आखिर क्या है शिया और सुन्नियों के झगडे का ऐतिहासिक कारण ?

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अभी पिछले दिनों सऊदी अरब में शिया धर्मगुरू मौलवी शेख निम्र अल निम्र को फांसी देने के बाद एक बार फिर शिया सुन्नी विवाद सुर्ख़ियों में है | और माना जा रहा है कि मुस्लिम जगत में तनाव बढ़ सकता है। इस समाचार के बाद मुझे सितम्बर 2010 का प्रसंग स्मरण हो आया | 

मैं बारहवें ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर के दर्शन व एलोरा की गुफाएं देखने के बाद एक सवारी जीप से ओरंगावाद को रवाना हुआ | अपने निजी साधन से घूमने के स्थान पर मैं हमेशा सार्वजनिक वाहनों में देशाटन पसंद करता हूँ , उससे हमें वहां के रहन सहन व सोच के विषय में वहुमूल्य जानकारियाँ प्राप्त होती हैं | इस बार भी एसा ही हुआ | रास्ते में खुल्तावाद से सलाउद्दीन नामक एक बुजुर्ग सहयात्री के रूप में प्राप्त हुए | 

खुल्तावाद वह स्थान है , जहाँ क्रूरता और अत्याचार के प्रतीक रहे मुग़ल बादशाह ओरंगजेब को दफनाया गया था | सलाउद्दीन स्वयं को शहंशाह कहते हुए दावा कर रहे थे कि उनके कब्जे में २५० जिन्नात की बड़ी फ़ौज है | जो उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहती है | सहयात्री मुस्लिम उन्हें अदव से हाफिज जी संबोधित कर रहे थे | हाफिज जी की कार्ययोजना में इलाके की सात मस्जिदों पर कब्जा करना भी सुमार था , जिसका जिक्र वे बड़ी शिद्दत से कर रहे थे | मुझे समझ नहीं आया कि मस्जिदों पर कब्जे से उनका क्या मतलब है ? मेरे पूछने पर उन्होंने साफगोई से बताया कि वे शियाओं की हैं | मेने जानना चाहा कि मुसलमान होने के वाद भी शिया और सुन्नी में इतनी कटुता क्यों है | उन्होंने कोई साफ़ जवाब नहीं दिया , सिवाय इसके कि उनकी नजर में वे काफिर हैं | 

मेरी घुश्मेश्वर यात्रा का पूरा प्रसंग आप पढ़ सकते हैं – 

खैर जो भी हो, मेरी जिज्ञासा तो उन्होंने जागृत कर ही दी | लौटकर मैंने शिया सुन्नी विवाद को समझने की कोशिश की | तो आईये जानते हैं, इस विवाद का मूल कारण - 

632.ईसवी में पैगंबर मुहम्मद की मौत के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर विवाद शुरू हुआ | क्योंकि उन्होंने अपने जीवन काल में किसी उत्तराधिकारी की नियुक्ति नहीं की थी । 

कुछ अनुयाईयों का मानना था कि नए खलीफा का चयन सर्वसम्मति से होना चाहिए, किन्तु अन्य लोग केवल नबी के वंशजों को ही खलीफा बनाना चाहते थे । अब स्वाभाविक ही दो समूह बन गए | एक समूह विश्वसनीय सहयोगी, अबू बकर को खलीफा बनाना चाहता था तो दूसरा पैगंबर के चचेरे भाई और दामाद अली के साथ था | आखिरकार अबूबकर के दो उत्तराधिकारियों की हत्या के बाद अली खलीफा घोषित हो ही गए । 

लेकिन अली की भी कुफा मस्जिद में जहर बुझी तलवार से ह्त्या हो गई | यह स्थान आजकल इराक में है | इमाम हुसैन हजरत मोहम्मद साहब की बेटी फातिमा के सुपुत्र थे | 680 ईसवी में कर्बला नामक स्थान पर सम्बन्धियों सहित उनकी ह्त्या कर दी गई | उस समय दुधमुंहे बच्चों को भी नही बख्शा गया | यह नरसंहार मुहर्रम महीने के दसवें दिन हुआ था | तब से अब तक उनके अनुयाई जिन्हें शिया कहा जाता है हर साल उनकी शहादत को याद कर मुहर्रम के महीने में विलाप करते है। शिया शब्द शियात अली से बना है, जिसका अर्थ होता है – “अली के अनुयाई” | आज ईरान और ईराक शिया बहुल क्षेत्र हैं |

आश्चर्यजनक पहलू यह है कि उस लड़ाई में पेशावर के मोहियाल ब्राहमणों ने भी हुसैन साहब की मदद की थी | ब्राहमण सेनापति राहिब दत्त के सातों बेटे इस लड़ाई में शहीद हो गए थे | तब से ही शिया समुदाय का भारत के प्रति लगाव बना हुआ है | इमाम हुसैन के पक्ष में लड़ने के कारण मोहियल ब्राहमणों को हुसैनी ब्राह्मण भी कहा जाता है |जम्मू कश्मीर के पुंछ में आज भी मोहियाल ब्राह्मणों के घर हैं |

ईरान पर भी मुसलमानों ने सातवीं शताब्दी में ही हमला कर उसे गुलाम बना लिया था | और जैसा कि हर जगह हुआ उसे जल्द ही धर्मान्तरण कर मुसलमान भी बना लिया | शारीरिक रूप से तो ईरान पराजित हो गया किन्तु मानसिक रूप से उन्होंने पराजय स्वीकार नहीं की | इमाम हुसैन की परिवार सहित ह्त्या कर दिए जाने के बाद ईरानियों को अपने अपमान का बदला लेने का अवसर मिला और वे अरब मुसलमानों के खिलाफ शिया समुदाय के रूप में संगठित होने लगे | और आज ईरान और ईराक दोनों ही शिया बहुसंख्यक देश हैं | 

उन्होंने इस्लाम पूर्व के अपने इतिहास को छोड़ने से इनकार कर दिया | उन्होंने नवरोज इत्यादि ईरानी उत्सव मनाने और कुरुष महान के गीत गाने शुरू कर दिए | तब से शुरू हुआ ईरानियों और अरबों का युद्ध | अब भी यह किसी न किसी रूप में चलता ही आ रहा है और शिया मुसलमान कट्टर सुन्नी मुसलमानों के गुस्से का शिकार होता रहता है | जब शिया समुदाय इमाम हुसैन की शहादत को दिल से याद करते हुए, उस दिन सुन्नियों ने जो अत्याचार किये थे, उनकी निंदा करता है तो मुस्लिम समाज आज भी उत्तेजित हो जाता है |

सुन्नी अली के पहले तीन खलीफाओं में आस्था रखते हैं | उनकी मान्यता है कि उन्होंने ही पैगंबर की परंपरा को सही प्रकार से अपनाया | इसका फारसी शब्द है “सुन्नाह” अतः वे सुन्नी कहलाते है । सुन्नी शासकों ने उत्तरी अफ्रीका और यूरोप में व्यापक विजय अभियान शुरू किया। उनकी खिलाफत पिछले विश्व युद्ध-मैं के बाद तुर्क साम्राज्य के पतन के साथ समाप्त हो गई । 

आखिर इस्लाम की इन दोनों धाराओं में अंतर क्या है? 

सुन्नी और शिया दोनों संप्रदाय के सिद्धांत, विचार और सोच की व्यापक श्रंखला है । इस्लाम के कई पहलुओं पर दोनों एकमत हैं, कई मामलों में अत्याधिक असहमति भी है । दोनों शाखाओं में कोई भी धर्मनिरपेक्ष तो कतई नहीं है | दोनों के अनुयाईयों में कट्टरपंथ कूटकूट कर भरा है । 

शियाओं की आस्था अली और उनके बाद बने बारह इमामों में है | इनमें से आख़िरी एक बालक था जो अपने पिता की ह्त्या के बाद नौवीं शताब्दी में इराक से गायब हो गया था । शियाओं की मान्यता है कि उनका यह बारहवा इमाम, मेहदी या मसीहा के रूप में एकनाएक दिन वापस आयेगा । 

सुन्नीयों का जोर सार्वजनिक और राजनीतिक दायरे सहित इस भौतिक संसार में भगवान (अल्लाह) की शक्ति पर है, जबकि शिया, शहादत और बलिदान पर भरोसा करते हैं । 

दोनों संप्रदाय के प्रभाव क्षेत्र? 

दुनिया के 1.5 अरब मुसलमानों में 85 प्रतिशत सुन्नी हैं। इनमें से ज्यादातर तुर्की, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, मलेशिया और इंडोनेशिया आदि देशों में रहते हैं। जबकि ईरान, इराक और बहरीन काफी हद तक शिया हैं। 

सऊदी अरब के शाही परिवार को बहावी कहा जाता है | यही सुन्नी इस्लाम की तमाम रूढ़ियों और प्रथाओं को तथा इस्लाम के पवित्रतम धार्मिक स्थलों, मक्का और मदीना को नियंत्रित करता है। इराक में कर्बला, कुफा और नजफ शिया समुदाय के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।

भारतीय उपमहाद्वीप में भी जारी है संघर्ष -

मई 2015 में पाकिस्तान के दक्षिणी बंदरगाह शहर कराची में गुलिस्तां-ए-जौहर इलाके के सफोरा चोरंगी में मोटरसाइकिल पर सवार आठ बंदूकधारियों ने एक यात्री बस में घुस कर यात्रियों पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिसमें अल्पसंख्यक शिया इस्माइली मुस्लिम समुदाय के कम से कम 47 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गये।

पुलिस ने बताया कि बस में 60 से अधिक लोग सवार थे। शिया इस्माइली समुदाय के लोगों को लेकर बस शहर के अल-अजहर गार्डन इलाके से आयशा मंजिल के करीब स्थित उनके धार्मिक स्थल की ओर जा रही थी।इस्माइली समुदाय शिया मुस्लिमों की एक शाखा है और वे बहुत ही शांतिप्रिय लोगों के रूप में जाने जाते हैं। हाल के वर्षों में पाकिस्तान में विशेषकर अल्पसंख्यक शिया मुस्लिमों के खिलाफ सांप्रदायिक हिंसा में बढ़ोतरी हुई है, जो देश के मुस्लिमों की जनसंख्या का लगभग 20 प्रतिशत हैं। ताजा समाचारों के अनुसार "तहरीक - ए - तालिबान नामक संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है |

पकिस्तान में शिया समाज के पूजा स्थलों पर हमला आम बात है | इन हमलों में अब तक हजारों शिया मारे जा चुके हैं | जम्मू कश्मीर का पाकिस्तान अधिकृत गिलगित और बलतिस्तान शिया बहुसंख्यक क्षेत्र है | वहां अब योजनाबद्ध रूप से पंजाब के खैबर पख्तूनखवा से मुसलमानों को लाकर बसाया जा रहा है, ताकि शिया समुदाय अल्पसंख्यक हो जाए | वहां शिया समुदाय की हत्याओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है |

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