कुंठा रहित ह्रदय ही बैकुंठ |


चूर चूर अभिमान अरे ओ खंड खंड पाखण्ड यहाँ !
इन दोनों को गर अपनाया तो हमसा उद्दंड कहाँ !!

अड़चन अवसर लेकर आतीं, उद्यम में उत्कर्ष रहे !
जो आलस में पड़े रहे तो, अवसर में अपकर्ष गहे !!

श्रम, तत्परता ओ सक्षमता, जागृत बुद्धि कमल खिले !
भक्ति प्रेमरस सरस हुए तो, सर्वेश्वर प्रभु आन मिले !!

मौखिक ही हम कहते फिरते प्रभु बसते मन में मेरे !
उन जैसे कोमल करुणामय, हो पाते क्या कभी अरे !!

आनंद भुवन बन जा मन मेरे, सुख दुःख नहीं सतायेंगे !
सच्ची भक्ति बसी उर में तो, भव सागर तर जायेंगे !!

सदा सर्वदा प्रभु मय रहता, उसकी चिंता प्रभु करते |
अनासक्त जो भक्त जगत में, उसका ध्यान प्रभु रखते !!

मिट जाता जब अहम् ह्रदय से, कुंठा जाती भाग
ह्रदय कमल बैकुंठ सरसता, विष्णू जाते जाग |

वैकुण्ठ जहां होती नहिं कुंठा, मन में आन समाये

विष्णु प्रिया भक्ति मिले, तो नारायण भी आये |
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