पनामा लीक्सः भारत में भी हैं कालेधन के सफेद कुबेर - प्रमोद भार्गव




पड़ोसी देश पाकिस्तान एक बार फिर राजनीतिक संकट के मुहाने पर है। पनामा कांड में फंसे प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सांसद पद के लिए अयोग्य करार दे दिया। इसके चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद से भी इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, कोर्ट के आदेश के महज छह घंटे बाद ही पंजाब के मुख्यमंत्री और नवाज के छोटे भाई शहबाज शरीफ को प्रधानमंत्री बनाने को ऐलान हो गया। पाकिस्तान के 70 साल के इतिहास में कोई भी प्रधानमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है। यह फैसला न्यायमूर्ति एजाज अफजल खान की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने सुनाया है। पारदर्शिता और उत्तरदायित्व के इस अभियान में पाकिस्तान की न्यायपालिका, मीडिया और वहां के विपक्ष को तो श्रेय दिया ही जाना चाहिए, साथ ही उस अंतराष्ट्रीय मीडिया समूह को भी महत्व दिया जाना चाहिए, जिसने एक साल पहले पनामा लीक्स रिपोर्ट का खुलासा करके दुनिया के कालाधन के कारोबारियों का पर्दाफाश किया था। इस रिपोर्ट में भारत के कारोबारियों के भी नाम दर्ज हैं, किन्तु उन पर कोई कार्यवाही न होना अचरज पैदा करने वाली बात है।
मध्य अमेरिकी देश पनामा की कानूनी कंपनी मोसेक फोनसेका की 15 लाख फाइलों के 1.15 करोड़ पृष्ठ पिछले साल जारी किए थे। इन दस्तावेजों के जरिए 2,14,153 कंपनियों से जुड़े 14,153 लोगों के नाम उजागर हुए थे। ये वे लोग हैं, जो अपनी जन्मभूमि व कर्मभूमि से कमाए कालेधन को इस देश में लाए। इस कालेधन को सफेद बनाने की प्रक्रिया, मसलन मनी लॉन्ड्रिंग के जरिए लाया गया। 78 देषों के 370 से भी ज्यादा पत्रकारों के एक महासंघ ने महीनों तक की गहन जांच के बाद यह खुलासा किया था। इसमें दुनिया के दिग्गज नेताओं समेत भारत के महानायक अमिताभ बच्चन और उनकी बहू ऐश्वर्या राय बच्चन के साथ 500 लोगों के नाम हैं।
मध्य अमेरिकी देषों में महज 40 लाख की आबादी वाला पनामा एक ऐसा देश है, जहां की सरकारें स्विट्रलैंड की तरह टैक्स हैवन कहलाती हैं, और अपने बैंकों के वित्तीय कारोबार को प्रोत्साहन व सरंक्षण देती रही हैं। इस देश का इस्तेमाल धनी, बलशाली, तस्कर व अपराधियों के धन को सफेद बनाने के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। यही वजह है कि स्विस बैंकों की तरह पनामा भी काले कारोबारियों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह बन गया है।
मोसेक फोनसेका नाम की जिस कंपनी के दस्तावेज लीक हुए थे, इसे फर्जी कंपनियां खोलने में महारत हासिल थी। कंपनी खाताधारी का स्वामित्व छिपाकर और फर्जी दस्तावेजों की कूट रचना करके पूंजी निवेश कराने का उपाय करती थी। इसका कारोबार लंदन, बीजिंग, मियामी, ज्यूरिख समेत 35 देशों में फैला हुआ था। कंपनी द्वारा इस तरह से किए जा रहे फर्जी कारोबार से कई देशों की अर्थव्यस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही थी। इन देशों को संदेह था कि मोसेक फोनसेका फर्जी दस्तावेज बनाकर अनेक देशों के धन-कुबेरों की पूंजी निवेश के गोरखधंधे में लगी है। इसलिए “इंटरनेशनल कांसोर्टियन ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट” व 107 अन्य समाचार-पत्र समूह गोपनीय ढंग से इस कंपनी के दस्तावेज खंगालने में लग गए। इस संगठन में भारत का इंडियन एक्सप्रेस समाचार-पत्र समूह भी शामिल था। 78 देशों के 370 से भी अधिक पत्रकारों ने इस गैर कानूनी निवेश की लगातार महीनों पड़ताल की और नाम व पतों की दस्तावेजी पुष्टि होने के बाद यह खुलासा किया था। 2010 में अमेरिका में हुए विकीलीक्स खुलासे के बाद इसे विश्व का सबसे बड़ा विस्फोटक खुलासा माना गया था।
जिन बड़े नेताओं के नाम उजागर हुए थे, उनमें नवाज शरीफ के अलावा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, मिस्त्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक, सीरिया के राष्ट्रपति बरार अल असद, लीबिया के पूर्व लीडर गद्दाफी, पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो, आइसलैंड के प्रधानमंत्री जोहाना, साऊदी अरब के शाह और ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन के परिजनों की कंपनियां शामिल हैं। अर्जेंटीना के फुटबॉल खिलाड़ी लियोनेल मैसी का नाम भी सूची में दर्ज है। इसमें भारत की करीब 500 कंपनियां, प्रतिश्ठान, ट्रस्ट एवं 234 भारतीय लोगों के नाम है। जिसमें बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन उनके बेटे अभिषेक बच्चन की पत्नी व हिरोइन ऐश्वर्या राय, डीएलएफ के मालिक केपी सिंह, उद्योगपति गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद अडानी, इंडिया बुल्स के मालिक समीर गहलोत और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व महाधिवक्ता हरीश साल्वे जैसे मशहूर वकील के नाम शामिल हैं। अंडरववर्ल्ड डॉन इकबाल मिर्ची का नाम भी है। इसमें हिजबुल जैसे आतंकी संगठन, मैक्सिको के ड्रग तस्कर के अलावा उत्तर कोरिया और ईरान जैसे देशों के साथ व्यापार करने के कारण अमेरिकी सरकार की काली सूची में दर्ज 33 लोगों और कंपनियों के नाम भी शामिल हैं। ये आंकड़े 1977 से लेकर 2015 तक के हैं। नवाज शरीफ का तो इसमें कुनबा शामिल है। उनकी बेटी मरियम, दामाद मुहम्मद सफदर, बेटे हसन और हुसैन के नाम हैं। इनके विरुद्ध मामला दर्ज करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है।
दरअसल दुनिया में 77.6 प्रतिशत काली कमाई “ट्रांसफर प्राइसिंग” अर्थात संबद्ध पक्षों के बीच सौदों में मूल्य अंतरण के मार्फत पैदा हो रही है। इसमें एक कंपनी विदेशों में स्थित अपनी सहायक कंपनी के साथ हुए सौदों में 100 रुपए की वस्तु की कीमत 1000 रुपए या 10 रुपए दिखाकर करों की चोरी और धन की हेराफेरी करती हैं। मोसेक फोनसेका कंपनी यही गोरखधंधा कर रही थी। भारत समेत दुनिया में जायज-नाजायज ढंग से अकूत संपत्ति कमाने वाले लोग ऐसी ही कंपनियों की मदद से एक तो कालेधन को सफेद में बदलने का काम करते हैं, दूसरे विदेश में इस पूंजी को निवेश करके पूंजी से पूंजी बनाने का काम करते हैं।
हालांकि कंपनी ने दस्तावेजों के लीक होने के बाद दावा किया था कि वह तो विधि-सम्मत काम करती है। दरअसल समस्या की असली जड़ यहीं हैं। यूरोप के कई देशों ने अपनी अर्थव्यस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए दोहरे कराधान कानूनों को वैधानिक दर्जा दिया हुआ है और इन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरंक्षण प्राप्त है। पनामा और स्विटजरलैंड जैसे देशों के बैंकों को गोपनीय खाते खोलने, धन के स्रोत छिपाने और कागजी कंपनियों के जरिए लेनदेन के कानूनी अधिकार हासिल हैं। इन गोपनीय बैकिंग नियमों का लाभ भ्रष्ट राजनेता कालेधन के कुबेर और माफिया सरगना एवं तस्कर उठा रहे हैं। पनामा पेपर्स के जरिए जिन लोगों के नाम सार्वजनिक हुए हैं, उसमें से अधिकतर कर चोरी से संबद्ध हैं। क्योंकि जर्मन अखबार के जिस पत्रकार सुडेश ख्यजेतुंग ने मोसेक फोनसेका के जरिए कर चोरी का जो पहला दस्तावेजी सूत्र पकड़ा था, वह इसी हेराफेरी से संबद्ध था। इसी के बाद आईसीआईजे के गठन की पृश्ठभूमि बनी और 8 माह की खोज के बाद कंपनी का पर्दाफाश हुआ।
भारत में प्रर्वतन निदेषालय एचएसबीसी और उससे पहले की आईसीआईजे के राजफाश पर 43 विदेशी खातों की जांच कर रहा है। आईसीआइजे द्वारा 2013 में बताई गई सूचना के आधार पर राजस्व विभाग के 434 लोगों की पहचान की है, जिनमें से 184 ने विदेशी इकाइयों से सौदे की बात स्वीकार ली है। इन खातों के विस्तृत आकलन के बाद लगभग 6500 करोड़ रुपए की अवैध संपत्ति का पता चला है। अमेरिका सीनेट की एक रिपोर्ट से भी यह उजागर हुआ था कि ब्रिटेन के हांगकांग एंड शंघाई बैंक कॉर्पोरेशन यानी एचएसबीसी बैंक मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल है। रिपोर्ट में स्पष्ट तौर से कहा गया था कि इस बैंक के कर्मचारियों ने गैर कानूनी तरीक से कालेधन का हस्तांतरण किया है। कुछ धन का लेनदेन आतंकवादी संगठनों को भी किया है। इस खुलासे के बाद भारतीय रिर्जव बैंक ने भी अपने स्तर पर पड़ताल की थी, लेकिन इस पड़ताल के निष्कर्ष क्या निकले, यह कोई नहीं जानता।
हालांकि कालाधन वापसी के लिए बनाए गए विशेष जांच दल के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एमबी शाह ने भी पनामा लीक्स को गंभीरता से लिया था। लेकिन इस बाबत कार्यवाही क्या हुई कुछ पता नहीं है। भारत समेत कुछ अन्य देशों की तमाम कोशिशों के बावजूद वैश्विक स्तर पर कोई ऐसी कानूनी-व्यवस्था अब तक नहीं बन पाई है, जिससे कालेधन के कारोबारी हतोत्साहित हों और कराधान की दोहरी व्यवस्था पर अंकुष लगे। इसलिए मोदी सरकार और एसआईटी का फर्ज बनता है कि पनामा खुलासे और पाकिस्तान से सबक लेते हुए कुछ ऐसे परिणाम सामने लाएं, जिनसे यह संदेश निकले की काले-कारोबारी कितनी भी बड़ी व किसी भी क्षेत्र की शख्सियत क्यों न हों, उन्हें किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।

प्रमोद भार्गव
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लेखक वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार हैं।

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