जरा याद करो कुर्बानी - डाँ नीलम महेंद्र


'' शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा ।
कभी वह दिन भी आयेगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही जमीं होगी जब अपना आसमां होगा ।।''

पंडित जगदम्बा प्रसाद मिश्र की इस कालजायी कविता के ये शब्द हमें उन दिनों में आज़ादी की महत्ता एवं उसे प्राप्त करने के लिए चुकाई जाने वाली कीमत का एहसास कराने के लिए काफी हैं ।

यह वह दौर था जब देश का हर बच्चा बूढ़ा और जवान देश प्रेम की अगन में जल रहे थे।

गोपाल दास व्यास द्वारा सुभाष चन्द्र बोस के लिए लिखी गई कविता के कुछ अंश आगे प्रस्तुत हैं जो उस समय देश के नौजवानों को उनके जीवन का लक्ष्य दिखाती थीं 

" वह ख़ून कहो किस मतलब का
जिस में उबाल का नाम नहीं
वह ख़ून कहो किस मतलब का
आ सके जो देश के काम नहीं "

इस समय जब देश का हर वर्ग देश के प्रति अपना योगदान दे रहा था तब हिन्दी सिनेमा भी पीछे नहीं था। 1940 में निर्देशक ज्ञान मुखर्जी की फिल्म "बन्धन " के गीत " चल चल रे नौजवान " ने आज़ादी के दीवानों में एक नया जोश भर दिया था।

याद कीजिए फिल्म "जागृति " का गीत " हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के " हमारे बच्चों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराता था ।

ऐसे अनेकों गीत हैं जो देश प्रेम की भावना से ओतप्रोत हैं । देश के बच्चों एवं युवाओं में इस भावना की अलख को जगाए रखने में देश भक्ति से भरे गीत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता।

राम चंद्र द्विवेदी / कवि प्रदीप द्वारा लिखित गीत '' ऐ मेरे वतन के लोगों , ज़रा आँख में भर लो पानी , जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी '' सुनने से आज भी आँख नम हो जाती है ।

आज़ादी के आन्दोलन में उस समय की युवा पीढ़ी कि भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता। शहीद भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आजाद , अश्फाक उल्लाह ख़ान जैसे युवाओं ने अपनी जान तक न्योछावर कर दी थी देश के लिए। ये जांबाज सिपाही भी अपनी भावनाओं को गीतों में व्यक्त करते हुए कहते थे ,
"सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ुए क़ातिल में है।" अथवा
" मेरा रंग दे बसन्ती चोला " 

लेकिन आज उसी युवा पीढ़ी को न जाने किसकी नज़र लग गई । बेहद अफसोस होता है जब दिल्ली के हाई कोर्ट की जस्टिस प्रतिभा रानी एक मुकदमे के दौरान कहती हैं " छात्रों में इन्फेक्शन फैल रहा है रोकने के लिए ओपरेशन जरूरी है।" यह टिप्पणी आज के युवा की दिशा और दशा दोनों बताने के लिए काफी है।

शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे देश में 9 अगस्त से 23 अगस्त तक " आज़ादी 70 याद करो कुर्बानी " नाम से स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में 15 दिनों का उत्सव मनाने का फैसला लिया है ताकि देश के युवाओं में देशभक्ति की भावना जागृत हो सके ।आने वाली पीढ़ी में मातृभूमि के प्रति लगाव पैदा कर सकें।उन्होंने ऐलान किया है कि अब देश में नहीं होगा कोई आतंकी बुरहान पैदा , हम बनाएंगे देश भक्तों की नई फौज ।

बहुत सही सोच है और आज की आवश्यकता भी है क्योंकि इतिहास गवाह है कि जिस देश के नागरिकों की अपने देश के प्रति प्रेम व सम्मान की भावना ख़त्म हो जाती है उस दिन देश एक बार फिर गुलाम बन जाता है।

दरअसल बात केवल युवाओं की नहीं है हम सभी की है । आज हम सब देश की बात करते हैं लेकिन यह कभी नहीं सोचते कि देश है क्या ? केवल कागज़ पर बना हुआ एक मानचित्र अथवा धरती का एक अंश ! जी नहीं देश केवल भूगोल नहीं है वह केवल सीमा रेखा के भीतर सिमटा ज़मीन का टुकड़ा नहीं है ! वह तो भूमि के उस टुकड़े पर रहने वालों की कर्मभूमी हैं , जन्म भूमि है,उनकी पालनहार है , माँ है , उनकी आत्मा है ।देश बनता है वहाँ रहने वाले लोगों से ,आप से , हम से ,बल्कि हम सभी से ।

देश की आजादी के 70 वीं समारोह पर यह बातें और भी प्रासंगिक हो उठती हैं । आज यह जानना आवश्यक है कि अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपने प्रथम भाषण में कहा था " अमेरिका वासियों तुम यह मत सोचो कि अमेरिका तुम्हारे लिए क्या कर रहा है अपितु तुम यह सोचो कि तुम अमेरिका के लिए क्या कर रहे हो " 

आज हम सबको भी अपने देश के प्रति इसी भावना के साथ आगे बढ़ना होगा।

चार्ल्स एफ ब्राउन ने कहा था " हम सभी महात्मा गांधी नहीं बन सकते लेकिन हम सभी देशभक्त तो बन ही सकते हैं ।"

आज देश को जितना खतरा दूसरे देशों से है उससे अधिक खतरा देश के भीतर के असामाजिक तत्वों से है जो देश को खोखला करने में लगे हैं ।

आज स्वतंत्रता दिवस का मतलब ध्वजारोहण , एक दिन की छुट्टी और टीवी तथा एफ एम पर दिन भर चलने वाले देश भक्ति के गीत ! थोड़ी और देश भक्ति दिखानी हो तो फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया में देशभक्ति वाली दो चार पोस्ट डाल लो या अपनी प्रोफाइल पिक में भारत का झंडा लगा लो । सबसे ज्यादा देशभक्ति दिखाई देती है भारत पाक क्रिकेट मैच के दौरान , अगर भारत जीत जाए तो पूरी रात पटाखे चलते हैं लेकिन यदि हार जाए क्रिकेटरों की शामत आ जाती है। सोशल मीडिया पर हर कोई देश भक्ति में डूबा हुआ दिखाई देता है।

लेकिन जब देश के लिए कुछ करने की बात आती है तो हम ट्रैफिक सिग्नलस जैसे एक छोटे से कानून का पालन भी नहीं करना चाहते क्योंकि हमारा एक एक मिनट बहुत कीमती है। गाड़ी को पार्क करना है तो हम अपनी सुविधा से करेंगे कहीं भी क्योंकि हमारे लिए कानून से ज्यादा जरूरी वही है। कचरा फैंकना होगा तो कहीं भी फेंक देंगे चलती कार बस या ट्रेन कहीं से भी और कहाँ गिरा हमें उससे मतलब नहीं है बस हमारे आसपास सफाई होनी चाहिये देश भले ही गंदा हो जाए ! 

देश चाहे किसी भी विषय पर कोई भी कानून बना ले हम कानून का ही सहारा लेकर और कुछ " ले दे कर " बचते आए हैं और बचते रहेंगे क्योंकि देश प्रेम अपनी जगह है लेकिन हमारी सुविधाएं देश से ऊपर हैं। इस सोच को बदलना होगा। 

इकबाल का तराना ए हिन्द को जीवंत करना होगा
" सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुले हैं इसकी ये गुलसिताँ हमारा "

अपने हिन्दुस्तान को सारे जहाँ से अच्छा हमें मिलकर बनाना ही होगा , इसके गुलिस्तान को फूलों से सजाना ही होगा।

देश हमें स्वयं से पहले रखना ही होगा।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें