस आर्टिकिल 14 की आड़ में हंगामा करने वाले समूचे राष्ट्र को कलंकित कर रहे हैं, इस मीडिया का कोई अलंबरदार यह सवाल उनसे नही कर रहा कि यदि आर्टिकिल 14 की इतनी ही चिंता है तो आओ पहले उस कोढ़ को खत्म करते हैं जिसके कारण मेधा की असमानता बढ़ रही है और बिना मेधा वालो की अधिकता के चलते देश की व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। जिसे ये विश्वविद्यालय कह रहे है , यदि वे वास्तव में विद्याकेन्द्र हैं और प्रदर्शन करने वाले वास्तव में छात्र हैं तो बात तो मेधा के आरक्षण पर होनी चाहिए। जिस मुद्दे को लेकर यह हंगामा हो रहा है उसमें मुद्दे जैसा क्या है यह कोई न तो उनसे पूछ रहा है और न कोई बता रहा है।

गजब का हाल हो गया है। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर सभी जिम्मेदार लोग गला फाड़ फाड़ कर भरोसा दिला रहे हैं कि भारत मे रह रहे किसी व्यक्ति का इस नए कानून से कोई लेना देना नही। फिर भी हंगामा? आखिर कौन लोग हैं इसके पीछे और क्यों कर रहे हैं ऐसा?

सबसे अधिक चिंता इस बात की है कि देश मे सत्ता के लिए राजनीति करने वाली गैर भाजपा पार्टियां बिना किसी सोच के इन उपद्रवी तत्वों के साथ खड़ी हो गयी हैं जिनके राष्ट्र द्रोह के संबंध बहुत ठीक से उजागर हो चुके हैं। देश के हालात सच मे चिंताजनक हैं। अब यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत को समय समय पर पराधीन बनाने वाली शक्तियां कोई बाहरी नही बल्कि भीतर से ही जन्म लेती रही हैं। यकीनन यहां कुछ ऐसे ही मानसिक स्थिति वाले लोगो का बल रहा होगा जब बाहरी ताकतों को भारत को पराधीन कर शासन करने का अवसर मिला । यह शर्म की बात है कि आधुनिक विश्व मे जब हम आत्मनिर्भर हो रहे हैं और विश्व हमारी सनातन शक्ति को स्वीकार कर रहा है , ऐसे समय मे देश मे राजनीति करने वाले कुछ लोग बिल्कुल अभारतीय सोच के साथ खड़े हो चुके हैं। आखिर स्वाधीनता आंदोलन की सबसे बड़ी अलंबरदार रही कांग्रेस समेत भारत के ऐसे गैर भाजपा राजनीतिक दलों को यह अभारतीय विकल्प इतना क्यो भा रहा है? इसमें निश्चय ही कोई ऐसा स्वार्थ शामिल है जिसके सामने इनको राष्ट्र की अस्मिता का कोई ख्याल नही राह गया है। जो सोनिया गांधी कल नागरिकता कानून को लेकर भड़काऊ वक्तव्य दे रही थीं वह भूल गईं कि इस कानून का मसौदा उनकी सरकार ने ही बनाया था जिसमे सर्वाधिक सदस्य उन्ही की पार्टी के थे? बावजूद इसके देश को गुमराह करने से ये बाज नही आ रहीं और उल्टे देशद्रोहियों के साथ खड़े होकर ये लोग तमाशा कर रहे है?

सनातन भारत के विरुद्ध वैश्विक षड्यंत्र में ये कहीं न कही शामिल दिखते है और बाहर से प्रभावित भी। यह अभारतीयता बहुत घातक है। सेकुलर और सर्वधर्मसमभाव की झूठी बुनियाद के सहारे छात्र आंदोलन के कथित बहाने के साथ राष्ट्र के साथ यह घात किया जा रहा है जिसको समझना जरूरी है। आखिर दिल्ली के दो विश्वविद्यालयों को केंद्र बना कर देश मे ऐसे जहरीले माहौल के पीछे कौन है?

इस प्रश्न का बहुत सीधा उत्तर है । हमारे ही इतिहास में है। दिक्कत यह है कि भारत के वास्तविक इतिहास से यह जमात और यह पीढ़ी पूरी तरह अनभिज्ञ है। आइये , आपको रूबरू कराते हैं भारत के इतिहास के एक अध्याय से। कहानी नही है। हकीकत है। इसे पढ़िए और विस्बहलेशन कीजिये। जब उत्तर भारत ख़िलजी, तुग़लक़, ग़ोरी, सैयद, बहमनी और लोदी वंश के विदेशी मुसलमानों के हाथों रौंदा जा रहा था तब भी दक्षिण भारत के "विजयनगर साम्राज्य" (1336-1665) ने 300 से अधिक वर्षों तक दक्षिण मे हिन्दू अधिपत्य कायम रखा ! इसी विजयनगर साम्राज्य के महाप्रतापी राजा थे "कृष्णदेव राय" ।

बाबरनामा, तुज़के बाबरी सहित फ़रिश्ता, फ़ारस के यात्री अब्दुर्रज्जाक ने "विजयनगर साम्राज्य" को भारत का सबसे वैभवशाली, शक्तिशाली और संपन्न राज्य बताया है, जहां हिन्दू-बौद्ध-जैन धर्मामलंबी बर्बर मुस्लिम आक्रान्ताओं से खुद को सुरक्षित पाते थे । जिनके दरबार के 'अष्ट दिग्गज' में से एक थे महाकवि "तेनालीराम", जिनकी तेलगू भाषा की कहानियों को हिन्दी-उर्दू मे रूपांतरित कर "अकबर-बीरबल" की झूठी कहानी बनाई गयी ।

इसी शक्तिशाली साम्राज्य मे एक "सेक्युलर राजा रामराय" का उदय हुआ, जिस "शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य" पर 300 साल तक विदेशी आक्रांता गिद्ध आंख उठा कर देखने की हिम्मत नही कर सके थे, उसे एक सेक्युलर सोच ने पल भर मे खंडहर मे तब्दील कर दिया । राजा कृष्णदेव राय की 1529 मे मृत्यु के 12 साल बाद "राम राय" विजयनगर" के राजा बने ।

रामराय पडले दर्जे के सेक्युलरवादी थे, सर्वधर्मसमभाव और हिन्दू-मुस्लिम एकता मे विश्वास रखने वाले रामराय ने दो गरीब अनाथ बेसहारा मुस्लिम भाइयों को गोद लिया(दोनो गिलानी भाई)। इन दोनो मुस्लिम भाइयों को न सिर्फ अपने बेटे का दर्जा दिया बल्कि उनके लिये महल प्रांगण मे ही मस्जिद बनबा कर दिया ।

ऐसे राजा रामराय के शासनकाल मे "विजयनगर साम्राज्य" की सैन्य शक्ति मे कोई कमी नही आई थी, कहा जाता है उनकी सेना मे 2 लाख सिपाही थे । अकेले विजयनगर से जीत पाने मे असमर्थ मुस्लिम आक्रान्ताओं ने 1567 में "जिहाद" का नारा देकर एक साथ आक्रमण किया । जिहाद के नारे के साथ 4 मुसलिम राज्यों ( अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा और बीदर ) ने एक साथ विजयनगर पर हमला किया, इस युद्ध को राक्षस-टंग़ड़ी' या "तालीकोटा का युद्ध" कहा जाता है । 4 मुस्लिम राज्यों के सम्मिलित आक्रमण के बावजूद विजयनगर युद्ध जीत चुका था पर एन मौके पर राजा रामराय के गोद लिये दोनो लड़कों ने( गिलानी भाइयो ने)रामराय पर पीछे से वार कर दिया और कत्ल कर दिया ।

रामराय के गोद लिये बेटों के हाथों मारे जाते ही मुस्लिम सेनयों ने भयंकर मार-काट मचा दिया, लगातार 3 दिनों तक विजयनगर के स्त्री-पुरुष-बच्चे बेदर्दी से कत्ल किये गये, जिसकी सांख्या 1 लाख से ज्यादा बताई जाती है, विजयनगर को आग लगाकर नष्ट कर दिया गया । इस प्रकार एक सेक्युलर सोच ने समृद्ध-सक्षम हिन्दू साम्राज्य का अंत कर दिया ! इसी महान साम्राज्य के खंडहरों पर खड़ा है आज का शहर "हम्पी", जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर विरासत के रूप मे दर्ज किया है ।

क्रमशः

लेखक भारत संस्कृति न्यास के संस्थापक एवं वरिष्ठ पत्रकार है | 
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