आम आदमी पार्टी के बचे खुचे समर्थकों को एक खुला ख़त !



इन्डियन एक्सप्रेस में आज प्रकाशित श्री रोहण पारीख का आम आदमी पार्टी के समर्थकों को लिखा खुला ख़त (हिन्दी अनुवाद) - 

प्रिय आम आदमी पार्टी के समर्थकों,

मैं भी उन दिनों जंतर मंतर से उठे उस प्रचंड आन्दोलन का प्रशंसक था, उसके प्रति सम्मान का भाव रखता था, जिससे आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ । वह सचमुच एक जन आन्दोलन था, जिसमें मध्यम वर्ग के वे शिक्षित नौजवान पूरी सिद्दत के साथ सम्मिलित हुए थे, जो नाकारा और भ्रष्ट तंत्र से आजिज आये हुए थे । मैंने भी अन्ना हजारे जिन्दावाद के नारे लगाये, और मैं भी अन्य युवाओं के समान आन्दोलन की ऊर्जा और बौद्धिकता का कायल था ।

काश, वह समाप्त न हुआ होता । और जैसा कि अधिकाँश क्रांतियों के साथ हुआ, शुद्ध शुरुआत के बाद, एक खलनायक द्वारा इस मंच को चुरा लिया गया और अपने निहित स्वार्थों के लिए आंदोलन का उपयोग कर लिया गया । जब तक हम कुछ समझ पाते मफलर लपेटे, खांसी की नौटंकी के साथ, बहुरूपिये अरविंद केजरीवाल ने नेतृत्व की बाग़डोर संभाल ली और उन सबको धकेल कर बाहर कर दिया जो इस नैतिक आन्दोलन की रीढ़ थे, मसलन योगेंद्र यादव, किरण बेदी और यहाँ तक कि खुद अन्ना हजारे भी । पार्टी का नैतिक आधार समाप्त हो गया, और अगर कुछ बचा तो महज अरविंद केजरीवाल शो ।

'आप' आज सिर्फ दुनिया भर में हुए उन कई लोकलुभावन किन्तु असफल आंदोलनों की भारतीय गूंज है, जिसे हमारे सनसनीखेज खबर मीडिया और सोशल मीडिया का वातावरण शह दे रहा है ! जिसे सत्य, अनुसंधान, और तथ्यों से कोई लेनादेना नहीं है, केवल टीआरपी मुख्य है । जैसे कि ब्रिटेन में कोर्बिन, ग्रीस में सिरिजा, फ्रांस में ली पेन, इटली में ग्रिलो या संयुक्त राज्य अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प, कहानी एक ही है।

और दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह यहाँ भी इस तरह का लोकलुभावन खतरनाक ही है।

इन लोगों के लिए विशेषज्ञता का कोई अर्थ नहीं है । केजरीवाल की आर्थिक योजनायें, किसी आठवीं कक्षा के अर्थशास्त्र शिक्षक के मानक पर भी खरी नहीं उतरेंगी । भारी व्यय, और ऊपर से व्यापार पर जर्जर कर का उनका दृष्टिकोण, ग्रीस की तरह तेजी से हमारी अर्थव्यवस्था को खोखला और दिवालिया बना देंगा । लेकिन ज़ाहिर है, "मुफ्त वाई-फाई, मुफ्त कॉलेज, अमीरों पर कर" जैसे अद्भुत नारे लगाते रहो, उसका तार्किकता से क्या लेना देना? बस लोगों को वह सुनाओ जो वे सुनना चाहते हैं ।

केजरीवाल व्यापारियों और नेताओं पर हमला करते है। वे कहते हैं कि व्यवसाई ही सब बुराईयों की जड़ हैं। उनका टैक्स इंस्पेक्टर वाला नजरिया अभी भी कायम है, उनके अनुसार धोखाधड़ी के बिना व्यापार सफल हो ही नहीं सकता। अगर कोई व्यक्ति सफल है तो इसका अर्थ है कहीं ना कहीं दाल में कुछ काला है, उसका महिमा मंडन नहीं होना चाहिए ।

जबकि वास्तविकता यह है कि देश के कई उद्यमियों और कारोबारी परिवारों ने बहुत अच्छे काम किये हैं – लोगों को रोजगार के अवसर मुहैया कराये हैं, अनेक प्रकार के उत्पादों का निर्माण किया है, ईमानदारी से कहा जाये तो देश के समग्र विकास में बहुमूल्य योगदान दिया है । वास्तव में तो भ्रष्टाचार काफी हद तक केजरीवाल जैसे लोगों की वजह से ही मौजूद है ! अर्थशास्त्र की सीमित समझ वाले और नियमों के जंजाल में बाजार के हर पहलू को नियंत्रित करने के जटिल नियमों के माध्यम से रिश्वतखोरी और ब्लैकमेल कर व्यापारियों का खून चूसने वाले अरविंद केजरीवाल जैसे कर निरीक्षक, आलसी और भ्रष्ट अधिकारियों के कारण देश में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार और काला धन उत्पन्न हुआ है । ऐसे वातावरण ने कुटिल प्रथाओं को जन्म दिया है ।

ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय लोकलुभावनवादी, राजनेताओं की खिल्ली उड़ते हैं । बजाय इसके कि खुद सत्ता सूत्र संभालकर कड़े नीतिगत फैसले लिए जाएँ, यह आसान है कि कह दिया जाए – सब चोर हैं, और दावा किया जाए कि हमतो सिस्टम से परे है । तो यह है केजरीवाल की हकीकत । दिल्ली के मुख्यमंत्री होने के बावजूद केजरीवाल के पास कोई विभाग नहीं है, वे बिना विभाग के मुख्यमंत्री हैं, आघात पहुंचाने वाली सचाई तो यह है कि उनमें शासन करने की न तो योग्यता है, नाही इच्छा (इस ढकोसले के लिए उप मुख्यमंत्री है न )। एक साधारण से यातायात प्रयोग की उनकी अजीब सी योजना को जिस प्रकार दैनिक सुर्खियों में लाया गया, वह उन जैसा नाटककार ही कर सकता है । मुंबई की यातायात पुलिस चुपचाप बिना राष्ट्रीय समाचार आइटम बने इनसे कहीं अधिक जटिल समस्याओं को संभालती है ।

दुनियावी डोनाल्ड ट्रंप की तरह केजरीवाल भी यही मानते हैं कि वास्तविकता और हकीकत की तुलना में टेलीविजन अधिक महत्वपूर्ण है। जैसे कि केजरीवाल पर विभिन्न हमलेनुमा तमाशे हमेशा कैमरे की सीमा में ही हुए ! पता नहीं केजरीवाल के अलावा किसी अन्य नेता पर इतने हमले क्यों नहीं हुए ? या केजरीवाल पर भी हमले तब क्यों नहीं हुए, जब वे कैमरे की परिधि के बाहर हों ? जैसे कि ट्रंप ने राजनीतिक प्रसिद्धि के लिए पैसे देकर जांच करवाई कि ओबामा वास्तव में अमेरिका में पैदा हुए या नहीं, ठीक बैसे ही केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले कर ध्यान आकर्षित करते हैं । इसी रणनीति के तहत वे वाराणसी में मोदी के खिलाफ चुनाव लडे और जब भी मौक़ा मिलता है, वे अपनी स्तरहीन और षड्यंत्र पूर्ण आवाज बुलंद से बुलंद करते जाते हैं । येन केन प्रकारेण चर्चा में बने रहने के लिए एक दुर्जनों के नेता को तथ्यों से क्या लेना देना ? उन्हें तो तात्कालिक सफलता चाहिए, और वह सफलता भी कितनी छिछली, केवल और केवल टीवी चेनलों पर मुंह दिखाई ।

दुर्भाग्य से आजकल बेहतर टीआरपी के लिए धरातलहीन दावे, मनगढ़ंत षड्यंत्रपूर्ण कथानक और ज्यादा से ज्यादा असंसदीय भाषा मुख्य है। जिनके पास बताने को कोई उपलब्धि नहीं होती वे अक्सर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए यही सब नुस्खे आजमाते हैं ।

यह एक अंतहीन सिलसिला है । अब देखिये ना एक मुख्यमंत्री का बेहूदा तमाशा ? वह भारत के प्रधानमंत्री पर यह आरोप लगा रहा है कि वे उसकी ह्त्या करवा सकते हैं ! क्या हम ऐसा देश चाहते हैं, जहाँ टेलीविजन रेटिंग की खातिर सामाजिक सीमाएं ही टूट गईं हों, ऐसे जंगली और निराधार आरोपों की बाढ़ आ गई हो ? 

मैं आम आदमी पार्टी के बचे खुचे समर्थकों से आग्रह करता हूँ कि वे आत्मचिंतन करें, और सकारात्मकता की ओर वापस लौटें ! अन्ना हजारे के दिनों को याद करें, जब मक्कार, फरेबी और नाटकबाजों से देश को बचाने हेतु हमने और आपने कमर कसी थी । यही आंदोलन की आत्मा पर लौटने का समय है - भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, संविधान प्रदत्त अधिकारों के लिए लड़ाई, और इसका मूलतत्व - शिक्षित वर्गों द्वारा देखा गया एक महान भारत का आनंददाई सपना । मैं जानता हूँ कि आप सभी चाहते हैं कि हमारा देश जगसिरमौर बने, लेकिन क्या वह कभी न खत्म होने वाले अरविंद केजरीवाल शो से होगा ?

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