"टुनटुना" - राकेश कंवर



राजू आज बहुत उदास था। आज उसके हाथ से गिरने की वजह से मोबाईल की स्क्रीन टूट गई थी। शोरूम वाले ने उसे कल तक ठीक करके देने के लिए बोला है। क्या करूं टाइम ही पास नही हो रहा.. "राजू ओ राजू..अन्दर से मां ने आवाज लगाई तो राजू "आया मां..कहकर उठकर चल दिया पिछले तीन चार साल में शायद यह पहला अवसर था जब मां की एक आवाज पर राजू ने जवाब दिया हो..

"बोलो मां.."बेटा आज घर में सब्जी नही है सुबह पानी की मोटर ने पानी देर से उठाया बेटा इसलिए मैं तेरी मौसी(बगल वाली आंटी) के साथ सब्जी लेने नही जा पाई मेरा प्यारा बेटा..मेरा राजा बेटा..मेरा ये काम कर दे ना बेटा..मां ने लगभग मनुहार करते हुए कहा... 'खाली बैठने से अच्छा है चलो आज बाजार ही घूम आता हूं,.. मन ही मन मैने सोचा "अच्छा बताओ क्या लाना है...? मां के मुखमंडल पर एक नई सी चमक थी..मां ने सब्जी की लिस्ट और थैला मुझे थमा दिया

बाजार जा रहे हो बेटा..ठहरो मैं भी चलता हूं दादा जी ने छड़ी उठाते हुए कहा "हां दादाजी चलिए...."बेटा मेरा ये चश्मा टूट गया है काफी दिन हो गए तुम्हारे पापा को तो आफिस से टाइम नही मिलता तुम ही ठीक करवाकर ला दो दादी जी ने मेरी तरफ बढ़ते हुए टूटा हुआ चश्मा मुझे थमा दिया। मैं और दादाजी स्कूटी पर बाजार चल दिए दादा जी को नाई की दुकान पर छोड़कर मैंने सब्जी ली और दादी जी के चश्में का फ्रेम बदलवाया। मैं थोड़ी ही देर में फ्री हो चुका था नाई की दुकान पर पहुंचा तो दादाजी का नम्बर अभी नही आया था कटिंग करवानी थी उन्हें.."बेटा अभी मुझे आधा घण्टा और लग जाएगी इतने तुमको कोई और काम है तो कर आओ..दादाजी ने कहा। 

अरे हां याद आया रमेश का घर यहीं बगल मे ही तो है कितनी बार बोल चुका है कभी घर आ ना यार. मैंने मन ही मन सोचा। मैं रमेश के घर पहुंचा तो वह घर पर ही था आंटी से नमस्ते हुई और हम वही ड्राइंग रूम मे बैठे गए आंटी चाय ले आई खूब गपशप हुई पता ही नही चला कब आधा घण्टा बीत गया आज कितने दिनों बाद किसी दोस्त के घर आया था "अच्छा रमेश चलता हूं दादाजी वेट कर रहे होंगे.. "आते रहा करो बेटा..आंटी ने भी कहा। नाई की दुकान पर पहुंचा तो दादाजी फ्री हो चुके थे। 

हम दोनो घर की तरफ चल पड़े रास्ते में दादाजी ने स्कूटी रूकवाकर कुल्फी वाले से कुल्फी खाई और मुझे भी खिलाई। दादाजी ने बहुत सी बातें बताई उस कुल्फी वाले के बारे में। काफी पुराना था उस कुल्फी वाले का इतिहास..वाकई कुल्फी थी भी गजब की..भूल ही गया था उसका स्वाद अगर पहले कभी खाई भी होगी तो याद नही..हम वहां से चलकर घर पहुंचे तो दोपहर के दो बज चुके थे दादाजी बोले निहाल कर दिया बेटा तुम जा रहे थे तो साथ चला गया नही तो गर्मी में हालात खराब हो जाती.. दादाजी ने स्कूटी से लगभग उतरते हुए कहा कितना आनन्द था उस पल में।

दादीजी के हाथ में जब चश्मा थमाया तो सैंकड़ों आशीषों की पिटारी उपहार स्वरूप मिली। मां ने भी फटाफट शिकंजी बनाकर पिलाई और पास बैठकर अपनी साड़ी से मेरा पसीना पौंछा शायद बहुत बड़ी खुशी दी थी मैने उन्हें आज सब्जी लाकर..थोड़ी देर में खाना तैयार हो गया मैंने खाना खाया और सो गया..शायद थोड़ा थक गया था आज बाजार जाकर..

दो घण्टे की नींद के बाद ऊठा तो पापा आफिस से आ चुके थे। "कैसे हो बरखुरदार..पापा ने पूछा तो मैंने ठीक में सर हिला दिया "पार्क चलोगे मेरे साथ..? खाली घर बैठने से तो अच्छा है चलो आज पापा के साथ पार्क ही हो आता हूं। यह सोचकर मैंने हामी भर दी..आधा घण्टे बाद हम दोनों पार्क में थे पढ़ाई, खेलकूद और ना जाने कितने विषयों पर बातचीत हुई।पार्क में पापा के दोस्तों से भी मिला शायद पहली बार ही मिल रहा था क्योंकि कभी मोबाईल से इत्तर की दुनिया मैंने देखी ही नही थी..बड़ा फ्रैश सा महसूस कर रहा था आज मैं खुद को। दो घण्टे पार्क में बिताकर घर लौटे तो आठ बजे चुके थे खाना तैयार था खाने की टेबल पर हम सभी ने बैठकर खाना खाया। खूब हंसी मजाक हुआ। मां और दादाजी ने मेरी खूब तारीफ की उन्होंने बताया कि आज मैंने बाजार के काम निपटाकर उनकी कितनी मदद की..

क्यूं बरखुरदार आज तुम्हारे पास तुम्हारा "टुनटुना" नही है..? पापा अक्सर मेरे मोबाईल को "टुनटुना" ही कहते हैं क्योंकि वह बजता ही रहता है कभी व्हट्स एप्प और कभी फेसबुक की नोटिफिकेशन की टोन से.."पापा उसकी स्क्रीन क्रैक हो गई थी ठीक होने को दे रखा है..."कल ठीक करकर देगा..."तभी तो मैं सोचूं आज हमारे बरखुरदार को हमारे पास बैठने का वक्त कहां से मिल गया..मैं बस झेंप कर रहा गया। सच ही तो कह रहे थे पापा शायद पिछले तीन चार साल में परिवार के इतना करीब मैं आज के अलावा शायद ही रहा था..खाना तो अक्सर मैं अपने कमरे में ही खाता था। वो आवाज लगाते लगाते थक जाते थे लेकिन शायद आज पहली बार था जब मैंने हर किसी की पहली आवाज पर मैंने उनको जवाब दिया था.."अच्छा चलो सो जाओ..सुबह पांच बजे उठकर मेरे साथ पार्क में चलना। सुबह की हवा और भी सुहानी होती है। पापा यह कहकर सोने चले गए मैं भी उठकर अपने कमरे में आ गया। मोबाईल पास नही था इसलिए बिस्तर पर पसरते ही नींद आ गई।

घुर्रररररर..घुर्ररररररर की आवाज से अचानक आंखे खुल गई। देखा तो सुबह के आठ बज रहे हैं लेकिन पापा ने तो सुबह पांच बजे उठने को कहा था। और ये क्या फोन तो आज ठीक होकर मिलने वाला था फोन किसने लाकर रख दिया मेरे सिरहाने।

""ओहहहहह तो क्या ये सब सपना था..? दिल ने खुद ही दिल से सवाल किया और दिल ने दिल को ही जवाब दिया..हां यह सपना था। उसने एक झटके से "टुनटुने" को टेबल पर रख दिया और मां,पापा, दादाजी चिल्लाता हुआ नीचे की और दौड़ पड़ा नाश्ते की टेबल की तरफ जहां उसके अपने रिश्ते, उसकी खुशियां पलकें बिछाए उसका बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे।

"टुनटुना" अब भी बज रहा था लेकिन वहां उसकी आवाज सुनने वाला कोई नही था क्योंकि उसका गुलाम आज आजाद हो चुका था।

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