भारत की अस्मिता पर आघात - सुरेश हिन्दुस्थानी


आज भारत में जिस प्रकार से आस्था को लेकर राजनीति की जा रही है, उसके कारण कई प्रकार की विसंगति निर्मित हो रही हैं। देश में जितने भी धर्म या संप्रदाय हैं, उनकी मान्यताओं का सम्मान किया जाना संवैधानिक वाध्यता से कहीं अधिक हिन्दुस्थान का सांस्कृतिक परिवेश भी है । संवैधानिक अधिकारों के तहत हर किसी को अपना वक्तव्य प्रसारित करने का अधिकार है, लेकिन इन अधिकारों से अगर किसी भी व्यक्ति के धर्म पर कुठाराघात होता है तब यह अधिकार का दुरुपयोग ही माना जाएगा। वास्तव में हमारे देश में अधिकारों का दुरुपयोग कई अवसरों पर देखा जा रहा है। चाहे वह सांस्कृतिक मुद्दा हो या धार्मिक। हर बात पर राजनीति की जाती रही है। भारत में सभी धर्मों का सम्मान किए जाने के लिए कानून भी बना है, लेकिन जिस प्रकार से इन कानूनों का मजाक उड़ाया जाता रहा है, उससे देश की अस्मिता तार तार हो रही है।

असहिष्णुता के नाम पर राजनीतिक दलों ने जिस प्रकार का खेल खेला है, उससे स्थिति और बिगड़ेगी ही। राजनीतिक दलों को करना यह चाहिए कि संवेदनशील मुद्दों पर जनभावनाओं का भी ख्याल रखें । लेकिन कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों के लिए राजनीति ही मुख्य रहती है । कुछ दिन पूर्व उत्तरप्रदेश के मुजफ्फर नगर में हुए दंगों में कांग्रेस ने एक पक्ष के प्रति सहानुभूति का प्रदर्शन किया था, केवल तुष्टीकरण की भावना से कार्य किया।

वर्तमान में हमारे देश में हमारी सांस्कृतिक विरासत तारतार की जा रही है, मानबिन्दुओं पर जमकर कुठाराघात किया जा रहा है। इससे आहत समाज में स्वाभाविक ही प्रतिक्रिया उत्पन्न हो रही है | एक ओर भारत की संस्कृति कहती है कि किसी भी व्यक्ति को ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए, जिससे किसी की आस्था पर प्रहार हो, लेकिन लगातार आस्था पर हो रहे आघात व उसे मिलने वाले राजनैतिक समर्थन से भारत का मूल स्वरूप बिगड़ रहा है। साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए काम करने वाली संस्थाओं को इस विषय में आगे आकर अपनी सक्रियता का प्रदर्शन करना चाहिए।

हम यह बात भी भलीभांति जानते हैं कि विश्व में केवल भारत देश ही ऐसा है, जहां हर धर्म और संप्रदाय के व्यक्तियों को अपने तौर तरीकों से जीने का अधिकार है, लेकिन यह जीने का अधिकार सभी के लिए लागू होता है, इसे केवल एक पक्ष तक ही सीमित रखना न तो न्याय संगत है और नही तर्क संगत । वर्तमान में जिस प्रकार की राजनीति की जा रही है। उससे भाई चारे की भावना को ग्रहण लग रहा है।  

गौहत्या के मामले को लेकर भी कानून बने हैं, लेकिन इन कानूनों का पूरी तरह से उल्लंघन किया जा रहा है। भारत की मान्यताओं में गाय को माता को स्वरूप दिया गया है। हिन्दु समाज की आस्था से सीधे रूप में जुड़ी गौमाता का हनन किया जाना वास्तव में हिन्दू समाज की आस्था पर आघात है। हमारे देश में कुत्ता पालने वाले को बहुत बड़ा पशु प्रेमी कहा जाता है, लेकिन गाय पालने वाले को कट्टरवादी कहा जा रहा है। इसे देश की विसंगति नहीं तो और क्या कहा जाएगा, जिस देश में गाय को माता का दर्जा दिया हो, उस देश के मूल समाज की आस्थाओं पर नित्य प्रति प्रहार किए जा रहे हैं। आज गौमाता के बारे में तमाम प्रकार के वक्तव्य दिए जा रहे हैं। कोई कहता है कि खाने पीने का अधिकार सरकार तय नहीं कर सकती। सवाल केवल मांस खाने का नहीं हैं,  यह केवल मांस का मुद्दा नहीं है, यह आस्था से जुड़ा एक ऐसा मामला है, जिससे पूरा भारत जुड़ा हुआ है। मांस तो कुत्ते से भी मिल सकता है, लेकिन गाय माता को काटना हिन्दुओं के भावना के साथ खिलवाड़ ही है। इस आस्था व भावनात्मक विषय से जानकर भी अनजान बनने वाले न तो देश हितैषी हैं और न ही समाज के ।

यह समझना होगा कि कोई व्यक्ति यदि जानबूझकर भारत की आस्था के साथ खिलवाड़ करता है तो वह सीधे रूप में देश का विरोधी है। यह आस्था विरोधी कृत्य फिर चाहे किसी भी समुदाय का हो। भारत के बारे में मान्यता है कि भारत में हर धर्म और संप्रदाय का सम्मान होता है। लेकिन अगर गहराई से अध्ययन करें तो ज्ञात होता है कि देश का केवल हिन्दू समाज ही सारे संप्रदायों का सम्मान करता है। अन्य समुदाओं के लोग सीधे तौर पर केवल अपने ही धर्म को प्रधानता देते हैं। हिन्दुओं के किसी कार्यक्रम को इन संप्रदायों के लोग कतई सहन नहीं करते। इस प्रकार की कट्टरवादी सोच के चलते देश का मूल आधार ही खिसक रहा है। 

हिन्दू समाज सभी धर्मों के कार्यक्रमों में खुलकर भाग लेता है और सहयोग करता है, लेकिन अन्य धर्मों के लोग ऐसा कर पाने में असफल ही सिद्ध हो रहे हैं। अभी हाल ही में उत्तरप्रदेश में देखने में आया कि हिन्दुओं के एक त्यौहार पर अन्य संप्रदाय के व्यक्ति पर रंग गिर गया। इसके बाद उस शहर के हालात सांप्रदायिक तनाव में बदल गए। इसके विपरीत हिन्दू समाज के व्यक्ति उस संप्रदाय के कार्यक्रमों में भाग लेकर भाईचारे के भाव का प्रदर्शन करते हैं। भारत का मूल स्वभाव है हिन्दू संस्कृति। सर्वोच्च न्यायालय के कथनानुसार हिन्दुत्व भारत की जीवन पद्धति है। और यह वास्तविकता भी है कि हिन्दुस्तान में से अगर संस्कृति को समाप्त कर दिया जाए तो फिर भारत मृत प्राय: हो जाएगा। भारत के मूल सांस्कृतिक आधार को समझने के लिए हमें उस दौर का अध्ययन करना होगा जब भारत गुलाम नहीं था। लेकिन आज भारत की नई पीढ़ी को वह इतिहास पढऩे को भी नहीं मिलता | 

भारत के कुछ मुसलमानों ने अभी हाल ही में जिस प्रकार गौदुग्ध पार्टी आयोजित की, वह भारत की वैचारिक एकात्मता के भाव का प्रदर्शन करता है। मुसलमानों द्वारा यह कृत्य वास्तव में ही अत्यंत ही स्वागत योग्य कदम है। इस प्रकार के भाव का पूरे देश में विस्तार होना चाहिए। देश में प्रायः देखा जाता है कि किसी धर्म विशेष के लिए किए जा रहे कार्यों को ही धर्म निरपेक्षता के दायरे में शामिल किया जाता है। लेकिन भारत के मूल स्वभाव को प्रदर्शित करने वाले कार्यों को साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाला करार दिया जाता है। हम सभी भारत वासियों को इस बात का विचार करना होगा कि हमारा और देश का भला किस प्रकार की जीवन शैली अपनाने में है। यहां सवाल हिन्दू और मुस्लिम का नहीं है। यहां सवाल देश की सार्वभौमिकता का है। अगर देश नहीं बचेगा तो हमारा अस्तित्व भी कहाँ  बचेगा ?
(लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

सुरेश हिन्दुस्तानी वरिष्ठ पत्रकार
द्वारा श्री वी. पी. चौबे
उमाशंकर कम्पाउंड, बैंक ऑफ बड़ोदा के पीछे
झोकन बाग झांसी उत्तरप्रदेश
पिन-284001
मोबाइल- 09455099388

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें