अनकोनेक कहानियों को अपने गर्भ में छुपाये सूर्यपुत्री “ताप्ति मैया“

यदि आप शारीरिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर है ! आप चाह कर भी पूरे भारत देश के विभिन्न प्रांतो में स्थापित द्वादश ज्योतिलिंगो का दर्शन लाभ नहीं ले पा रहे हो तो निराश न हो क्योकि मां सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के तट पर भगवान राम ने स्वंय भगवान विश्वकर्मा जी की मदद से बारह ज्योतिलिंगो की आकृति उकेरी है ! आज भी सदियो बीत जाने के बाद ईश्वर निर्मित बारह ज्योतिलिंगो की आकृति के दर्शन का एक ही स्थान पर लाभ ले ! मां ताप्ती में हिन्दुओ के तैतीस कोटी देवी - देवता आज भी स्नान - ध्यान करने के लिए आते है ! यहां पर भगवान श्री राम ने अपने पूर्वजो का तर्पण किया था ! सूर्यवंश में जन्मी एवं चन्दवंशी में विवाहित मां ताप्ती के पावन तट पर एक बार जरूर आए ! नागपुर - भोपाल नेशनल हाइवे 69 पर बैतूल जिला मुख्यालय है ! यहां से 18 किलोमीटर दूर पर बारहलिंग नामक स्थान है ! यहां पर पहुंच के लिए सडक मार्ग भी है !

पुराणों में ताप्ती जी की जन्मकथा तथा श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष के बारे में रामायण में एक कथा पढऩे को मिलती है कि राजा दशरथ के शब्द भेदी वाण से श्रवण कुमार की जल भरते समय अकाल मृत्यु हो गई थी ! पुत्र की मौत से दुखी श्रवण कुमार के माता - पिता ने राजा दशरथ को श्राप दिया था कि उसकी भी मृत्यु पुत्र वियोग में होगी ! राम के वनवास के बाद राजा दशरथ भी पुत्र वियोग में मृत्यु को प्राप्त कर गये लेकिन उन्हे जो श्राप मिला था, उसके कारण उन्हे स्वर्ग की प्राप्ति नहीं हो सकी ! एक अन्य कथा यह भी है कि ज्येष्ठ पुत्र के जीवित रहते अन्य पुत्र द्वारा किया अंतिम संस्कार एवं क्रियाक्रम भी शास्त्रो के अनुसार मान्य नहीं है ! ऐसे में राजा दशरथ को मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकी थी ! राजा दशरथ द्वारा बताई ताप्ती महात्म की कथा का भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम राम को स्मरण था ! इसलिए उन्होने सूर्यपुत्री देव कन्या मां आदिगंगा ताप्ती के तट पर अपने अनुज लक्ष्मण एवं माता सीता की उपस्थिति में अपने पितरो एवं अपने पिता का तर्पण कार्य किया था ! भगवान श्री राम ने बारहलिंग नामक स्थान पर रूक कर यहां पर भगवान विश्वकर्मा की मदद से बारह लिंगो की आकृति ताप्ती के तट पर स्थित चटटनो पर ऊकेर कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा की थी ! बारहलिंग में आज भी ताप्ती स्नानागार जैसे कई ऐसे स्थान है जो कि भगवान श्री राम एवं माता सीता के यहां पर मौजूदगी के प्रमाण देते है ! भगवान श्री राम के साथ इस पूजन कार्य के पूर्व माता सीता ने जिस स्थान पर ताप्ती नदी के पवित्र जल से स्नान किया था वह आज भी सुरक्षित है तथा लोग उसे सीता स्नानागार के रूप में पूजन करते है !

जनश्रुत्रि एवं जानकारो तथा इतिहास के विशेषज्ञो के अनुसार इस द्रविड़ राज्य में आसुरी शक्ति का जबरदस्त आंतक रहता था वे ऋषि - मुनियो के पूजा पाठ यहाँ तक कि उनके द्वारा करवाये जाने वाले यज्ञो तक में व्यवधान पैदा कर देते थे ! असुरो के अराध्य देवाधिदेव महादेव की भगवान श्री राम ने चौदह वर्ष के वनवास के दौरान स्वंय तथा अनुज लक्ष्मण एवं जीवन संगनी सीता की रक्षा के लिए जहाँ - तहाँ पूजा अर्चना की ! असुर केवल भोलेनाथ भगवान जटाशंकर महादेव के पूजन कार्य में व्यवधान नहीं डालते थे इसी कारण मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने राम पथ के दौरान शिव लिंगो का पूजन किया ! ताप्ती नदी की बीच धारा में पाषण शिला पर बारह शिव लिंगो की मां विश्वकर्मा की मदद से स्थापना की !

एक अन्य कथा के अनुसार दुर्वषा ऋषि ने देवलघाट नामक स्थान पर बीच ताप्ती नदी में स्थित एक चट्टान के नीचे से बने सुरंग द्वार से स्वर्ग को प्रस्थान किया था ! शास्त्रो में कहा गया है कि यदि भूलवश या अनजाने से भी किसी मृत देह की हड्डी ताप्ती के जल में प्रवाहित हो जाती है तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती है ! जिस प्रकार महाकाल के दर्शन करने से अकाल मौत नहीं होती ठीक उसी प्रकार किसी भी अकाल मौत के शिकार बनी देह की अस्थियां ताप्ती जल में प्रवाहित किये जाने से अकाल मौत का शिकार बनी आत्मा को भी प्रेत योनी से मुक्ति मिल जाती है ! ताप्ती नदी के बहते जल में बिना किसी विधि - विधान के भी यदि कोई व्यक्ति केवल अतृप्त आत्मा को आमंत्रित करके, अपने दोनो हाथो में जल लेकर उसकी शांती एवं तृप्ति का संकल्प लेकर यदि उसे समर्पित कर देता है तो मृत व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है ! सबसे चमत्कारिक तथ्य यह है कि ताप्ती के पावन जल में बारह माह किसी भी मृत व्यक्ति का तर्पण कार्य संपादित किया जा सकता है ! 

महाभारत की एक कथा के अनुसार मृत्युपरांत कर्ण से भगवान श्री कृष्ण ने कुछ मांगने को कहा लेकिन दानवीर कर्ण का कहना था कि भलां मैं आपसे क्यूँ कुछ मांगू मैने तो अभी तक लोगो को दिया ही है तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पूर्णस्वरूप दानवीर कर्ण को दिखा कर कहा अब तो कुछ मांग लो ! कर्ण ने कहा कि यदि प्रभु आप मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मेरी अंतिम इच्छा को पूर्ण कर दो जो यह है कि मेरा अंतिम संस्कार उस पवित्र नदी के किनारे हो जहाँ पर आज तक कोई शव न जला हो ! तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टि से ताप्ती जी के किनारे अपने अंगुठे के बराबर ऐसी जगह देखी, और फिर वहां पर ही भगवान श्री कृष्ण ने पैर के एक अंगुठे पर खड़े रह कर अपनी हथेली पर दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार किया ! रामयुग में जटायु तथा कृष्ण युग में कर्ण दो ही ऐसे जीव रहे जिन्होने भगवान राम और श्याम की बाँहो में दम तोड़ा !

प्रस्तुत कथा से इस बात का पता चलता है कि ताप्ती कितनी पवित्र नदी है ! दूसरी दृष्टी से देखा जाये तो पता चलता है कि महाभारत की इस घटना के अनुसार सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार भी उसकी अपनी बहन ताप्ती के किनारे सम्पन्न हुआ !

वैसे आमतौर पर रामायण में श्री राम युग में श्रीराम द्वारा मात्र रामेश्वरम में ही शिवलिंग की स्थापना का वर्णन सुनने एवं पढऩे को मिलता है लेकिन पूरे विश्व के बारह ज्योर्तिलिंगो को एक ही स्थान पर वह भी सूर्यपुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच तेज बहती धार में मौजूद पाषण शीलाओं पर ऊकेरा जाना तथा उनका आज भी मूल स्वरूप में बने रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है ! कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने शिवलिंगो की स्थापना करके यह संदेश दिया कि देवाधिदेव शिव ही राम के ईश्वर है जबकि शिव भगवान ने भी कहा कि राम ही ईश्वर है ! बहरहाल बात रामेश्वरम के ज्योर्तिलिंग की हो या ताप्ती नदी बीच तेज बहती धारा के मध्य पाषणशिलाओं पर स्थापित बारह लिंगो की भगवान श्री राम ने अपने अराध्य देवाधिदेव जटाशंकर उमापति महादेव के प्रति अपने अगाह प्रेम को जग जाहिर कर डाला !

रावण संहिता में उल्लेखित कहानी के अनुसार नर्मदा और ताप्ती नदी के किनारे जब रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने अपने तप बल से नर्मदा और ताप्ती की धाराओं को उल्टी बहा दिया तो उसे देखकर आदिवासी लोग डर गए ! उस समय से लेकर आज तक उक्त सभी डरे सहमे आदिवासियों के वंशज पीढ़ी दर पीढ़ी से रावण और उसके बलशाली पुत्र मेघनाथ को ही अपना राजा मानकर उसकी पूजा अर्चना करते चले आ रहे है !

यूं तो भारत की पवित्र नदियो में उल्लेखित माँ नर्मदा एवं माँ ताप्ती ही पश्चिम मुखी नदियाँ है ! गंगा जी इलाहबाद में जिस दिशा से आती है वापस उसी दिशा में लौटती है ! ठीक इसी प्रकार बैतूल जिला मुख्यालाय से मात्र छह किलो मीटर की दूरी पर स्थित बैतूल बाजार नामक शहर के किनारे से बहती सापना नदी जिस दिशा में आती है उसी दिशा में वापस बहती है ! ऐसा उन्हीं स्थानों पर होता है जो धार्मिक दृष्टी से लोगों की श्रद्धा का केन्द्र बने हुये है ! नदियों और इंसानों का रिश्ता शायद सबसे पुराना रिश्ता है तभी तो नदियों के किनारे अनेक सभ्यताओं ने समय-समय पर जन्म लिया है ! आज आवश्यकता है पुरातत्व विभाग इन नदियों के आगोश में छुपे रहस्यों को खोज निकाले ताकि यह पता चल सके कि आज के बैतूल और भूतकाल के इस धार्मिक क्षेत्र का इतिहास क्या था ? यहां यह उल्लेखनीय है कि बैतूल जिले में ही जैनियों की पवित्र मुक्तागिरी नामक तीर्थ स्थली हैं जहां पर आज भी केसर की वर्षा होती है !

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