संस्कृत में संभाषण क्योँ करना चाहिए ?

संस्कृत में बात करने से संस्कृत भाषा का अभ्यास सरल और शीघ्र हो जाता है ! जो भाषा दैनिक व्यवहार में आती है वह बढती है और उसका विकास होता है ! संस्कृत भाषा के विकास के लिए संस्कृत में व्यवहार अनिवार्य है ! लिखे हुए को पढने की अपेक्षा बोली हुई भाषा का श्रवण करने से उसका सरलता से बोध होता है ! ध्वनि, अभिनय, मुख के भाव और परिसर (वातावरण) आदि इसके कारण है ! अतः संस्कृत संभाषण से ‘संस्कृत सरल है’ जनमानस में इस भावना का निर्माण होगा ! संभाषण में चैतन्य होता है अतः अन्य व्यक्ति भी बोलने को उत्साहित होता है ! इस प्रकार संस्कृत भाषा व्यक्ति तक पहुँचती है ! जाति, मत, प्रदेशादि भेद-भाव के बिना ही सब लोगों को इसका ज्ञान होता है !

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संस्कृत भाषा संस्कृति की वाहिका है ! इस कारण से यदि यह दैनिक व्यवहार में आती है तो संस्कृति के जीवनादर्शन भी व्यवहार में आयेंगे ! संस्कृत संभाषण से लोगों के ह्रदय में स्वाभिमान का निर्माण होता है ! समाज के उपेक्षित वर्ग, जो लोग बहुत समय से संस्कृत शिक्षण से वंचित रहे उनमे संस्कृत शिक्षण से बहुत परिवर्तन होता है ! समग्र देश के नगर व गाँव में संस्कृत संभाषण शिविर चलाने से ऐसा अनुभव हुआ है ! इस प्रकार सामाजिक समरसता लाने में, सामाजिक परिवर्तन करने में संस्कृत संभाषण की एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी !

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आज विद्यालयों में संस्कृत भाषा को अन्य भाषाओं (हिंदी, अंग्रेजी, तेलगु, फ़ारसी आदि) के माध्यम से पढ़ाया जाता है ! हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच इत्यादि भाषाएँ उन्ही भाषाओँ के माध्यम से पढ़ाई जाती है ! इसी प्रकार संस्कृत भी संस्कृत के माध्यम से पढ़ाई जानी चाहिए तभी संस्कृत शिक्षण सरल होगा ! संस्कृत-शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए संस्कृत संभाषण ही माध्यम हो सकता है !

संस्कृत संभाषण से ही संस्कृत शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन संभव है !

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इस देश की अस्मिता का आधार इस देश की संस्कृति है ! अतः भारत के नवोत्थान के लिए, सांस्कृतिक पुनरुज्जीवन करना होगा ! अब जन जागरण के लिए, जन संगठन के लिए, जन शिक्षण के लिए और जन संस्कार के लिए संस्कृत संभाषण एक सशक्त एवं प्रमुख साधन है, जैसे स्वतंत्रता आन्दोलन में चरखा ! संस्कृत संभाषण एक होम्योपैथिक गोली की तरह है जो देखने में छोटी परन्तु उसका परिणाम दूरगामी है ! वह रोग के मूल को नष्ट कर देती है ! संभाषण ही संजीवनी है ! संस्कृत में संभाषण करना मानो वस्तुतः वह वाग्देवता की उपासना है, सुरसरस्वती का समाराधन है !

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