केरल के संघ स्वयंसेवकों की अपुपम शौर्य गाथा



क्या आपने कभी विचार किया है कि कम्यूनिस्टों के लाल सलाम का मतलब क्या है ? जरा साम्यवाद का इतिहास तो देखें जिसकी नींव ही अराजकता, तख्तापलट, अधिनायकवाद और तानाशाही पर रखी गई है ! क्या किसी भी कम्यूनिस्ट देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है ? सचाई यह है कि कम्युनिस्ट देशों में असहमति जताने का अर्थ है देशद्रोह का आरोप । सोवियत संघ ने कैसे अपने नागरिकों के मन में भय और घुटन को जन्म दिया, इसे इतिहास के विद्यार्थी भली प्रकार जानते है और उसी की अंतिम परिणति सोवियत संघ के विभाजन में हुई । युद्ध और रक्तपात ही साम्यवाद की पहचान है और उसी का परिचायक है उनका बहुचर्चित नारा – लाल सलाम । ईश्वर का कोटि कोटि धन्यवाद की भारत की अधिसंख्य जनता ने इस खूनी पंजे को कभी स्वीकार नहीं किया ! 

लेकिन क्या सच में साम्यवाद भारत में मर चुका है?


भले ही भारत के अधिकाँश हिस्से में साम्यवाद की कोई प्रासंगिकता नहीं है, किन्तु दुर्भाग्य से हमारी राष्ट्रीय मीडिया पर उनका कब्जा बरकरार है और केरल की राजनीति में इनका दुष्प्रभाव अपने मूल स्वरुप, अर्थात खून खराबे और आतंक का दिग्दर्शन करा रहा है ! कम्युनिस्ट गुंडों और इस्लामी कट्टरपंथियों के घातक गठबंधन के चलते सैकड़ों परिवारों ने अपने बच्चों का नृशंस संहार देखा है, विशेषकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की नृशंस हत्याएं हुई हैं । केरल का अर्थ है भगवान का देश,और दुर्भाग्य तो देखिये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के 200 से अधिक युवा कार्यकर्ताओं को भगवान के अपने देश में अपनी जान से हाथ धोना पड़ा ! शायद ही कोई पखवाडा ऐसा जाता होगा, जब कम्युनिस्ट विचारधारा के नाम पर नरसंहार न किया जाता हो ।

जरा नजर डालिए इन हत्यारे नराधमों के क्रियाकलापों पर –

16 जुलाई 2012 को बीएससी के छात्र विशाल कुमार की केवल इसलिए बेरहमी से हत्या कर दी गई क्योंकि वह विद्यार्थी परिषद् का सक्रिय कार्यकर्ता था, तथा उसका कॉलेज परिसर में सरस्वती पूजन आयोजित करने का इरादा था। उसी वर्ष सितम्बर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता 21 वर्षीय सचिन गोपाल की भी ह्त्या कर दी गई । विगत वर्ष सितंबर 2016 में थिल्लान्केरी पंचायत कार्यालय परिसर में भारी हथियारों से लैस सीपीआई (एम) के गुंडों के एक गिरोह ने एक आरएसएस कार्यकर्ता को बेरहमी से क़त्ल कर दिया । ये तो केवल बानगी है, सचाई तो यह है कि आजादी के बाद से ही निर्दोष आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ताओं ने भाकपा के गुंडों के प्रकोप का सामना किया है और अपने विचार स्वातंत्र्य की खातिर अपनी तत्व निष्ठा के लिए सर्वोच्च आत्मबलिदान दिया है! और यह कैसा अन्याय है कि केरल में आये दिन होने वाली इन राजनीतिक हत्याओं को लेकर भारत की मीडिया ज्यादातर चुप्पी साधे दिखती है, और सत्तारूढ़ कम्यूनिस्ट पार्टी कोई उच्च स्तरीय जांच भी नहीं कराती । क्या यही है उनका राज धर्म ?

जैसा कि ऊपर उल्लेखित किया, साम्यवाद में हिंसा कोई नई बात नहीं है। हिंसा, खूनखराबा, घृणा, यही तो कम्युनिस्ट विचारधारा के ट्रेडमार्क हैं। जब दुनिया भर में उनकी यही प्रवृत्ति है, तो भारत में अपवाद कैसे हो सकता है ? लेकिन सबसे बड़ा मजाक यह है कि कैसे लोकतांत्रिक भारत में ये पाखंडी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के नाम पर भाषण झाड़ते हैं, अवार्ड वापिस करने की नौटंकी करते हैं, वर्ग विद्वेष बढाने के लिए निरर्थक मामले गढ़ते हैं, तिल का ताड़ बनाते हैं ! जैसा कि रोहित बेमुला मामले में किया, एक पिछड़े वर्ग के नौजवान को दलित बताकर पूरे भारत में शोर मचाया, उद्देश्य केवल एक था, जातीय नफ़रत बढ़ाना ! दूसरी ओर जिन्होंने भी कम्युनिस्ट विचारधारा के खिलाफ थोड़ा भी मुखर होने का प्रयास किया, उनकी अमानवीय सीपीआई (एम) कार्यकर्ताओं ने हत्या कर दी, उनकी जवान हमेशा हमेशा को खामोश कर दी । 

संघ स्वयंसेवकों ने अपने प्राण दिए, केवल इसलिए क्योंकि वे भारत भक्ति के पक्षधर थे, जबकि कम्यूनिस्ट विचार में राष्ट्रभक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है । स्वयंसेवकों ने अपनी आत्माहुति दी क्योंकि वे राष्ट्रवादी भावनाओं से ओतप्रोत थे । उन्होंने अपनी जान दी केरल में विचार स्वातंत्र्य की खातिर! यह हर देशभक्त भारतीय के लिए गर्व और गौरव का विषय है कि इतनी क्रूरता और पाशविक अत्याचारों का सामना करने के बाद भी केरल के संघ स्वयंसेवक ने हिम्मत नहीं हारी है, वह आज भी कैडर पूर्ण उत्साह और वीरता के साथ जनसेवा में जुटा हुआ है, समाज की अंतिम कतार में खड़े व्यक्ति की आँख के आंसू पोंछने के अपने अभियान को गति प्रदान कर रहा है ! उनकी मान्यता है कि आज नहीं तो कल घृणा के इस साम्राज्य के स्थान पर शांति का दौर आयेगा, वह उसके लिए सतत प्रयत्नशील है!

आज समय आ गया है, जब देश के आमजन तक केरल के इन गुमनाम नायकों की गाथा पहुंचाई जाए ! साथ ही बाहरी दुश्मनों के साथ साथ देश के अन्दर बैठे दुश्मनों की जानकारी भी देश को दी जाए ! देश के लिए जीने मरने वाले इन कार्यकर्ताओं ने कभी कोई शिकायत नहीं की, अवार्ड बापिसी गेंग के समान नाटक नौटंकी नहीं की, खामोशी से अपने आत्म सम्मान और गरिमा की खातिर जूझते रहे । लेकिन अब पानी सर के ऊपर से जाने लगा है, दुष्ट और अनैतिक भारत विरोधी, राष्ट्र विरोधी तत्वों के होंसले बढ़ते ही जा रहे हैं, उनकी गतिविधियों समाज को तोड़ने में सतत लगी हुई हैं, इसलिए केरल की घटनाओं की और से आँखें मूंदे रखना उचित नहीं है! कम्यूनिस्टों ने शिक्षा जगत और मीडिया क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ा लिया है, समय रहते अगर जड़ पर प्रहार नहीं किया गया तो यह विषबेल समूचे समाज जीवन को अभिशप्त कर देगी । इसके पहले कि बहुत देर हो जाए इस लाल सलाम वाले खूनी विचार को नेस्तनाबूत किया जाना आवश्यक है!

तथाकथित उदारवादी जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं, उसपर सबसे अधिक प्रहार तो केरल में हो रहा है ! प्रधानमंत्री मोदी के कारण भारत में कोई असुरक्षित नहीं है, किन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सबसे ज्यादा खतरा तो केरल में है, जहां कम्युनिस्टों के खिलाफ एक शब्द बोलना भी अपनी जान जोखिम में डालना है ! हे बुद्धिजीवियों आप किस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का रोना रोते हुए आकाश पाताल एक कर रहे हो । आक्रोश में भी इतना भेदभाव क्यों? केरल के दुःख दर्द को भी तो कभी स्वर दो भाई!

लगातार धमकियों के साए में जीने वाले केरल के आरएसएस कार्यकर्ताओं की कहानी वीरता, साहस और शौर्य की अनुपम गाथा है, तथा मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम की परिचायक भी! इन बहादुर कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों के जीवट को दिल से नमन, प्रणाम!

साभार आधार - http://vsktelangana.org/the-saga-of-bravery/

केरल की घटनाओं का सांगोपांग विवरण -
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