बलिदान दिवस विशेष “स्वतंत्रता सेनानी राजा बख्तावर सिंह”


मध्य प्रदेश के धार जिले में विन्ध्य पर्वत की सुरम्य शृंखलाओं के बीच द्वापरकालीन ऐतिहासिक अझमेरा नगर बसा है ! 1856 में यहाँ के राजा बख्तावरसिंह के पूर्वज मूल रूप से जोधपुर (राजस्थान) के राठौड़ वंशीय राजा थे ! पहले अमझेरा राज्य बहुत बड़ा था, जिसमें भोपावर तथा दत्तीगाँव भी सम्मिलित थे ! कालान्तर में अमझेरा, भोपावर और दत्तीगाँव पृथक-पृथक राज्य हो गए ! 

सन् 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के समय अमझेरा के शासक थे महाराणा बख्तावरसिंह ! इनके पिता का नाम राव अजीतसिंह और माता का नाम रानी इन्द्रकुँवर था ! महाराणा को शिक्षा-दीक्षा एवं अस्त्रों के संचालन का अच्छा प्रशिक्षण दिया गया था, उनके धार तथा इन्दौर के शासकों के साथ अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे ! इनकी गतिविधियों पर नियन्त्रण रखने हेतु ही ब्रितानीयों ने यहाँ फौजी छावनी स्थापित की थी और पॉलिटिकल एजेन्ट भी नियुक्त किए थे ! 

1856 में यहाँ के राजा बख्तावरसिंह ने अंग्रेजों से खुला युद्ध किया पर उनके आसपास के कुछ राजा अंग्रेजों से मिलकर चलने में ही अपनी भलाई समझते थे ! राजा ने इससे हताश न होते हुए तीन जुलाई, 1857 को भोपावर छावनी पर हमला कर उसे कब्जे में ले लिया ! इससे घबराकर कैप्टेन हचिन्सन अपने परिवार सहित वेश बदलकर झाबुआ भाग गया ! क्रान्तिकारियों ने उसका पीछा किया पर झाबुआ के राजा ने उन्हें संरक्षण दे दिया ! इससे उनकी जान बच गयी !

भोपावर से बख्तावर सिंह को पर्याप्त युद्ध सामग्री हाथ लगी ! छावनी में आग लगाकर वे वापस लौट आये ! उनकी वीरता की बात सुनकर धार के 400 युवक भी उनकी सेना में शामिल हो गये पर अगस्त, 1857 में इन्दौर के राजा तुकोजीराव होल्कर के सहयोग से अंग्रेजों ने फिर भोपावर छावनी को अपने नियन्त्रण में ले लिया !

इससे नाराज होकर बख्तावर सिंह ने 10 अक्तूबर, 1857 को फिर से भोपावर पर हमला बोल दिया ! इस बार राजगढ़ की सेना भी उनके साथ थी ! तीन घंटे के संघर्ष के बाद सफलता एक बार फिर राजा बख्तावर सिंह को ही मिली ! युद्ध सामग्री को कब्जे में कर उन्होंने सैन्य छावनी के सभी भवनों को ध्वस्त कर दिया !

ब्रिटिश सेना ने भोपावर छावनी के पास स्थित सरदारपुर में मोर्चा लगाया ! जब राजा की सेना वापस लौट रही थी, तो ब्रिटिश तोपों ने उन पर गोले बरसाये पर राजा ने अपने सब सैनिकों को एक ओर लगाकर सरदारपुर शहर में प्रवेश पा लिया ! इससे घबराकर ब्रिटिश फौज हथियार फेंककर भाग गयी ! लूट का सामान लेकर जब राजा अझमेरा पहुँचे, तो धार नरेश के मामा भीमराव भोंसले ने उनका भव्य स्वागत किया !

इसके बाद राजा ने मानपुर गुजरी की छावनी पर तीन ओर से हमलाकर उसे भी अपने अधिकार में ले लिया ! 18 अक्तूबर को उन्होंने मंडलेश्वर छावनी पर हमला कर दिया ! वहाँ तैनात कैप्टेन केण्टीज व जनरल क्लार्क महू भाग गये ! राजा के बढ़ते उत्साह, साहस एवं सफलताओं से घबराकर अंग्रेजों ने एक बड़ी फौज के साथ 31 अक्तूबर, 1857 को धार के किले पर कब्जा कर लिया ! नवम्बर में उन्होंने अझमेरा पर भी हमला किया !

बख्तावर सिंह का इतना आतंक था कि ब्रिटिश सैनिक बड़ी कठिनाई से इसके लिए तैयार हुए पर इस बार राजा का भाग्य अच्छा नहीं था ! तोपों से किले के दरवाजे तोड़कर अंग्रेज सेना नगर में घुस गयी ! राजा अपने अंगरक्षकों के साथ धार की ओर निकल गये पर बीच में ही उन्हें धोखे से गिरफ्तार कर महू जेल में बन्द कर दिया गया और घोर यातनाएँ दीं ! इसके बाद उन्हें इन्दौर लाया गया ! 

महाराणा बख्तावर सिंह के साथ उनके सहयोगियों में से दीवान गुलाब राव, चिमन लाल एवं बशीर उल्ला खाँ को फाँसी दी जाने वाली थी ! फाँसी से पूर्व महाराणा चाहते थे कि राजा होने के नाते सबसे पहले मुझे फाँसी दी जाए और उसके बाद किसी दूसरे को ! अंग्रेजों ने इस विषय में यह निर्णय लिया महाराणा को सबसे अन्त में फाँसी पर लटकाया जाए, ताकि वे अपनी साथियों को मरते देखकर उस वेदना का दण्ड भी भोग सकें !

एक के बाद एक महाराणा बख्तावर सिंह के साथियों को फाँसी पर लटका दिया गया ! जब महाराणा को फाँसी के तख्ते पर खड़ा किया, तब सूर्योदय हो चूका था ! फाँसी से पूर्व महाराणा ने हाथ जोड़कर मातृभूमि की वन्दना की और उनका शरीर फाँसी के फँदे पर झूल गया ! एक देशभक्त को अपनी मातृभूमि की आजादी के सच्चे प्रयत्नों का सर्वोच्च पुरस्कार मिल चुका था !


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