जागिये, भारतीय बच्चों को अनाथ होने से बचाईये !



भारतीय परिवार संस्था के टूटने का अर्थ है, समूची भारतीय सामाजिक संरचना का विनाश । यह परिवार ही है जो एक बच्चे को सुसंस्कारित और आदर्श नागरिक बनाता है !

ऐसे में जब हम आज के समाचार चेनल या टीवी धारावाहिक पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों पर नजर दौडाते हैं, तो ध्यान में आता है कि वहां तो जैसे केवल समाज में विकृति उत्पन्न करने का ही प्रयत्न हो रहा है ! बहु विवाह, लिव इन रिलेशन, असंयमित सेक्स, मानो ये ही सब भारतीय टीवी धारावाहिकों के प्रसारण का मूल आधार है ।

क्या आपने कभी विचार किया कि आखिर यह क्यों हो रहा है ?

इसके मूल में है भारत को तोड़ने का षडयंत्र । षडयंत्रकारी जानते हैं कि अगर भारत को कमजोर करना है तो पहले उसकी मूल शक्ति, उसकी परिवार व्यवस्था को खंडित करना होगा ! आप भले न जानें किन्तु वे जानते हैं ! आपने भले ही न पढ़ा हो, किन्तु उन्होंने भारतीय वांग्मय को पढ़ा है, जिसमें लिखा गया है कि -

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्मा: सनातना:।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत ।।१.४०।।

कुल के नाश से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं, धर्म के नाश हो जाने पर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है |

कौन हैं ये षडयंत्रकारी ? ये वे लोग हैं, जो कहने को तो समाजवादी हैं, किन्तु वस्तुतः भारत की आजादी के बाद से ही, भारत राष्ट्र के विरुद्ध रहे हैं ! जिनके पालित शिष्य नारे लगाते हैं - भारत तेरे टुकडे होंगे हजार ! जिन्होंने आजादी के बाद से ही भारत के साहित्य को प्रदूषित विकृत करने का एक सूत्री कार्यक्रम हाथ में लिया हुआ है ! और जिनके हर कार्य व्यवहार का एक ही उद्देश्य है, भारतीय सनातन संस्कृति और सभ्यता का समूल विनाश !

परिवार व्यवस्था टूटने का सबसे अधिक खामियाजा बच्चों को उठाना पड़ता है । वैश्वीकरण के नाम पर पाश्चात्य समाज जीवन के अन्धानुकरण ने हम भारतीयों को भी वही श्रापित जीवन जीने की दिशा में अग्रसर कर दिया है, जिसे अमेरिकी आमजन भोग रहा है ।

कितने आश्चर्य की बात है कि आत्म केन्द्रित पश्चिम, भारतीय परिवार व्यवस्था को आदर्श मानता है, उसको अपनाने को लालायित रहता है, जबकि हमारे अंग्रेजीदां तथाकथित सुसभ्य लोग हमारी उस सनातन परिवार प्रणाली को तिलांजली दे रहे हैं, जिसके आधार पर हमारी सभ्यता का विकास हुआ । 

सुसंपन्न माना जाने वाला अमेरिका, अपने इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है । पति-पत्नी के बीच ब्रेक-अप, तलाक, बुजुर्गों की देखभाल का अभाव, अविवाहित मातृत्व के चलते अनाथालयों की भरमार ने न केवल उनके परिवारों को नष्ट कर दिया है, वरन राष्ट्रव्यापी समस्या को जन्म दिया है ।

डेविड ब्लांकेंहॉर्न द्वारा लिखित “अनाथ अमेरिका” को पढ़कर आपको स्थिति की भयावहता का अनुमान होगा ! और हममें से जो अमरीकी समाज जीवन को आदर्श मानते हैं, निश्चय ही वे अपनी धारणा पर पुनर्विचार करेंगे । हमें अन्धानुकरण नही करना चाहिए, क्योंकि अंधकूप में गिरने के बाद बचने की गुंजाईश समाप्त हो सकती है !

पिता विहीन अनाथ अमेरिका !

डेविड ब्लांकेंहॉर्न ने अपनी पुस्तक, अनाथ अमेरिका में, अमेरिका पर गहराते संकट की मीमांशा की है, और अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट कराया है । उसका कहना है कि अमेरिका में पिता संकट में है, अधिकाँश बच्चों की परिवरिश ऐसे वातावरण में हो रही है, जहां पिता अनुपस्थित है । यहाँ तक कि कई बच्चे पिता की पारंपरिक भूमिका को ही नहीं जानते । वे नहीं जानते कि आखिर पिता की क्या अहमियत है । यही है वहां का नारी स्वातंत्र्य !

वहां पिता एक छाया पिता है। एक ऐसा पिता जो घर पर नहीं रहता, जो महज एक आगंतुक है: आंशिक पिता और आंशिक अजनबी। वह अपने बच्चे को प्यार तो करता है, लेकिन उनके साथ नहीं है । वह केवल जैविक पिता है, जिसके शुक्राणु से वालक का जन्म हुआ । मां के साथ रहने वाले बदलते रहते हैं, लेकिन वे सब पिता तो नहीं हो सकते ? आम मान्यता है कि परिवारों में पुरुष या तो अनावश्यक हैं या समस्या पैदा करने वाले हैं । परिणाम स्वरुप वहां पैसे का अभाव नहीं है, पिता का अभाव है ! पिता डॉलर में मापा जाता है !

क्या भारत में भी आप ऐसा ही समाज चाहते हैं ? अगर नहीं तो सावधान हो जाईये और अपनी परिवार व्यवस्था को नष्ट होने से बचाईये !

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